मेघ आए 9th Class (CBSE) Hindi क्षितिज
“निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए”
प्रश्न: ‘मेघ आए’ कविता में बादलों को किसके समान बताया गया है?
उत्तर: ‘मेघ आए’ कविता में बादलों को शहर से आने वाले दामाद के समान बताया गया है क्योंकि बादल गाँव में उसी तरह सज-धजकर आ रहे हैं जैसे शहरी दामाद सज-धजकर आता है या इन बादलों का इंतज़ार भी दामाद की ही तरह किया जाता है।
प्रश्न: लता रूपी नायिका ने मेहमान से अपना रोष किस प्रकार प्रकट किया?
उत्तर: नवविवाहिता लता रूपी नायिका अपने पति का इंतज़ार कर रही थी पर उसका पति एक साल बाद लौटा तो लता ने उससे रोष प्रकट करते हुए कहा, “तुमने तो पूरे साल भर बाद सुधि लिया है।” अर्थात् वह पहले क्यों नहीं आ गया।
प्रश्न: बूढ़ा पीपल किसको प्रतीक है? उसने मेहमान का स्वागत किस तरह किया?
उत्तर: बूढ़ा पीपल घर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति का प्रतीक है। उसने मेहमान को आया देखकर आगे बढ़कर राम-जुहार की और उससे कुशल क्षेम पूछते हुए यथोचित स्थान पर बिठाया।
प्रश्न: ‘बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके’ के आधार पर बताइए कि ऐसा कब हुआ और क्यों?
उत्तर: ‘बाँध टूटा आया मेघ रूपी मेहमान’ अपनी लता रूपी नवविवाहिता पत्नी से मिला। पहले तो लता ने अपना रोष प्रकट किया और फिर उसका धैर्य टूटा। इससे उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।
प्रश्न: प्राकृतिक रूप से किस श्रम की गाँठ खुलने की बात कही गई है? ‘मेघ आए’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर: ग्रामीण संस्कृति में बादलों का बहुत महत्त्व है। वहाँ कृषि-कार्य बादलों पर निर्भर करता है, इसलिए बादलों की प्रतीक्षा की जाती है। इस बार जब साल बीत जाने पर भी बादल नहीं आए तो लोगों के मन में यह भ्रम हो गया था कि इस साल अब बादल नहीं आएँगे पर बादलों के आ जाने से उनके इस भ्रम की गाँठ खुल गई।
प्रश्न: ‘मेघ आए’ कविता में किस संस्कृति का वर्णन किया गया है? सोदाहरण लिखिए।
उत्तर: ‘मेघ आए’ कविता में ग्रामीण संस्कृति का वर्णन है। बादलों के आगमन पर उल्लास का वातावरण बनना, हवा चलना, पेड़ पौधों का झूमना, आँधी चलना, धूल उड़ना, लता का पेड़ की ओट में छिपना बादलों का गहराना, बिजली का चमकना, बरसात होना आदि सभी ग्रामीण संस्कृति से ही संबंधित हैं।
प्रश्न: कविता में मेघ रूपी मेहमान के आने पर कौन क्या कर रहे हैं?
उत्तर: ‘मेघ आए’ कविता में हवा मेघ आने की सूचना देने का काम, पेड़ों द्वारा मेघ को देखने का कार्य, बूढ़ा पीपल, मेघ का स्वागत एवं अभिवादन करने, ताल द्वारा परात में पानी भरकर लाने का काम, लता द्वारा उलाहना देने एवं उससे मिलने का काम किया जा रहा है।
प्रश्न: ‘मेघ आए’ कविता में नदी किसका प्रतीक है? वह पूँघट सरकाकर किसे देख रही है?
