किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया 9th Class (CBSE) Hindi कृतिका
प्रश्न: वह ऐसी कौन सी बात रही होगी जिसने लेखक को दिल्ली जाने के लिए बाध्य कर दिया?
उत्तर: कवि शायद अपनी पत्नी की बीमारी से मृत्यु के कारण देहरादून से खिन्न हो चुका था या फिर घरवालों द्वारा कुछ ना करने के कारण उसको बुरा लगा। जिसके कारण वह बिना कुछ कहे घर से दिल्ली के लिए निकल गया।
प्रश्न: लेखक को अंग्रेज़ी में कविता लिखने का अफ़सोस क्यों रहा होगा?
उत्तर: लेखक अपनी कविता उर्दू व अंग्रेज़ी में ही लिखता था। अपने हिंदी लेखक मित्रों की संगति में आकर ही उसे हिंदी के प्रति आकर्षण पैदा हुआ। तब उसे अपने द्वारा अंग्रेज़ी में कविता लिखने का अफ़सोस हुआ। क्योंकि उस के घर का माहौल खालिस उर्दू था इसलिए उसे उर्दू में महारत हासिल थी। अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए वह अंग्रेज़ी व उर्दू दो भाषाओं पर आश्रित था। हिंदी के संपर्क में आकर उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और वह हिंदी का लेखक बन गया।
प्रश्न: अपनी कल्पना से लिखिए कि बच्चन ने लेखक के लिए ‘नोट’ में क्या लिखा होगा?
उत्तर: बच्चन जी ने नोट में इस प्रकार लिखा होगा:
प्रिय मित्र,
मुझे तुम्हारी बहुत चिन्ता हो रही थी इसीलिए तुम्हारा हाल-चाल जाने चला आया। परन्तु तुम नहीं मिले। मित्र मेरे रहते तुम्हें किसी प्रकार की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। मैंने तुम्हारी रचनाएँ पढ़ी। तुम्हारे अन्दर एक लेखक व कवि छुपा है। तुम अपना सारा ध्यान साहित्य साधना में लगाओ। एक दिन तुम उच्चकोटि के लेखक व कवि कहलाओगे। मेरी तरफ़ से तुम्हें हर प्रकार की सहायता मिलेगी। मुझसे सम्पर्क बनाए रखना।
तुम्हारा मित्र
हरिवंश
प्रश्न: लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के किन-किन रूपों को उभारा है?
उत्तर: लेखक के अनुसार बच्चन जी के व्यक्तित्व के निम्नलिखित रुप इस प्रकार हैं:
- बच्चन जी एक सहृदय कवि थे।
- बच्चन दूसरों की मदद करने हेतु समर्पित व्यक्ति थे। लेखक की कविता से ही वह इतने प्रसन्न थे कि उनकी पढ़ाई का ज़िम्मा उन्होंने अपने सर पर ले लिया था।
- बच्चन जी प्रतिभा पारखी व्यक्ति थे। लेखक की प्रतिभा का आकलन कर उन्होंने उसको आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया था।
- लेखक के अनुसार बच्चन की तुलना करना बहुत मुश्किल था। उनके अनुसार वह साधारण और सहज (दुष्प्राप्य) व्यक्ति थे। असाधारण शब्द तो जैसे उनकी मर्यादा को कम करने जैसा था।
प्रश्न: बच्चन के अतिरिक्त लेखक को अन्य किन लोगों का तथा किस प्रकार का सहयोग मिला?
