एवरेस्ट: मेरी शिखर यात्रा Page [3] 9th Class (CBSE) Hindi
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न: ‘सागरमाथा’ क्या है? लेखिका को यह नाम कैसा लगा?
उत्तर: ‘सागरमाथा’ एवरेस्ट का दूसरा नाम है। एवरेस्ट का यह नाम नेपालियों में प्रसिद्ध है। लेखिका को एवरेस्ट का यह नाम अच्छा लगा।
प्रश्न: एवरेस्ट अभियान दल कब रवाना हुआ? उससे पहले अग्रिम दल क्यों भेजा गया?
उत्तर: एवरेस्ट अभियान दल दिल्ली से काठमांडू के लिए 7 मार्च को हवाई जहाज से रवाना हुआ। उससे पहले अग्रिम दल को इसलिए भेजा गया ताकि ‘बेस कैंप’ पहुँचने से पहले दुर्गम हिमपात के रास्ते को साफ़ कर सके।
प्रश्न: लेखिका को बड़ा फूल (प्लूम) कैसा लगा? यह फूल कैसे बनता है?
उत्तर: लेखिका को बड़ा फूल (प्लूम) पर्वत-शिखर पर लहराता हुआ ध्वज-सा लग रहा था। यह फूल पर्वत की ऊपरी शिखर पर लगभग 150 किलोमीटर या इससे भी अधिक गति से हवाएँ चलने पर बनता है।
प्रश्न: वह कौन-सी बात थी, जो लेखिका को डराने के लिए काफ़ी थी?
उत्तर: पर्वत शिखरों पर 150 किलोमीटर या इससे भी अधिक गति से तूफ़ानी और बरफ़ीली हवाएँ चलती हैं। शिखर पर जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफ़ानों को झेलना पड़ता है। यह बात लेखिका को डराने के लिए काफ़ी थी।
प्रश्न: शेरपा कुली की मृत्यु कैसे हुई थी?
उत्तर: खंभु हिमापात पर जाने वाले अभियान दल के रास्ते के बाईं तरफ सीधी पहाड़ी धसक गई थी। इस कारण ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी चट्टान नीचे खिसक आई थी, जिससे एक शेरपा कुली की मृत्यु हो गई थी।
प्रश्न: एवरेस्ट अभियान की पहली बाधा कौन-सी थी? इस बाधा का पता लेखिका को कैसे चला?
उत्तर: एवरेस्ट अभियान की पहली बाधा खंभु हिमपात थी। लेखिका को इस बाधा का पता अग्रिम दल का नेतृत्व कर रहे उपनेता प्रेमचंद से चला।
प्रश्न: अग्रिमदल ने एवरेस्ट अभियान दल की मदद किस तरह की?
उत्तर: अग्रिम दल एवरेस्ट अभियान दल से पहले ही खंभु हिमपात तक पहुँच गया और वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया। उन्होंने पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर झंडियों से रास्ते को चिनित करके सभी कठिनाइयों का जायजा ले लिया था।
प्रश्न: तीसरे दिन की किस सफलता को सुनकर कर्नल खुल्लर खुश हो रहे थे?
उत्तर: हिमपात से कैंप तक की चढ़ाई के लिए तीसरा दिन नियत था। लेखिका रीता गोंबू के साथ आगे बढ़ रही थी तथा वह वॉकी-टॉकी से हरकदम की जानकारी कर्नल खुल्लर को दे रही थी। कर्नल खुल्लर यह जानकार खुश हुए कि कैंप एक तक केवल दो महिलाएँ ही पहुँच सकी थी।
प्रश्न: लोपसांग ने लेखिका की जान किस तरह से बचाई ?
उत्तर: जब लेखिका अपने तंबू में बरफ़ में दबी थी तब लोपसांग ने अपनी स्विस छुरी से तंबू का रास्ता साफ़ करने में जुट गए उन्होंने लेखिका के चारों ओर जमे कड़े बरफ़ की खुदाई की और लेखिका को बरफ़ की कब्र से खींच निकाला।
प्रश्न: कर्नल खुल्लर ने किस कार्य को जबरदस्त साहसिक बताया?
उत्तर: लेखिका अपने दल के साथ एवरेस्ट अभियान पर जाती हुई 16 मई को सवेरे कैंप-दो पर पहुँची। जिस शेरपा की टाँग टूटी थी उसे स्ट्रेचर पर लिटाकर नीचे लाए। इस कार्य को कर्नल खुल्लर ने इतनी ऊचाई पर सुरक्षा कार्य का एक जबरदस्त साहसिक कार्य बताया।
प्रश्न: बचेंद्रीपाल ने जूस और चाय लेकर नीचे जाने का जोखिम क्यों लिया?