उत्तर: ‘मेघ आए’ कविता में नदी गाँव की उस विवाहिता स्त्री का प्रतीक है जो अभी भी परदा करती है। वह किसी अजनबी या रिश्तेदार के सामने घूघट करती है। वह गाँव आ रहे बादल रूपी मेहमान को पूँघट सरकाकर देख रही है।
प्रश्न: ताल किसका प्रतीक है? वह परात में पानी भरकर लाते हुए किस भारतीय परंपरा का निर्वाह कर रहा है?
उत्तर: ताल घर के किसी उत्साही नवयुवक का प्रतीक है। मेघ रूपी मेहमान के आने पर वह परात में पानी भर लाता है। ऐसा करके वह घर आए मेहमान के पाँव धोने की भारतीय संस्कृति की परंपरा का निर्वाह कर रहा है।
प्रश्न: ‘मेघ आए’ कविता में एक साल बाद अपने पति मेघ को देखकर नवविवाहिता नायिका की क्या दशा हुई?
उत्तर: ‘मेघ आए’ कविता में एक साल बाद अपने पति मेघ को देखकर नवविवाहिता नायिका का मान जाग उठा। उसने एक साल बाद सुधि लेने के लिए मेघ से शिकायत की पर मेघ के आने से उसके मन का भ्रम शूट गया और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
प्रश्न: बादलों के आने पर प्रकृति में जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखिए।
उत्तर: बादलों के आने पर प्रकृति के निम्नलिखित क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है:
- बादल मेहमान की तरह बन-ठन कर, सज-धज कर आते हैं।
- उसके आगमन की सूचना देते हुए आगे-आगे बयार चलती है।
- उनके आगमन की सूचना पाते ही लोग अतिथि सत्कार के लिए घर के दरवाज़े तथा खिड़कियाँ खोल देते हैं।
- वृक्ष कभी गर्दन झुकाकर तो कभी उठाकर उनको देखने का प्रयत्न कर रहे हैं।
- आँधी के आने से धूल का घाघरा उठाकर भागना।
- प्रकृति के अन्य रुपों के साथ नदी ठिठक गई तथा घूँघट सरकाकर आँधी को देखने का प्रयास करती है।
- सबसे बड़ा सदस्य होने के कारण बूढ़ा पीपल आगे बढ़कर आँधी का स्वागत करता है।
- ग्रामीण स्त्री के रुप में लता का किवाड़ की ओट से देर से आने पर उलाहना देना।
- तालाब मानो स्वागत करने के लिए परात में पानी लेकर आया हो।
- इसके बाद आकाश में बिजली चमकने लगी तथा वर्षा के रुप में उसके मिलन के अश्रु बहने लगे।
प्रश्न: निम्नलिखित किसके प्रतीक हैं?
- धूल
- पेड़
- नदी
- लता
- ताल
उत्तर:
- धूल – स्त्री
- पेड़ – नगरवासी
- नदी – स्त्री
- लता – मेघ की प्रतिक्षा करती नायिका
- ताल – सेवक
प्रश्न: लता ने बादल रूपी मेहमान को किस तरह देखा और क्यों?
उत्तर: लता ने बादल रुपी मेहमान को किवाड़ की ओट से देखा क्योंकि वह मेघ के देर से आने के कारण व्याकुल हो रही थी तथा संकोचवश उसके सामने नहीं आ सकती थी।
प्रश्न: भाव स्पष्ट कीजिए:
- क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की
- बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
उत्तर:
- नायिका को यह भ्रम था कि उसके प्रिय (मेघ) आएँगे या नहीं, परन्तु बादल रुपी नायक के आने से सारे भ्रम दूर हो गए। अपनी शंका पर दु:ख व्यक्त करती हुई नायिका अपने प्रिय से क्षमा याचना करती है।
- प्रकृति के अन्य सभी रुपों पर मेघ के आने का प्रभाव पड़ा। नदी ठिठकी तथा उठकर ऊपर देखने की चेष्टा में उसका घूँघट सरक गया। वह भी मेघ के आगमन की प्रतीक्षा कर रही थी।
प्रश्न: मेघ रूपी मेहमान के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर: मेघ के आगमन से दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगे। हवा के तेज़ बहाव के कारण आँधी चलने लगती है जिससे पेड़ अपना संतुलन खो बैठते हैं, कभी उठते हैं तो कभी झुक जाते हैं। धूल रुपी आँधी चलने लगती है। हवा के चलने से संपूर्ण वातावरण प्रभावित होता है – नदी की लहरें भी उठने लगती है, पीपल का पुराना वृक्ष भी झुक जाता है, तालाब के पानी में उथल-पुथल होने लगती है। अन्तत: बिजली कड़कती है और आसमान से मेघ पानी के रुप में बरसने लगते हैं।
प्रश्न: मेघों के लिए ‘बन-ठन के, सँवर के’ आने की बात क्यों कही गई है?
