इस जल प्रलय में 9th Class (CBSE) Hindi कृतिका
प्रश्न: पटना में आई बाढ़ से लेखक ने जो कुछ अनुभव किया वह पिछले अनुभवों से किस तरह भिन्न है?
उत्तर: लेखक दस वर्ष की उम्र से ही बाढ़ पीड़ितों से विभिन्न रूपों में जुड़ा रहा है। उसने रिलीफ वर्कर की हैसियत से काम भी किया है परंतु वह बाढ़ का भुक्तभोगी नहीं रहा था। 1967 में पटना में जो बाढ़ आई थी, लेखक उसका भुक्तभोगी रहा है। उसने बाढ़ के पानी का भयावह रूप देखा ही नहीं, बल्कि उसकी पीड़ा को सहा है। इस तरह पटना में आई बाढ़ का अनुभव पिछले अनुभवों से बिलकुल अलग था।
प्रश्न: कॉफ़ी हाउस पहुँचकर लेखक आतंकित क्यों हो गया? इस आतंक का उस पर क्या असर हुआ?
उत्तर: कॉफ़ी हाउस के पास पहुँचने पर लेखक ने देखा कि कॉफ़ी हाउस बंद कर दिया गया था। सड़क के एक किनारे पर एक मोटी डोरी के आकार वाला गेरुए-झाग फेन में उलझा पानी तेज़ी से सरकता आ रहा है। लेखक को यह पानी ‘मृत्यु के तरल दूत’ जैसा लगा जिसे देखकर वह आतंकित हो गया। इस आतंक के कारण उसने इस ‘दूत’ को हाथ जोड़कर सभय प्रणाम किया।
प्रश्न: लेखक ने ‘गैरिक आवरण’ किसे कहा है? यह कब और क्यों आच्छादित करता आ रहा था?
उत्तर: लेखक ने अपनी यादों पर पड़ने वाले उस परदे को ‘गैरिक आवरण’ कहा है जिसके कारण गांधी मैदान से जुड़ी उसकी स्मृतियाँ धूमिल होती जा रही हैं। यह आवरण पटना में बाढ़ आने पर इसलिए आच्छादित करता आ रहा था क्योंकि गांधी मैदान की हरियाली पर धीरे-धीरे पानी भरता जा रहा था।
प्रश्न: गांधी मैदान पहुँचकर लेखक ने कैसा दृश्य देखा? इस मैदान से जुड़ी कौन-कौन-सी यादें भूलती जा रही थीं?
उत्तर: गांधी मैदान पहुँचकर लेखक ने देखा कि इस मैदान की रेलिंग के सहारे इतने लोग खड़े थे कि उनकी संख्या दशहरा के दिन रामलीला के ‘राम’ के रथ की प्रतीक्षा करते लोगों से अधिक ही रही होगी। इस मैदान से जुड़ी आनंद-उत्सव, सभासम्मेलन और खेलकूद की सारी यादें लेखक को भूलती जा रही थीं।
प्रश्न: पटना को बाढ़ग्रस्त देखकर अधेड़ मुस्टंड ने क्या टिप्पणी की? उसकी टिप्पणी इस समय कितनी उचित थी, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: पटना को बाढ़ग्रस्त देखकर अधेड़ मुस्टंड ने व्यंग्य से कहा, “ईह। जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए अब बुझे!” उसकी ऐसी टिप्पणी इस अवसर पर तनिक भी उपयुक्त नहीं थी क्योंकि उसकी ऐसी टिप्पणी जले पर नमक छिड़कने जैसी थी। इस कथन में उसकी संवेदनहीनता झलक रही थी।
प्रश्न: लेखक ने दिल दहला देने वाला समाचार किसे कहा है और क्यों?
उत्तर: शाम साढ़े सात बजे आकाशवाणी के पटना केंद्र से प्रसारित स्थानीय समाचार में कहा गया कि पानी हमारे स्टूडियो की सीढ़ियों तक पहुँच चुका है और किसी भी क्षण स्टूडियो में प्रवेश कर सकता है। लेखक ने इस समाचार को दिल दहलाने वाला कहा है क्योंकि इसे सुनते ही लेखक और उसके मित्र के चेहरे पर आतंक की रेखाएँ उभर आईं।
प्रश्न: पान की दुकान पर एकत्रित लोग बाढ़ के संबंध में तरह-तरह की बातें कर रहे थे पर लेखक ने वहाँ से हट जाने में ही अपनी भलाई क्यों समझी?