उत्तर: शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं इसलिए उन्हें अपने दल के सदस्यों की मदद करने का जोखिम उठाना चाहिए।
प्रश्न: लेखिका अंगदोरजी के साथ एवरेस्ट अभियान पर आगे क्यों चल पड़ी?
उत्तर: लेखिका बचेंद्री पाल अंगदोरजी के साथ अभियान पर इसलिए चल पड़ी क्योंकि अंगदोरजी बिना आक्सीजन के चढ़ाई करने वाला था। इस कारण उसके पैर ठंडे पड़ जाते थे। वह ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात्रि में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहता था। उसके साथ कोई और जाने को तैयार न था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न: 15-16 मई, 1984 की किस घटना से लेखिका को आश्चर्य हुआ?
उत्तर: 15-16 मई, 1984 को ल्होत्से की सीधी ढलान पर लगाए गए कैंप में पर्वतारोहियों का दल ठहरा था। रात साढ़े बारह बजे एक लंबा बरफ़ का पिंड हमारे कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बना गया था। हिमखंडों, बरफ़ के टुकड़ों तथा जमीं हुई बरफ़ के इस विशालकाय पुंज ने, एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए कैंप को तहस-नहस कर दिया। वास्तव में हर व्यक्ति को चोट लगी थी। यह एक आश्चर्य था कि किसी की मृत्यु नहीं हुई थी।
प्रश्न: साउथ कोल पहुँचते ही लेखिका तैयारियों में क्यों जुट गई और उसकी चिंता का कारण क्या था?
उत्तर: लेखिका जैसे साउथ कोल पहुँची, उसने अगले दिन की अपनी महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। उसने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। जब दोपहर डेढ़ बजे बिस्सा आया, उसने लेखिका को चाय के लिए पानी गरम करते देखा। की, जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। वह चिंतित थी क्योंकि उसे अगले दिन उनके साथ ही चढ़ाई करनी थी। वे धीरे-धीरे आ रहे थे क्योंकि वे भारी बोझ लेकर और बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।
प्रश्न: साउथकोल से आगे बढ़ते हुए लेखिका को क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी पड़ीं और क्यों?
उत्तर: अंगदोरजी के साथ साउथकोल से आगे बढ़ने पर लेखिका ने देखा कि बाहर हलकी-हलकी हवा चल रही थी और ठंड भी बहुत अधिक थी। लेखिका अपने आरोही उपस्कर में अच्छी स्थिति में थी। वह अंगदोरजी के साथ निश्चित गति से आगे बढ़ी जा रही थी। रास्ते में जमे हुए बरफ़ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें सख्त और भुरभुरी जो शीशे की चादरों जैसी थीं। लेखिका को बरफ़ काटने के लिए फावड़े का इस्तेमाल करना पड़ा और सख्ती से फावड़ा चलाना पड़ा ताकि बरफ़ कट जाए। उसने चलते हुए उन खतरनाक स्थलों पर अत्यंत सावधानी से कदम उठाया।
प्रश्न: अंगदोरजी क्या सुनकर आनंदित हुए? उन्होंने लेखिका को क्या बताया?
उत्तर: साउथकोल कैंप से अंगदोरजी के साथ लेखिका विपरीत परिस्थितियों में यात्रा करते हुए आगे बढ़ रही थी। वे दो घंटे से कम संमय में ही शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे उससे मुड़कर देखा कहा कि क्या वह थक गई है। उसने जवाब दिया, “नहीं”। जिसे सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और आनंदित हुए। उन्होंने कहा कि पहलेवाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि हम इसी गति से चलते रहे तो हम शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे।
प्रश्न: लेखिका ने अंगदोरजी के प्रति किस तरह धन्यवाद ज्ञापित किया? इस पर उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
उत्तर: ऐवरेस्ट के शिखर पर पहुँची भाव विभोर लेखिका ने ईश्वर और अपने माता-पिता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के बाद उठी और अपने दोनों हाथ जोड़कर अपने रज्जु-नेता अंगदोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। अंगदोरजी जिन्होंने उसे प्रोत्साहित किया और उसे लक्ष्य तक पहुँचाया। लेखिका ने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढाई चढ़ने पर बधाई भी दी। उन्होंने गले से लगाया और उसके कानों में फुसफुसाए, “दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। मैं बहुत प्रसन्न हूँ”।