उत्तर: बहुत दिनों तक न आने के कारण गाँव में मेघ की प्रतीक्षा की जाती है। जिस प्रकार मेहमान (दामाद) बहुत दिनों बाद आते हैं, उसी प्रकार मेघ भी बहुत समय बाद आए हैं। अतिथि जब घर आते हैं तो सम्भवत: उनके देर होने का कारण उनका बन-ठन कर आना ही होता है। कवि ने मेघों में सजीवता डालने के लिए मेघों के ‘बन-ठन के, सँवर के’ आने की बात कही है।
प्रश्न: कविता में आए मानवीकरण तथा रूपक अलंकार के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर: कविता में प्रयुक्त मानवीकरण अलंकार इस प्रकार है:
- आगे–आगे नाचती बयार चली
यहाँ बयार का स्त्री के रुप में मानवीकरण हुआ है। - मेघ आए बड़े बन–ठन के सँवर के।
मेघ का दामाद के रुप में मानवीकरण हुआ है। - पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए।
पेड़ो का नगरवासी के रुप में मानवीकरण किया गया है। - धूल भागी घाघरा उठाए।
धूल का स्त्री के रुप में मानवीकरण किया गया है। - बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
पीपल का पुराना वृक्ष गाँव के सबसे बुज़र्ग आदमी के रुप में है। - बोली अकुलाई लता
लता स्त्री की प्रतीक है।
कविता में प्रयुक्त अलंकार:
- क्षितिज अटारी
यहाँ क्षितिज को अटारी के रुपक द्वारा प्रस्तुत किया गया है। - दामिनी दमकी
दामिनी दमकी को बिजली के चमकने के रुपक द्वारा प्रस्तुत किया गया है। - बाँध टूटा झर–झर मिलन के अश्रु ढरके।
झर-झर मिलन के अश्रु द्वारा बारिश को पानी के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
प्रश्न: कविता में जिन रीति-रिवाजों का मार्मिक चित्रण हुआ है, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर: कविता में गाँवों के रीति-रिवाजों के माध्यम से वर्षा ऋतु का चित्रण किया गया है। इसके माध्यम से कवि ने गाँव के कुछ रुढ़ीवादी परम्पराओं की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा की है; जैसे:
- दामाद चाहे किसी के भी घर आए लेकिन गाँव के सभी लोग उसमें बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।
- गाँव की स्त्रियाँ मेहमान से पर्दा करती हैं।
- नायिका भी मेहमान के समक्ष घूँघट रखती है।
- सबसे बुज़ुर्ग आदमी को झुककर मेहमान का स्वागत करना पड़ता है।
- मेहमान के आगमन पर वधु-पक्ष के लोगों को दुल्हें के पैरों को पानी से धोना पड़ता है।
प्रश्न: कविता में कवि ने आकाश में बादल और गाँव में मेहमान (दामाद) के आने का जो रोचक वर्णन किया है, उसे लिखिए।
उत्तर: कविता में कवि ने मेघों के आगमन तथा गाँव में दामाद के आगमन में काफी समानता बताई है। जब गाँव में मेघ दिखते हैं तो गाँव के सभी लोग उत्साह के साथ उसके आने की खुशियाँ मनाते हैं। हवा के तेज़ बहाव से पेड़ अपना संतुलन खो बैठते हैं, नदियों तथा तालाबों के जल में उथल-पुथल होने लगती है। मेघों के आगमन पर प्रकृति के अन्य अव्यव भी प्रभावित होते हैं।
ठीक इसी प्रकार किसी गाँव में जब कोई दामाद आता है तो गाँव के सभी सदस्य उसमें बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं। स्त्रियाँ चिक की आड़ से दामाद को देखने का प्रयत्न करती है, गाँव के सबसे बुज़र्ग आदमी सर्वप्रथम उसके समक्ष जाकर उसका आदर-सत्कार करते हैं। पूरी सभा का केन्द्रिय पात्र वहीं होता है।