उत्तर: शहर में बाढ़ का पानी घुसने की आशंका से पान वाले की दुकान पर लोग एकत्र हो गए और तरह-तरह की बातें करने लगे। लोग आम दिनों की तरह ही हँस-बोल रहे थे पर लेखक और उसका मित्र बाढ़ की अनहोनी से आतंकित थे। वे चाहकर भी प्रसन्न नहीं दिख रहे थे। लोगों के बीच इन दोनों की सूरतें ही ‘मुहर्रमी’ लग रही थी। इनकी बुज़दिली पर लोग उपहास न उड़ाए, इसलिए दोनों ने वहाँ से हट जाने में ही अपनी भलाई समझी।
प्रश्न: गुरुजी ने लेखक को बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में द्वीप जैसे बालूचर पर जाने से क्यों रोका?
उत्तर: लेखक ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में गुरुजी के साथ नाव से जाते हुए दूर एक द्वीप जैसा बालूचर देखा। लेखक वहाँ जाकर कुछ कदम चहल कदमी करना चाहता था परंतु गुरुजी ने उसे वहाँ जाने से इसलिए रोका क्योंकि ऐसी जगहों पर चींटे-चींटी, साँप-बिच्छू, लोमड़ी, सियार आदि जानवर पनाह लेने के लिए पहले ही पहुँच चुके होते हैं।
प्रश्न: बाढ़ की खबर सुनकर लोग किस तरह की तैयारी करने लगे?
उत्तर: बाढ़ की खबर से सारे शहर में आतंक मचा हुआ था। लोग अपने सामान को नीचली मंजिल से ऊपरी मंजिल में ले जा रहे थे। सारे दुकानदार अपना सामान रिक्शा, टमटम, ट्रक और टेम्पो पर लादकर उसे सुरक्षित स्थानों पर ले जा रहे थें। खरीद-बिक्री बंद हो चुकी थी। लोग घरों में खाने का सामान, दियासलाई, मोमबत्ती, दवाईयाँ, किरोसीन आदि का प्रबन्ध करने में लगे हुए थे।
प्रश्न: बाढ़ की सही जानकारी लेने और बाढ़ का रूप देखने के लिए लेखक क्यों उत्सुक था?
उत्तर: लेखक ने हमेशा बाढ़ के विनाश के विषय में सुना हुआ था, उसने अनेकों रचनाएँ भी उस विनाशलीला पर समर्पित की हुई थी और अनेकों पुरस्कार प्राप्त किए थे। पर कभी स्वयं बाढ़ को भोगने का अवसर उसे प्राप्त नहीं हुआ था। इसी कारणवश वह बाढ़ की विनाशलीला को स्वयं भोगने के लिए उत्सुक था। लेखक अपनी आँखों से इस पानी को शहर में घुसते हुए देखना चाहता था कि उसकी विनाशलीला कैसी होती है।
प्रश्न: सबकी ज़बान पर एक ही जिज्ञासा – ‘पानी कहाँ तक आ गया है?’ – इस कथन से जनसमूह की कौन-सी भावनाएँ व्यक्त होती हैं?