उत्तर:
- पंत के सहयोग से लेखक को हिंदू बोर्डिंग हाउस के कॉमन रूम में एक सीट प्राप्त हो गई थी तथा साथ में इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला।
- उकील आर्ट स्कूल में शारदाचरण जी के सहयोग से लेखक को फ्री दाखिला मिला।
- पंत एवं निराला जी के सहयोग व प्रेरणा से कविता लिखना आरंभ किया।
प्रश्न: लेखक के हिंदी लेखन में कदम रखने का क्रमानुसार वर्णन कीजिए।
उत्तर: सन् 1933 में लेखक की कुछ रचनाएँ जैसे ‘सरस्वती’ और ‘चाँद’ छपी। बच्चन द्वारा ‘प्रकार’ की रचना लेखक से करवाई गई। बच्चन द्वारा रचित ‘निशा-निमंत्रण’ से प्रेरित होकर लेखक ने ‘निशा-निमंत्रण के कवि के प्रति’ कविता लिखी थी। निराला जी का ध्यान सरस्वती में छपी कविता पर गया। उसके पश्चात् उन्होंने कुछ हिंदी निबंध भी लिखे व बाद में ‘हंस’ कार्यालय की ‘कहानी’ में चले गए। तद्पश्चात् उन्होंने कविताओं का संग्रह व अन्य रचनाएँ भी लिखी।
प्रश्न: लेखक ने अपने जीवन में जिन कठिनाइयों को झेला है, उनके बारे में लिखिए।
उत्तर: लेखक को अपने जीवन में निम्नलिखित कठिनाइयों से गुजरना पड़ा:
- सर्वप्रथम जब वे दिल्ली आए तो उसके पास पाँच-सात रुपए ही थे। उनको अपनी प्रतिभा के कारण फ़ीस दिए बिना ही दाखिला मिल गया था। उनके पास धन का अभाव था यदि उन्हें मुफ्त दाखिला नहीं मिलता तो वे अपनी स्कूल की फ़ीस भी नहीं दे पाते।
- वे जीवन के बड़े बुरे दौर से गुजर रहे थे – वे बेरोजगार थे, उनकी पत्नी की टी.बी की बीमारी के कारण अकाल मृत्यु हो गई थी। वे बिल्कुल अकेले व अर्थहीन जिंदगी बिता रहे थे। साइनबोर्ड पेंट करके अपना गुजारा चला रहे थे।
- उसके पश्चात् अपने ससुराल वालों की मदद से उन्होंने कैमिस्ट का काम सीखा और बच्चन जी के सहयोग से एम.ए. की परीक्षा दे रहे थे परन्तु अपना एम.ए पूरा न कर सके।
प्रश्न: यद्यपि शमशेर बहादुर को अपने जीवन में संघर्ष करना पड़ा पर इसी संघर्ष से वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी बन गए। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: शमशेर बहादुर को अपने जीवन में कदम-कदम पर संघर्ष करना पड़ा। इस संघर्ष की आग में तपकर वे खरे सोने की भाँति निखरते चले गए। उकील आर्ट स्कूल में पेंटिंग सीखते समय किए संघर्ष से वे कुशल चित्रकार बने। देहरादून में कंपाउंडरी सीखा और नुस्खे पढ़ना सीख लिया। वे उर्दू में गज़ल और शेर लिखते थे परंतु ‘बच्चन जी की प्रेरणा’, ‘पंत’ और ‘निराला’ के सहयोग ने काव्य रचना करने लगे। निरंतर अभ्यास करने के लिए वे हिंदी के अच्छे गद्यकार भी बन गए। इस तरह शमशेर बहादुर संघर्ष से बहुमुखी प्रतिभा के धनी बन गए।
प्रश्न: ‘जैसे मैं फिर से तैरना सीख रहा हूँ।’ – लेखक ने ऐसा किस संदर्भ में कहा है और क्यों?
उत्तर: लेखक के घर में उर्दू का वातावरण था। वह उर्दू में शेर और गज़ल लिखता था। हिंदी पर उसका अधिकार न था पर बच्चन जी के बुलावे पर 1933 में इलाहाबाद आ गया और हिंदी में लिखना शुरू कर दिया। उसकी कुछ कविताएँ ‘सरस्वती’ और चाँद’ पत्रिकाओं में छप गईं। इलाहाबाद से जाने के बाद हिंदी में लिखने का अभ्यास छूट गया। 1937 में दुबारा इलाहाबाद आने पर उसने महसूस किया कि उसे हिंदी में ही लिखना चाहिए किंतु तीन साल से उसका अभ्यास छूटा हुआ था। दुबारा हिंदी लेखन की शुरुआत करने के कारण उसे लग रहा था कि वह फिर से तैरना सीख रहा है।
प्रश्न: लेखक अपने जीवन में प्रायः बोर क्यों हो जाया करता था? पठित पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: लेखक जिस समय देहरादून से अचानक दिल्ली आया था, वह अकेला था। यहाँ आर्ट स्कूल में दाखिला लेने पर स्कूल आते-जाते समय वह अकेला होता था। वह किराये के जिस कमरे में रहता था। वहाँ भी उसका कोई साथी न था। इसके अलावा उसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी जिससे वह एकाकी एवं दुखी रहता था और प्रायः बोर हो जाया करता था।
प्रश्न: लेखक ने अपने किस निर्णय को घोंचूपन और पलायन करना कहा है?
उत्तर: लेखक ने अपने पिता को सरकारी नौकरी करते हुए देखा था। उसके मन में सरकारी नौकरी के प्रति अच्छे विचार नहीं पनप सके। यहीं से उसके मन में यह बात बैठ गई कि उसे सरकारी नौकरी नहीं करनी है। बाद में परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए लेखक ने महसूस किया कि सरकारी नौकरी के प्रति नकारात्मक विचार रखना और नौकरी न करने का उसका निर्णय सही नहीं था। इसी निर्णय को उसने घोंचूपन और जीवन की सच्चाइयों से दूर भागते रहने को पलायन करना कहा है।
प्रश्न: लेखक को हिंदी लेखन की ओर आकर्षित करने में किन-किन साहित्यकारों का योगदान रहा और किस प्रकार?