प्रश्न: काव्य-सौंदर्य लिखिए:
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सवँर के।
उत्तर: यहाँ पाहुन (दामाद) के माध्यम से प्रकृति का मानवीकृत रुप प्रस्तुत किया गया है। कविता में चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। कविता में भाषा का सहज तथा सरल रुप प्रस्तुत किया गया है। कहीं कहीं पर ग्रामीण शब्दों जैसे – ‘पाहुन’ का प्रयोग किया गया है। ‘बड़े बन-ठन के’ में ‘ब’ वर्ण का प्रयोग बार-बार हुआ है। अत: यहाँ अनुप्रास अलंकार है। मेघों को पाहुन के रुपक द्वारा प्रस्तुत किया गया है। अत: यहाँ रुपक अलंकार है।
प्रश्न: वर्षा के आने पर अपने आसपास के वातावरण में हुए परिवर्तनों को ध्यान से देखकर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर: वर्षा के आने पर वातावरण में गर्मी खत्म हो जाती है, पेड़-पौधें स्वच्छ दिखते हैं, आस-पास के गड्ढों में पानी भर जाता है। सड़क किनारे नालों में पानी भर जाता है, ये पानी सड़क पर आ जाता है। इससे यात्रियों को असुविधा होती है। कभी-कभी अधिक वर्षा होने से सड़क पूरी तरह से पानी में डूब जाती है। उस समय बसों तथा टेक्सियों का आना-जाना भी मुश्किल हो जाता है।
प्रश्न: कवि ने पीपल को ही बड़ा बुज़र्ग क्यों कहा है? पता लगाइए।
उत्तर: पीपल के वृक्ष की आयु अन्य सभी वृक्षों से अधिक होती है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि गाँवों में पीपल के वृक्ष को पूज्यनीय माना जाता है तथा इसकी पूजा भी की जाती है। सम्भवत: इन्हीं कारणों से कवि ने पीपल को ही बड़ा बुज़ुर्ग कहा है।
प्रश्न: कविता में मेघ को ‘पाहुन’ के रूप में चित्रित किया गया है। हमारे यहाँ अतिथि (दामाद) को विशेष महत्व प्राप्त है, लेकिन आज इस परंपरा में परिवर्तन आया है। आपको इसके क्या कारण नज़र आते हैं, लिखिए।
उत्तर: हमारी संस्कृति में अतिथि को देव तुल्य माना जाता रहा है – ‘अतिथि देवो भव:’। परन्तु आज के समाज में इस विषय को लेकर बहुत परिवर्तन आए हैं। इसका प्रमुख कारण भारत में पाश्चात्य संस्कृति का आगमन है। पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करते-करते आज का मनुष्य इतना आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है कि उसके पास दूसरों के लिए समय का अभाव हो गया है। इसी कारण आज संयुक्त परिवार की संख्या धीरे-धीरे घटती जा रही है। ऐसी अवस्था में अतिथि का सत्कार करने की परम्परा प्राय: लुप्त होती जा रही है।
प्रश्न: कविता में आए मुहावरों को छाँटकर अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर:
- बन-ठन के – (तैयारी के साथ) आज काव्य सम्मेलन में सभी कवि बन–ठन के आए हैं।
- सुधि लेना – (खबर लेना) बहुत दिन हो गए मैंने अपने प्रिय मित्र की सुधि तक नहीं ली।
- गाँठ खुलना – (समस्या का समाधान होना) बात की तह तक पहुँचकर ही दोनों के बीच बंधी गाँठ खुल सकती है।
- मिलन के अश्रु – (मिलने की खुशी) इतने दिनों के बाद अपने सगे भाई से मिलकर उसकी आँखों से मिलन के अश्रु बह निकले।