उत्तर: इस कथन से जनसमूह में जिज्ञासा के भाव उठते हुए जान पड़ते हैं। लोग बाढ़ की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए पैदल उस जगह जा रहे थे। सब के मन में व आँखों में एक ही प्रश्न जिज्ञासा का रुप ले चुका था – पानी कहाँ तक पहुँच गया होगा? उनके मन में यही प्रश्न उठ रहे थे कि पानी कौन-कौन से हिस्से को निगल गया होगा? उन्हें अभी बाढ़ के पानी का भय नहीं सता रहा था। वे बस बाढ़ के पानी की गति के विषय में जिज्ञासु थे।
प्रश्न: ‘मृत्यु का तरल दूत’ किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर: मोटी डोरी की शक्ल में गेरुआ-झाग-फेन में उलझे बाढ़ के पानी को लेखक ने तरल दूत कहा है। क्योंकि ये वो पानी था जिसका स्वरुप तरल था पर मौत का संदेश लेकर तेज़ी से बढ़ रहा था। जो अपने में शहरों, गाँवों को मृत्यु के विकराल दूत की भाँति निगल रहा था। इसलिए इसे मृत्यु का तरल दूत कहा गया है।
प्रश्न: आपदाओं से निपटने के लिए अपनी तरफ़ से कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर: बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है। इसके कारण हर जगह जल भराव हो जाता है क्योंकि मूसलाधार वर्षा के कारण नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। स्थिति ये बन जाती है कि लोगों को उस जगह को छोड़कर जाना पड़ता है और जो समय रहते नहीं जा पाते, उन्हें ऊँचे स्थानों का आश्रय लेना पड़ता है। इस आपदा से निपटने के लिए तात्कालिक व दीर्घकालिक उपाय करने चाहिए। बाढ़ में फँसे बाढ़ पीड़ितों को निकालने के लिए नावों का उचित प्रबन्ध करना चाहिए। खाद्य-सामग्री (राहत सामग्री) का पर्याप्त मात्रा में भंडारण करना आवश्यक है। बचाव कार्यों के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं व सरकार को पहले से ही तैयारी आरंभ कर देनी चाहिए। पर्याप्त दवाईयाँ व चिकित्सा के लिए डॉक्टरों को भी नियुक्त करना चाहिए।
प्रश्न: ‘ईह! जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए… अब बूझो!’ – इस कथन द्वारा लोगों की किस मानसिकता पर चोट की गई है?
उत्तर: इस कथन में उस गाँव के गँवार ने शहर के बाबू लोगों की स्वार्थी मानसिकता पर चोट की। उसके अनुसार जब दानापुर में बाढ़ के कारण महाविनाश फैल गया था तब कोई भी पूछने नहीं गया पर आज जब स्वयं का शहर डूब रहा है तो खुद हालचाल पता करने चले आ रहे हैं।
प्रश्न: खरीद-बिक्री बंद हो चुकने पर भी पान की बिक्री अचानक क्यों बढ़ गई थी?
उत्तर: इसका मुख्य कारण बाढ़ था। क्योंकि बाढ़ के कारण सारे लोग सामानों को दूसरे स्थान पर ले जाने लगे थे इसलिए खरीद-बिक्री बंद करनी पड़ी थी। बस अगर खुली थी तो पान की दुकानें, उनकी तो जैसे चाँदी हो रही थी। उनके द्वारा लगाए गए रेडियो व ट्रांजिस्टर लगातार बाढ़ का हाल-समाचार सुना रहे थे। लोग बाढ़ के हालातों को जानने के लिए पान वालों के यहाँ भीड़ लगाए हुए थे। वे पान भी खरीदते व साथ में बाढ़ की स्थिति का पता भी लगाते रहते थे।
प्रश्न: जब लेखक को यह अहसास हुआ कि उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उसने क्या-क्या प्रबंध किए?
उत्तर: लेखक ने पहले तो अपने लिए एक हफ्ते की पत्रिकाओं का स्टॉक खरीदा, तद् उपरांत घर में गैस की स्थिति के बारे में पत्नि से जानकारी ली। उसने आलू, मोमबत्ती, दियासिलाई, सिगरेट, पीने का पानी, दवाईयों का प्रबन्ध किया।
प्रश्न: बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में कौन-कौन सी बीमारियों के फैलने की आशंका रहती है?
उत्तर: बाढ़ के बाद हैजा, मलेरिया, टाइफाइड आदि बीमारियों के फैलने की संभावना रहती है क्योंकि बाढ़ के उतरे पानी में मच्छर अत्यधिक मात्रा में पनपते हैं जिसके कारण मलेरिया जैसी बीमारी हो जाती है। पानी की कमी से लोगो को गंदा पानी पीना पड़ता है जो हैजा और टाइफाइड जैसी बीमारियों को न्यौता देता है।
प्रश्न: नौजवान के पानी में उतरते ही कुत्ता भी पानी में कूद गया। दोनों ने किन भावनाओं के वशीभूत होकर ऐसा किया?
