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9th Hindi NCERT CBSE Book Kshitij

ल्हासा की ओर: 9th Class (CBSE) Hindi Kshitij Chapter 02

ल्हासा की ओर 9th Class (CBSE) Hindi क्षितिज

प्रश्न: लेखक ने तिब्बत की यात्रा किस वेश में की और क्यों?

उत्तर: लेखक ने तिब्बत की यात्रा भिखमंगों के वेश में की क्योंकि उस समय तिब्बत की यात्रा पर प्रतिबंध था। इसके अलावा डाँडे जैसी खतरनाक जगहों पर डाकुओं से इसी वेश में जान बचायी जा सकती थी।

प्रश्न: तिब्बत यात्रा के दौरान लेखक ने क्या-क्या नए अनुभव प्राप्त किए?

उत्तर: अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान लेखक ने पाया कि वहाँ समाज में छुआछूत, परदा प्रथा जैसी बुराइयाँ नहीं है। वहाँ औरतों को अधिक स्वतंत्रता मिली है। लोगों में छंड पीने का रिवाज है। बौद्ध धर्म के अनुयायी तिब्बती अंधविश्वासी भी है।

प्रश्न: तिब्बत में यात्रियों के लिए कौन-सी अच्छी बातें हैं?

उत्तर: तिब्बत में यात्रियों के लिए कई अच्छी बातें हैं:

  • लोगों का मूड ठीक होने पर आसानी से रहने की जगह मिल जाती हैं।
  • औरतें चाय बनाकर दे देती हैं।
  • वहाँ घर में आसानी से जाकर अपनी आँखों के सामने चाय बनाई जा सकती है।
  • महिलाएँ भी आतिथ्य सत्कार में रुचि लेती हैं।

प्रश्न: तिब्बत में उस समय यात्रियों के लिए क्या-क्या कठिनाइयाँ थीं?

उत्तर: तिब्बत की यात्रा में उस समय अनेक कठिनाइयाँ थीं:

  • तिब्बत की यात्रा करने पर प्रतिबंध था।
  • ऊँचे-नीचे स्थानों पर आना-जाना सुगम न था।
  • भरिया न मिलने पर सामान उठाकर चलना कठिन हो जाता था।
  • डाकुओं के कारण जान-माल का खतरा बना रहता था।

प्रश्न: डाँड़े क्या हैं? वे सामान्य जगहों से किस तरह भिन्न हैं?

उत्तर: तिब्बत में डाँड़े सबसे खतरनाक जगह हैं। ये सत्रह-अठारह हज़ार फीट ऊँचाई पर स्थित हैं। यहाँ आसपास गाँव न होने से डाकुओं का भय सदा बना रहता है।

प्रश्न: डाँड़े के देवता का स्थान कहाँ था? उसे किस प्रकार सजाया गया था?

उत्तर: डाँड़े के देवता का स्थान सर्वोच्च स्थान पर था। उसे पत्थरों के ढेर रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों, जानवरों की सींगों आदि से सजाया गया था।

प्रश्न: लेखक जिस रास्ते से यात्रा कर रहा था वहाँ के किलों को परित्यक्त क्यों कहा गया है?

उत्तर: लेखक जिस रास्ते से यात्रा कर रहा था, वहाँ किले बने थे। इन किलों में कभी चीनी सेना रहती थी। आज ये किले देखभाल के अभाव में गिरने लगे हैं। कुछ किसानों ने आकर यहाँ बसेरा बना लिया है। इसलिए इन्हें परित्यक्त कहा है।

प्रश्न: यात्रा करते समय लेखक और उसके साथियों ने डाकुओं से अपनी जान कैसे बचाई ?

उत्तर: तिब्बते यात्रा के दौरान लेखक ने डाँड़े जैसी खतरनाक जगहों पर भिखमंगों का वेश बनाकर यात्रा की और डाकुओं जैसे किसी को देखते ही टोपी उतारकर “कुची-कुची एक पैसा” कहकर यह बताता है कि वह भिखारी है।

प्रश्न: तिब्बत में डाकुओं को कानून का भय क्यों नहीं है?

उत्तर: तिब्बत में हथियारों का कानून न होने से डाकुओं को हथियार लेकर चलने में कोई कठिनाई नहीं होती। यदि वे किसी की हत्या कर देते हैं तो सुनसान इलाकों में हत्या का कोई गवाह नहीं मिलता है और वे आसानी से बच जाते हैं।

प्रश्न: कंजुर क्या हैं। इनकी विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर: कंजुर बुद्ध वचन अनुवाद की हस्तलिखित प्रतियाँ हैं। यह मोटे कागजों पर सुंदर अक्षरों में लिखी गई हैं। ये प्रतियाँ भारी हैं। इनका वजन 15-15 सेर तक हैं।

प्रश्न: थोङ्‌ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों?

