कीचड़ का काव्य Page [2] 9th Class (CBSE) Hindi
कीचड़ का काव्य – निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए:
प्रश्न: नदी किनारे अंकित पदचिह्न और सींगों के चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख में लिखा हो ऐसा भास होता है।
उत्तर: इस गद्यांश का आशय यह है कि नदी के किनारे जब दो मदमस्त पाड़े अपने सींगों से कीचड़ को रौंदकर आपस में लड़ते हैं, जब नदी के किनारे उनके पैरों तथा सींगों के चिह्न अंकित हो जाते हैं, ऐसा लगता है मानो महिषकुल का युद्ध हुआ हो और उसके चिह्न अंकित हो गए। यह दृश्य बहुत सुन्दर लगता है। जैसे कोई इतिहास रचा गया हो।
प्रश्न: “आप वासुदेव की पूजा करते हैं इसलिए वसुदेव को तो नहीं पूजते, हीरे का भारी मूल्य देते हैं किन्तु कोयले या पत्थर का नहीं देते और मोती को कठ में बाँधकर फिरते हैं किंतु उसकी मातुश्री को गले में नहीं बाँधते।” कस-से-कम इस विषय पर कवियों के साथ चर्चा न करना ही उत्तम !
उत्तर: कवियों का कहना है कि एक अच्छी और सुंदर वस्तु को स्वीकार करते हैं तो उससे जुड़ी चीज़ों को भी स्वीकार करना चाहिए। हीरा कीमती होता है परन्तु उसके उत्पादक कार्बन को ज़्यादा नहीं पूछा जाता। श्री कृष्ण को वासुदेव कहते हैं लोग उन्हें पूजते भी हैं परन्तु उनके पिता वसुदेव को भी पूजे यह ज़रूरी नहीं है। इसी तरह मोती इतना कीमती होता है लोग इसे गले में पहनते हैं पर सीप जिसमें मोती होता है इसे गले में बाँधे यह ज़रूरी नहीं है। अत: कवियों के अपने तर्क होते हैं। उनसे इस विषय पर बहस करना बेकार है।
प्रश्न: न, नहीं, मत का सही प्रयोग रिक्त स्थानों पर कीजिए:
- तुम घर …………. जाओ।
- मोहन कल …………. आएगा।
- उसे …………. जाने क्या हो गया है?
- डाँटो …………. प्यार से कहो।
- मैं वहाँ कभी …………. जाऊँगा।
- …………. वह बोला …………. मैं।
उत्तर:
- तुम घर मत जाओ।
- मोहन कल नहीं आएगा।
- उसे न जाने क्या हो गया है?
- डाँटो मत प्यार से कहो।
- मैं वहाँ कभी नहीं जाऊँगा।
- न वह बोला न मैं।
कीचड़ का काव्य – लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर:
प्रश्न: लेखक को कौन-सी दिशा का सौंदर्य अच्छा लग रहा था? यह सौंदर्य जल्दी ही क्यों समाप्त हो गया?
उत्तर: लेखक को उत्तर दिशा का सौंदर्य अच्छा लग रहा था। उस समय सूर्योदय से पूर्व की लाली उत्तर दिशा में छाई थी। यह सौंदर्य जल्दी ही समाप्त हो गया क्योंकि सूर्योदय होने से आसमान की लालिमा गायब हो चुकी थी।
प्रश्न: ‘कीचड़ का काव्य’ पाठ में लेखक ने किस यथार्थ का उल्लेख किया है?
उत्तर: ‘कीचड़ का काव्य’ पाठ में लेखक ने कीचड़ के प्रति लोगों की सोच संबंधी यथार्थ का उल्लेख किया है। लोगों का मानना है कि कीचड़ उनके शरीर और कपड़ों को गंदा करता है। लोग न कीचड़ में पैर डालना पसंद करते हैं और न शरीर से कीचड़ को छूना देना चाहते हैं।
प्रश्न: सूख जाने पर कीचड़ किस तरह का दिखाई पड़ता है?
उत्तर: अधिक गरमी से कीचड़ जब सूख जाता है तो उसमें दरारें पड़ जाती हैं। इससे वह टुकड़ों में बँट जाता है। टेढ़ी-मेढ़ी इन दरारों के कारण सूखे कीचड़ का आकार भी टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है। उनका यह रूप सुखाए खोपरे जैसा लगता है।
प्रश्न: गीले कीचड़ पर पक्षियों के पंजों का चिह्न कीचड़ की सौंदर्य वृधि किस तरह कर देता है?
उत्तर: नदी के किनारे मीलों दूर तक फैले कीचड़ के कुछ सूख जाने पर बगुले और अन्य पक्षी जब चलते हैं तो उनके तीन नाखून और अँगूठा पीछे अंकित हो जाता है। यही क्रम दूर-दूर तक फैले कीचड़ पर देखा जा सकता है जो कीचड़ की सौंदर्य वृद्धि करता है।
प्रश्न: कर्दमलेख में किसका इतिहास लिखा जाता है और कैसे?