उत्तर: दोनों ने एक दूसरे के प्रेम में वशीभूत होकर ऐसा किया। वह बीमार युवक सिर्फ़ इसलिए नौका से उतर गया था क्योंकि डॉक्टर ने उसके कुत्ते को ले जाने से मना कर दिया परन्तु वह इससे इतना प्रेम करता था कि इसके बिना जाना नहीं चाहता था और अपनी परवाह किए बिना नौका से उतर गया। वहीं दूसरी ओर कुत्ता भी अपने मालिक से प्रेम व्यक्त करता है। वह इतना स्वामी भक्त था कि मालिक के उतरते ही स्वयं भी उतर गया। वह दोनों एक अनूठे प्रेम के प्रतीक हैं।
प्रश्न: ‘अच्छा है, कुछ भी नहीं। कलम थी, वह भी चोरी चली गई। अच्छा है, कुछ भी नहीं – मेरे पास।’ – मूवी कैमरा, टेप रिकॉर्डर आदि की तीव्र उत्कंठा होते हुए भी लेखक ने अंत में उपर्युक्त कथन क्यों कहा?
उत्तर: यहाँ लेखक के बाढ़ से उत्पन्न दु:ख को व्यक्त किया गया है। वह इस घटना को पहले कैमरे में कैद करना चाहता था परन्तु उसके पास कैमरा उपलब्ध नहीं था। फिर उसके मन में विचार आया कि वह कलम के द्वारा पन्नों में इस त्रासदी को लिखे जिसे उसने पहले स्वयं भोगा था पर उसकी कलम भी उसके पास नहीं थी। वो भी चोरी हो गई थी। इतनी तीव्र उत्कंठा होते हुए भी लेखक ने सोचा की अच्छा है, कुछ भी नहीं क्योंकि बाढ़ के इस सजीव भयानक रुप को अगर वो अपने कैमरे व कलम से पन्नों पर उतार भी लेता तो उसे दु:ख ही तो प्राप्त होता। उसे बार-बार देखकर, पढकर उसे कुछ प्राप्त नहीं होता तो फिर उनकी तस्वीर लेकर वह क्या करता।
प्रश्न: आपने भी देखा होगा कि मीडिया द्वारा प्रस्तुत की गई घटनाएँ कई बार समस्याएँ बन जाती हैं, ऐसी किसी घटना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: 30 अगस्त, 2007 में लाइव इंडिया चैनल ने सर्वोदय विद्यालय की एक अध्यापिका उमा खुराना पर स्टिंग आपरेशन करके पूरे भारत में सनसनी फैला दी थी। चैनल की माने तो, उन पर अपने ही विद्यालय की छात्राओं से वेश्वावृति करवाने का आरोप लगाया गया था। अन्य चैनलों ने भी बिना सच्चाई जाने इस घटना को और बढ़-चढ़कर दिखाया। इसका परिणाम यह हुआ कि दरियागंज इलाके में हिंसा भड़क उठी तथा पूरे दिल्ली शहर में अशांति छा गई। विद्यालय पर तथा उमा खुराना के घर के बाहर पथराव होने लगे। लोग सड़कों पर उतर आए और सरकार और विद्यालय के विरूद्ध जमकर नारे लगाने लगे। इसका परिणाम यह हुआ कि उमा खुराना को तुरंत निलबिंत कर दिया गया। पुलिस ने भी उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लोगों ने सामूहिक रूप से उमा खुराना के साथ मारपीट की तथा उनके साथ दुर्व्यव्हार किया। बाद में जब इस विषय पर पुलिस द्वारा हस्तेक्षप किया गया, तो पाया गया कि अध्यापिका पर हुआ स्टिंग आपरेशन फर्ज़ी था। चैनल ने स्टिंग आपरेशन करने वाले प्रकाश सिंह पर यह आरोप लगाकर पल्ला झाड़ लिया कि रिपोर्टर ने हमें अंधेरे में रखा। यदि चैनल इसे प्रसारित करने से पहले इसकी सच्चाई पर ध्यान देता तो उमा खुराना तथा शहर को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता। मीडिया द्वारा उमा खुराना से माफी माँगकर उनका दुख कम नहीं किया जा सकता है और ना ही उनका खोया हुआ सम्मान वापिस दिलाया जा सकता है।
प्रश्न: अपनी देखी-सुनी किसी आपदा का वर्णन कीजिए।