उत्तर: लेखक को हिंदी की ओर आकर्षित करने में सबसे प्रमुख योगदान हरिवंशराय बच्चन का था। उन्होंने उकील आर्ट स्कूल के स्टूडियो में लेखक के लिए नोट छोड़ा। इसके बाद वे लेखक से देहरादून में केमिस्ट शॉप पर मिले और इलाहाबाद आने के लिए उसे आमंत्रित किया। उन्हीं के आमंत्रण पर लेखक इलाहाबाद आया, एम.ए. में नाम लिखवाया और हिंदी में लिखना शुरू किया।
तीन साल बाद इलाहाबाद आने पर उसने बच्चन जी की प्रेरणा से पुनः हिंदी में लिखना शुरू किया। इसी बीच उसकी कुछ कविताएँ ‘चाँद’ और ‘सरस्वती’ पत्रिकाओं में छप गईं। पंत जी ने उसकी रचना में संशोधन किया तथा निराला जी ने उसे प्रोत्साहित किया। इन साहित्यकारों की मदद के कारण ही वह हिंदी का नियमित लेखक बन सका।
प्रश्न: “न इस काबिल हुआ और न इसकी चिंता की।” लेखक ने ऐसा किस संदर्भ में कहा है और क्यों?
उत्तर: बच्चन जी के बुलावे पर लेखक इलाहाबाद आया। यहाँ बच्चन जी ने यूनिवर्सिटी में उसका दाखिला दिलवाया, उसकी फ़ीस भरी और लोकल गार्जियन बने। उन्होंने लेखक को समझाया कि वह मन लगाकर पढ़े। पढ़-लिखकर वह जब कुछ कमाने लगे, काबिल हो जाए, तो पैसा लौटा दे। इतना सहयोग मिलने के बाद भी लेखक एम.ए. पूरा न कर सका। सरकारी नौकरी करना उसे पसंद न था।
अन्य कार्य करते हुए वह इतना समर्थ नहीं हो पाया कि वह बच्चन जी का पैसा लौटा सके। पैसा न होने के कारण उसे लौटाने की चिंता करना भी व्यर्थ था। इसी संदर्भ में लेखक ने उक्तवाक्य कहा है।
प्रश्न: लेखक शमशेर बहादुर के व्यक्तित्व का उल्लेख करते हुए बताइए कि इससे आपको किन-किन मूल्यों को ग्रहण करने की प्रेरणा मिलती है?
उत्तर: लेखक शमशेर बहादुर स्वाभिमानी व्यक्ति थे। वे अपने ही घर के सदस्य की बात सहन नहीं कर पाए और दिल्ली चले आए। यहाँ आकर वे विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करते रहे और चित्रकला सीखी। वे विपरीत परिस्थितियों से घबराए। बिना आगे बढ़ने का प्रयास करते रहे। देहरादून में उन्होंने लगन से कंपाउंडरी सीखी और अंग्रेजी, उर्दू भाषा की सीमा में बँधे बिना हिंदी में लेखन करने लगे। शमशेर बहादुर सिंह के व्यक्तित्व से हमें स्वाभिमानी बनने, मन लगाकर काम करने, विपरीत परिस्थितियों से हार न मानने तथा बड़ों का आदर सम्मान करने जैसे जीवन मूल्य ग्रहण करने की प्रेरणा मिलती है।
प्रश्न: ‘बच्चन जी समय पालन के प्रति पाबंद थे।’ पठित पाठ में वर्णित घटना के आधार पर स्पष्ट कीजिए। इससे आपको किन मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है?
उत्तर: बच्चन जी समय पालन के पाबंद थे। यह बात पाठ की उस घटना से स्पष्ट होती है जब इलाहाबाद में जोरदार वर्षा हो रही थी। बच्चन जी को कहीं जाना था। उन्हें स्टेशन पर गाड़ी पकड़नी थी। रात हो चुकी थी और वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी। मेजबान उन्हें रुकने के लिए बार-बार कह रहे थे और बाहरी कुली और रिक्शा न मिलने की समस्या बता रहे थे पर बच्चन जी ने अपना बिस्तर उठाया, सिर पर रखा और स्टेशन के लिए निकल पड़े। इस घटना से हमें समय का महत्व समझने, समय का पाबंद होने, दृढ़ निश्चयी होने और गंतव्य पर समय से पहुँचने जैसे जीवनमूल्यों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है।