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9th Hindi NCERT CBSE Books

दुःख का अधिकार NCERT 9th Class (CBSE) Hindi Sparsh Ch 2

दुःख का अधिकार Page [4] 9th Class (CBSE) Hindi

प्रश्न: बुढ़िया को रोते देखकर लेखक चाहकर भी क्या न कर सका?

उत्तर: खरबूजे बेचने वाली बुढ़िया को रोता देखकर लेखक ने उसके दुख को महसूस किया। वह बुढ़िया के पास बैठकर अपने हृदय की अनुभूति प्रकट करना चाहता था, पर अपनी पोशाक के कारण चाहकर भी ऐसा न कर सका।

प्रश्न: बुढ़िया के दुख से दुखी लेखक को किसकी याद आई?

उत्तर: खरबूजे बेचने आई महिला को रोती देखकर लेखक ने उसके दुख को महसूस किया। वह दुखी हो गया। बुढ़िया को शोक मनाने का भी अवसर न मिल पाया था, यह सोचकर उसे अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद आई, जो इस स्थिति में दो-ढाई महीने तक बिस्तर से भी न उठ पाई थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न: बुढ़िया के बेटे की मृत्यु से उसे ज्ञान और माल दोनों की हानि हुई। ‘दुख का अधिकार’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: बुढ़िया का तेईस वर्षीय जवान बेटा ही उसका एकमात्र कमाऊ सदस्य था। वह शहर के पास की डेढ़ बीघा भूमि पर सब्ज़ियाँ उगाकर घर का गुजारा चलाता था। उसकी मृत्यु होने से घर में कोई कमाने वाला सदस्य न बचा। उसकी मृत्यु साँप के काटने से हुई थी। साँप के काटने का इलाज करवाने के लिए उसकी माँ ओझा को बुला लाई थी जिसने झाड़-फेंक और नाग-पूजा के नाम पर तथा दान-दक्षिणा के रूप में अमाज और आटा तक चला गया। उसके लिए कफ़न की व्यवस्था करते हुए साधारण से बचे-खुचे जेवर भी बिक गए जिससे बुढ़िया के पोते-पोती को खाने के लाले पड़ गए। इस प्रकार बुढ़िया के बेटे की मृत्यु से उसे जान और माल दोनों की हानि उठानी पड़ी।

प्रश्न: भगवाना कौन था? उसकी मृत्यु किस तरह हुई ?

उत्तर: भगवाना खरबूजे बेचने वाली महिला का तेईस वर्षीय बेटा था। वह अपने घर का एक मात्र कमाऊ सदस्य था जो शहर के पास डेढ़ बीघे जमीन पर सब्ज़ियाँ उगाकर गुजारा करता था। वह मुँह अँधेरे खेत में पके तरबूजे तोड़ने गया था ताकि उन्हें इकट्ठा कर बाजार में बेच सके। खेत की गीली मेड़ की तरावट में एक साँप विश्राम कर रहा था। भगवाना उसे देख न पाया और उसका पैर साँप पर पड़ गया। साँप ने उसे डॅस लिया। साँप का जहर उतारने के लिए ओझा को बुलवाया गया, पर विष के असर से उसका शरीर काला पड़ता गया और उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न: कभी-कभी पोशाकें मनुष्य के लिए बाधक सिद्ध होती हैं। ऐसी पोशाकों की तुलना किससे की है और क्यों ?

उत्तर: मनुष्य जब अच्छी पोशाक पहनकर कहीं आ जा रहा होता है, उसी समय जब वह निम्न श्रेणी के समझे जाने वालों को दुखी देखता है तो वह उसके दुख से द्रवित होकर उसके दुख के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करना चाहता है परंतु वह अपनी अच्छी पोशाक के कारण चाहकर भी उसके पास जाकर ऐसा नहीं कर पाता है। लेखक ने ऐसी पोशाकों की तुलना । हवा में लहराती उन कटी पतंगों से की है जो हवा के झोकों के कारण सीधी जमीन पर नहीं गिर पाती हैं। इसी तरह पोशाकें भी मनुष्य को अपनी स्थिति से नीचे जाने से रोकती हैं।

प्रश्न: सूतक’ क्या है? समाज में इसके प्रति क्या धारणा फैली है? ‘दुख का अधिकार’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: हिंदू परिवारों में जब किसी की मृत्यु होती है तो उस दिन से तेरह दिनों तक घर को अपवित्र माना जाता है। इन दिनों में कोई मांगलिक और शुभ समझे जाने वाले कार्य नहीं किए जाते हैं। तेरह दिनों की इस अपवित्रता की स्थिति को सूतक कहते हैं। समाज में सूतक के प्रति यह धारणा फैली है कि इस स्थिति में उस परिवार के हर सदस्य और हर वस्तु अपवित्र होती हैं। इन सदस्यों के हाथ से ली गई वस्तुएँ खाने-पीने से व्यक्ति का धर्म-ईमान नष्ट हो जाता है और वह पाप का भागीदार बनता है। ऐसे में लोग सूतक से बचने का हर संभव प्रयास करते हैं।

प्रश्न: ‘दुख का अधिकार’ पाठ में किस सामाजिक बुराई की ओर संकेत किया गया है? इसके कारणों पर प्रकाश डालते हुए इससे होने वाली हानियों का भी उल्लेख कीजिए।

उत्तर: ‘दुख का अधिकार’ पाठ में साँप के काटने का इलाज झाड़-फेंक और ओझा से नाग देवता की पूजा-अर्चना कराने तथा अंत्येष्टि जैसे कार्य पर अपव्यय करने जैसी सामाजिक बुराई की ओर संकेत किया गया है। इन बुराइयों का कारण अशिक्षा, रूढ़िवादिता, धर्म का भय तथा जागरुकता का अभाव है जिसके कारण अनपढ़ और ग्रामीण लोग इन बुराइयों का सरलता से शिकार बन जाते हैं। इनमें फँसकर वे अपना धन और समय ही नहीं गॅवाते बल्कि पीड़ित और अपने प्रिय व्यक्ति की जान से भी हाथ धो बैठते हैं। इसकी सबसे अधिक मार गरीब परिवारों पर पड़ती है, जिन्हें बाद में खाने के भी लाले पड़ जाते हैं।

प्रश्न: ‘दुख का अधिकार’ पाठ का उद्देश्य मानवीय संवेदना जगाना है।’ पाठ के आलोक में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: ‘दुख का अधिकार’ पाठ में खरबूजे बेचने वाली महिला की दुखी मनोदशा का ऐसा चित्रण करता है जो किसी भी संवेदनशील मनुष्य के हृदय को झकझोर जाता है। हमारे समाज में ऐसे व्यक्ति भी हैं जो संवेदनहीनता के कारण खरबूजे बेचने वाली जैसी दुखी बेवश और शोकसंतप्त के दुख को महसूस नहीं कर पाते हैं। उनके लिए ऐसी दुखी महिला घृणा और उपहास के पात्र नज़र आते हैं। ये लोग दुखी व्यक्ति पर कटाक्ष करने से नहीं चूकते हैं। दूसरी ओर समाज में लेखक जैसे भी लोग हैं जो दूसरों को शोकसंतप्त देखकर मन से दुखी होते हैं परंतु कर्म करने के समय उनकी पोशाक आड़े आ जाती है। इस पाठ का मुख्य उद्देश्य यही है कि वे दूसरों के दुख की अनुभूति करें और दुखी व्यक्ति पर हँसना छोड़कर उसके साथ बैठकर उससे सच्ची सहानुभूति प्रकट करें।

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