उत्तर: मैं अपने चाचा की शादी के लिए उत्तरकाशी के प्रेमनगर नामक स्थान में गई थी। 17 जून 2013 का दिन था, जब वह स्थान बाढ़ की तबाही में बदल गया। गर्मी का मौसम था। हमने सोचा भी नहीं था कि इस मौसम में बारिश होगी। परन्तु हमारे पहुँचने के बाद ही से यहाँ लगातार अट्ठारह घंटे वर्षा होने लगी। परिणामस्वरूप नदी में बाढ़ आ गई। प्रेमनगर नदी के किनारे पर स्थित नगर है। धीरे-धीरे पानी नदी के तटबंधों को तोड़ता हुआ किनारे बने घरों को धराशाही करने लगा। उसके रास्ते में जो भी आ रहा था, वह उसे भयानक राक्षस की तरह निगल रहा था। उसे देखकर देखने वालों की साँसे थम गई। लोग नदी के किनारे बने मकानों को तुरंत छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाने लगे। हमने तथा अन्य लोगों ने वहाँ के स्कूलों तथा अन्य संबंधियों के घर शरण लेना आरंभ कर दिया। मैंने पानी का भयानक रूप इससे पहले कभी नहीं देखा था। यह स्थिति प्रलय से कम नहीं थी। हम दूर बने मकानों की छत पर चढ़कर इस भयानक दृश्य को देखते ही रह गए। लगातार वर्षा ने हमारे शहर को पूरे देश से काट दिया। एक महीने तके हम यहाँ फंसे रह गए। इन दिनों में यहाँ के हालात बहुत ही खराब हो चुके थे। खाने की वस्तुओं तथा अन्य सामानों के मूल्य बढ़ गए। पानी शहर में आ गया था। चारों तरफ कीचड़ हो गया था। नदी ने शहर के बाहरी हिस्सों को नष्ट कर डाला था। दुकानें और होटल बह चुके थे। लोग आर्थिक हानी से परेशान बैठे रो रहे थे। बाद में पता चला कि उत्तराखंड के केदारनाथ में इससे भी बुरे हाल थे। वहाँ पर तो भोजन के लिए लोग तरस रहे थे। हमें दिल्ली पहुँचने के लिए कई किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ी, तब जाकर हमें आगे की यात्रा के लिए बस मिल पायी।
प्रश्न: नौजवान और कुत्ते के व्यवहार को देखकर आपको किन जीवन मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है? ‘इस जल प्रलय में’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: लेखक और उसके साथी महानंदा से घिरी बाढ़ में लोगों को राहत सामग्री बाँटने गए थे। नाव पर एक डॉक्टर साहब भी थे। एक बीमार नौजवान कैंप में जाने के लिए जब नाव पर चढ़ने लगा तो उसके साथ उसका कुत्ता भी नाव पर चढ़ आया। डॉक्टर जब कुत्ते को उतारने के लिए कहने लगे तो नौजवान नाव से कूद गया। यह देखकर उसका कुत्ता भी नाव से कूद गया। इस व्यवहार से हमें जीव-जंतुओं से प्रेम करने, उनके साथ मज़बूत भावनात्मक संबंध रखने, एक दूसरे के सुख-दुख में काम आने तथा एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करने जैसे जीवन मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है।
प्रश्न: मुसहरी में राहत सामग्री बाँटने गया लेखक राहत सामग्री बाँटना क्यों भूल गया? इन लोगों के कार्य व्यवहार से आपको किन जीवन मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है? (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर: लेखक और उसके साथी परमान नदी की बाढ़ में डूबे मुसहरों की बस्ती में राहत बाँटने गए। बाढ़ में फँसे ये लोग मछली और चूहों को झुलसाकर खाते हुए किसी तरह दिन बिता रहे थे। वहाँ पहुँचकर लेखक ने देखा की वहाँ तो बलवाही नाच हो रहा था। यहाँ धानी का अभिनय करता ‘नटुआ’ और दूसरे व्यक्ति ने अपने अभिनय से ऐसा दृश्य बना रखा है। कि जिसे देखकर कीचड़-पानी में लथपथ भूखे-प्यासे नर-नारियों के झुंड खिलखिलाकर हँस रहे हैं। उनकी ऐसी उन्मुक्त खिल-खिलाहट देखकर लेखक राहत सामग्री बाँटना भूल गया। मुसहरों के कार्य व्यवहार से हमें दुख को धैर्यपूर्वक सह लेने, विपरीत परिस्थितियों में खुश रहने, एक-दूसरे का दुख बाँटने तथा दुख का साहसपूर्वक सामना करते हुए उसे जीत लेने जैसे जीवन-मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है।