प्रश्न: कविता में प्रयुक्त आँचलिक शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर:
- बयार
- पाहुन
- उचकाना
- जुहार
- सुधि-लीन्हीं
- किवार
- अटारी
प्रश्न: मेघ आए कविता की भाषा सरल और सहज है: उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: ‘मेघ आए’ कविता की भाषा सरल तथा सहज है। निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा इसे स्पष्ट किया जा सकता है:
- मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
- पाहुन ज्यों आए हो गाँव में शहर के।
- पेड़ झुककर झाँकने लगे गरदन उचकाए।
- बरस बाद सुधि लीन्हीं
- पेड़ झुककर झाँकने लगें
उपर्युक्त पंक्तियों में ज़्यादातर साधारण बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है। कहीं-कहीं पर गाँव का माहौल स्थापित करने के लिए ग्रामीण भाषा, जैसे – पाहुन, सुधि आदि का प्रयोग किया गया है। उसे समझने में कठिनाई नहीं होती है।
प्रश्न: शहरी मेहमान के आने से गाँव में जो उत्साह दृष्टिगोचर होता है, उसे मेघ आए कविता के आलोक में लिखिए।
उत्तर: शहरी मेहमान के आने से गाँव में हर्ष उल्लास का वातावरण बन जाता है। गाँव में बादलों के आगमन का इंतज़ार किया जाता है। बादल के आते ही बच्चे, युवा, स्त्री, पुरुष सभी प्रसन्न हो जाते हैं। पेड़-पौधे झूम-झूमकर अपनी खुशी प्रकट करते हैं। बच्चे भाग-भाग बादलों के आने की सूचना देते फिरते हैं। युवा उत्साहित होकर बादलों को देखते हैं तो स्त्रियाँ दरवाजे खिड़कियाँ खोलकर बादलों को देखने लगती हैं। बादलों के बरसने पर सर्वत्र उत्साह का वातावरण छा जाता है।
प्रश्न: ‘मेघ आए’ कविता में अतिथि का जो स्वागत-सत्कार हुआ है, उसमें भारतीय संस्कृति की कितनी झलक मिली है, अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: ‘मेघ आए’ कविता में मेघ रूपी मेहमान के आने पर उसका भरपूर स्वागत होता है। वह साल बाद अपनी ससुराल आ रहा है। यहाँ लोग उत्सुकता से प्रतीक्षारत हैं। मेहमान के आते ही घर का सबसे बुजुर्ग और सम्मानित सदस्य उसकी अगवानी करता है, उसको सम्मान देते हुए राम-जुहार करता है और कुशलक्षेम पूछता है। मेहमान को यथोचित स्थान पर बैठा देखकर घर का सदस्य उत्साहपूर्वक परात में पानी भर लाता है ताकि मेहमान के पैर धो सके। इस तरह हम देखते हैं कि मेहमान का जिस तरह स्वागत किया गया है उसमें भारतीय संस्कृति की पर्याप्त झलक मिलती है।
‘मेघ आए’ कविता और व्याख्या
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
व्याख्या: कवि कहते है की आकाश में बादल घिर आये है। बादलों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई मेहमान बन – संवर कर, सज धजकर ग्राम आताहै। शहर से आने वालेमेहमान को देखकर लोगों में प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है। बादल भी दामाद की तरह एक वर्ष बाद आये है। बादलों को देखकर लोग प्रसन्न हो जाते है। बादलों सेपहले उनके आने की सूचना देने वाली पुरवाई चल पड़ती हैजो नाचती गाती है। उस नाच गाने को देखने के लिए गलियों में खिड़की-दरवाजे खुलने लगते है। लोग मेघ रूप दामाद को देखना चाहता है। मेघ के आने से हवा अत्यंत प्रसन्न हो गयी है और प्रकृति में उत्साह का वातावरण है।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बांकीचितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