उत्तर: थोड़ा सूखे कीचड़ पर जब दो पाडे मदमस्त होकर लड़ते हैं तो उनके कर्दमलेख में महिषकुल के पूरे भारतीय युद्ध का इतिहास लिख जाता है। ये पाड़े कीचड़ में सींग रगड़-रगड़कर लड़ते हैं। इससे उनकी सींगों और खुर के निशान कीचड़ पर चित्रित हो जाते हैं।
प्रश्न: लेखक ने कवियों की किस वृत्ति पर व्यंग्य किया है? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखक ने कवियों की उस युक्तिशून्य वृत्ति पर व्यंग्य किया है जिसके कारण वे ‘पंक’ शब्द से घृणा करते हैं, परंतु उसी पंक में उगने वाले ‘पंकज’ शब्द का प्रयोग कवि अपने काव्य में करते हैं और आह्लादित होते हैं।
प्रश्न: लेखक काका कालेलकर कवियों की किस वृत्ति को तर्कहीन मानते हैं? कीचड़ का काव्य पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: कवि अपनी बात का समर्थन करते हुए पंक और पंकज के संबंध में वासुदेव और वसुदेव, हीरा और कोयला, मोती और उसकी जननी सीप का उदाहरण देते हैं। लेखक काका कालेलकर उनकी इस मुक्तिशून्य वृत्ति को तर्कहीन मानते हैं।
प्रश्न: मनुष्य कीचड़ का तिरस्कार करना कब बंद कर देगा? कीचड़ का काव्य पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: मनुष्य कीचड़ का नाम लेते ही उसके प्रति तिरस्कार का भाव प्रकट करने लगता है। वह कीचड़ से दूरी बनाए रखता है। परंतु उसे इसका ध्यान नहीं रहता कि उसको पोषणदायी अनाज उसी कीचड़ से उगता है। इस बात का ज्ञान होते ही वह कीचड़ का तिरस्कार करना बंद कर देगा।
प्रश्न: खंभात का कीचड़ गंगा तथा अन्य नदियों के किनारे जाने वाले कीचड़ से किस तरह भिन्न है?
उत्तर: खंभात में यही नदी के आसपास पाया जाने वाला असीमित दूरी तक फैला है। जहाँ तक दृष्टि जाती है, बस कीचड़ ही कीचड़ नज़र आता है। इस कीचड़ में हाथी तो क्या पहाड़ भी डूब जाएँगे जबकि गंगा एवं अन्य नदियों के किनारे इती ज्यादा मात्रा में कीचड़ नहीं है।
प्रश्न: ‘कीचड़ का काव्य’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: ‘कीचड़ का काव्य’ पाठ का उद्देश्य यह है कि मनुष्य कीचड़ को हेय समझकर उसका तिरस्कार न करे। वह इस बात को हमेशा ध्यान में रखे उसे पोषण देने वाला अन्न कीचड़ में ही पैदा होता है। कीचड़ घृणा की वस्तु नहीं हो सकती है। अतः कीचड़ को हेय न मानकर श्रद्धेय मानना चाहिए।
कीचड़ का काव्य – दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर:
प्रश्न: ‘कीचड़ का काव्य’ पाठ में वर्णित सुबह का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर: ‘कीचड़ का काव्य’ पाठ में वर्णित सुबह अन्य दिनों की सुबह जैसे ही थी। उसमें कुछ विशेष आकर्षण न था परंतु उत्तर दिशा में छाई लालिमा का सौंदर्य अद्भुत था। उस दिशा में लाल रंग कुछ ज्यादा ही आकर्षक लग रहा था। पूरब की दिशा में अब तक कोई विशेष रंग न था। उत्तर दिशा में छाया यह सौंदर्य अधिक समय तक न टिक सका। देखते ही देखते लालिमा भी क्षीण होती गई। वहाँ के बादलों का रंग रूई की पूनी जैसा सफ़ेद हो गया और प्रतिदिन की भाँति दिन शुरू हो चुका था।
प्रश्न: लेखक काका कालेलकर की दृष्टि कीचड़ के प्रति अन्य लेखकों से किस तरह भिन्न है? पठित पाठ के आलोक में लिखिए।
उत्तर: लेखक काका कालेलकर कीचड़ की महत्ता अच्छी तरह समझते हैं। उन्हें अच्छी तरह भान है कि जीवन का आधार अन्न इसी कीचड़ में पैदा होता है। यदि कीचड़ न हो तो प्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। वे कीचड़ में भी सौंदर्य देखते हैं। वे भिन्न उदाहरणों से कीचड़ के रंग की लोकप्रियता के बारे में बताते हैं। लेखक को सूखे कीचड़ में सुखाए। खोपरों का सौंदर्य और पक्षियों से बने पदचिह्नों का सौंदर्य अद्भुत लगता है जबकि कवियों को पंक घृणित एवं हेय लगता है। इस प्रकार कीचड़ के प्रति उसकी दृष्टि कवियों से भिन्न है।
प्रश्न: आप कीचड़ के प्रति क्या सोचते हैं? आप उसे हेय समझते हैं या श्रद्धेय लिखिए।
उत्तर: कीचड़ के संबंध में मेरे विचार काका कालेलकर जैसे ही हैं। मुझे कीचड़ की महत्ता का ज्ञान है। मुझे यह भी पता चल चुका है कि कीचड़ में हमारा भोजन अन्न उगता है। इसके बिना भूखों मरने की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। मैं कीचड़ के गंदेपन पर नहीं बल्कि उसकी उपयोगिता और सौंदर्य पर विचार करता हूँ। इसके अलावा पंक के बिना पंकज (कमल) कहाँ होता। यदि कीचड़ न होता तो हम उसके सौंदर्य से ही वंचित न रहते अपितु पक्षियों और जीव जंतुओं के चलने से कीचड़ पर चित्रित अद्भुत चित्र को भी देखने से वंचित रह जाते। इन कारणों से मैं कीचड़ को श्रद्धेय समझता हूँ।