व्याख्या: मेघरूपी मेहमान बादल के रूप में आते है। मेहमान के आने पर जिस प्रकार लोग झुकर प्रणाम करते है और फिर गर्दन उच्कार, झंकार देखते है उसी तरह बादल के आने पर पेड़ हवा के वेग से झुके और डोलने लगे। ऐसा लगता है जैसे अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए कुछ ग्रामीण अतिथि को देख रहे है। धीरे-धीरे हवा आंधी में बादल गयी और धुल उड़ने लगी। धुल का गुबार देखकर ऐसा लगता है, जैसे कोई ग्राम की युवती किसी अनजाने व्यक्ति को देखकर अपना लहगा समेटकर भागी चली जा रही है। बादलों का घिरना नदी के लिए भी अच्छा समाचार है, वह भी रुक कर देखने लगी है। कहने का अर्थ या है की जिस पर शहर के मेहमान गौण में सज -धज कर संवर कर आते है, ठीक उसी प्रकार मेघ भी मानों बन थान कर अतिथि के रूप आये हो।
बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
व्याख्या: कवि कहते है कि जिस प्रकार मेहमान के आने पर घर के बड़े – बुगुर्ग उनका स्वागत करते है, उनका अभिवादन करते है तथा घर की बहुवें किवाड़ या दरवाजे की ओट में से उनसे स्नेह भरे स्किय्कत करती है, उसी प्रकार मेघों के मेहमान के रूप में आने पर बूढ़े पीपल ने अभिवादन किया। हवा के झोंकों से लता लहरा रही है, मानों मेघों से शिकायत कर रही हो कि आप बहुत दिनों के बाद आये हो। पोखर – तालाब हर्ष से झूम रहे है, मानों मेहमान के स्वागत के लिए परात भर के पानी लाया हो। मेघों के आने पर प्रकृति में हर्ष एवं आनंद है।
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
व्याख्या: आकाश में बादल छा गए है। क्षितिज पर गहरे बादलों में बिजली चमकी और वर्षा प्रारंभ हो गयी। झर-झर वर्षा होने लगी। इस भाव को कवि ने मेहमान और उसकी पत्नी के मिलन के रूप में चित्रित किया है। पति-पत्नी जब मिले तो दोनों के मन की गाँठ खुल गयी। सारी भेद दुभिदा दूर हो गयी। अब वियोग का बाँध टूट गया। इसी प्रकार मेहमान के आने के बाद की खुसी और मिलन के आँसू के रूप में वर्षा का वर्णन किया गया है।
लेखक / कवि: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
9th Class (CBSE) Hindi क्षितिज
गद्य – खंड
- Chapter 01: दो बैलों की कथा
- Chapter 02: ल्हासा की ओर
- Chapter 03: उपभोक्तावाद की संस्कृति
- Chapter 04: साँवले सपनों की याद
- Chapter 05: नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया
- Chapter 06: प्रेमचंद के फटे जूते
- Chapter 07: मेरे बचपन के दिन
- Chapter 08: एक कुत्ता और एक मैना
काव्य – खंड
- Chapter 09: साखियाँ एवं सबद
- Chapter 10: वाख
- Chapter 11: सवैये
- Chapter 12: कैदी और कोकिला
- Chapter 13: ग्राम श्री
- Chapter 14: चंद्र गहना से लौटती बेर
- Chapter 15: मेघ आए
- Chapter 16: यमराज की दिशा
- Chapter 17: बच्चे काम पर जा रहे हैं