उत्तर: लेखक के मित्र सुमति की यहाँ के लोगों से जान-पहचान होने के कारण भिखमंगों के वेश में रहने के बावजूद भी उन्हें ठहरने के लिए अच्छी जगह मिली।

जबकि दूसरी यात्रा के समय जानकारी न होने के कारण भद्र यात्री के वेश में आने पर भी उन्हें रहने के लिए उचित स्थान नहीं मिला। उन्हें गाँव के एक सबसे गरीब झोंपड़े में ठहरने को स्थान मिला। ऐसा होना बहुत कुछ, लोगों की उस वक्त की मनोवृति पर भी निर्भर करता है। क्योंकि शाम के वक्त छङ् पीकर बहुत कम होश-हवास को दुरुस्त रख पाते हैं।

प्रश्न: उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?

उत्तर: तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण उस समय यात्रियों को डाकुओं से मारे जाने का खतरा था।

प्रश्न: लेखक लङ्‌कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया?

उत्तर: लङ्‌कोर के मार्ग में लेखक का घोड़ा थककर धीमा चलने लगा था इसलिए लेखक अपने साथियों से पिछड़कर रास्ता भटक गए।

प्रश्न: लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?

उत्तर: एक मंदिर में लेखक वहाँ के बुद्धवचन-अनुवाद की हस्तलिखित पोथियाँ पढ़ रहे थे। वे पोथियाँ को पढ़ने में मग्न थे। इसलिए सुमति के अपने यजमानों से मिलने जाने के बारे में पूछने पर लेखक ने उन्हें जाने के लिए कह दिया।

प्रश्न: अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?

उत्तर: यात्रा के दौरान लेखक को निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा:

  • उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति नहीं थी। इसलिए उन्हें भिखमंगे के रुप में यात्रा करना पड़ी।
  • चोरी के डर से भिखमंगों को वहाँ के लोग घर में घुसने नहीं देते थे। इसी कारण लेखक को भी ठहरने के स्थान को लेकर कठिनाई का सामना करना पड़ा।
  • डाँड़ा थोङ्‌ला जैसी खतरनाक जगह को पार करना पड़ा।
  • लङ्कोर का रास्ता तय करते समय रास्ता भटक जाने के कारण वे अपने साथियों से बिछड़ गए।

प्रश्न: प्रस्तुत यात्रा-वृत्तांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था?

उत्तर: उस समय तिब्बती समाज में जाति-पाँति, छुआ-छूत नहीं था, औरतों के लिए परदा प्रथा का प्रचलन भी नहीं था, अपरिचित व्यक्ति को वे अपने घर में आने दे सकते थे परन्तु चोरी के भय से किसी भिखमंगे को घर में घुसने नहीं देते थे। वहाँ आतिथ्य सत्कार अच्छी तरह से किया जाता था।

प्रश्न: ‘मैं अब पुस्तकों के भीतर था।’ नीचे दिए गए विकल्पों में से कौन सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है:

  1. लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
  2. लेखक पुस्तकों की शैल्फ़ के भीतर चला गया।
  3. लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
  4. पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।

उत्तर: (1.) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया। (✓)

प्रश्न: सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?

उत्तर: सुमति की चारित्रिक विशेषताएँ:

  1. सुमति व्यवहार कुशल व्यक्ति थे।
  2. उनका व्यवहार सबसे मित्रतापूर्ण था।
  3. वे जहाँ भी जाते थे वहीं अपने अच्छे स्वभाव के कारण मित्र बना लेते थे।
  4. अलग-अलग जगहों पर घूमना उन्हें ज़्यादा पसंद था।
  5. वे एक से अधिक बार तिब्बत आ चुके थे और वहाँ के हर एक गाँव से भली-भाँति परिचित थे।

प्रश्न: ‘हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था।’ – उक्त कथन के अनुसार हमारे आचार-व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं। आपकी समझ से यह उचित है अथवा अनुचित, विचार व्यक्त करें।

उत्तर: बहुत हद तक वेश-भूषा हमारे आचार-व्यवहार से सम्बन्धित होती है। वेश-भूषा मनुष्य के व्यक्तित्व को दर्शाती है। उदाहरण के तौर पर साधु-संत को देखकर उनका सात्विक रूप हमारे सामने उभरता है। उसी प्रकार एक भिखमंगे की वेश-भूषा देखने पर उसकी आर्थिक विप्पणता सामने आती है।

प्रश्न: यात्रा-वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की स्थिति आपवेफ राज्य/शहर से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर: तिब्बत एक पहाड़ी प्रदेश है। यहाँ बरफ़ पड़ती है। इसकी सीमा हिमालय पर्वत से शुरू होती है। डाँड़े के ऊपर से समुद्र तल की गहराई लगभग 17-18 हज़ार फीट है। पूरब से पश्चिम की ओर हिमालय के हज़ारों श्वेत शिखर दिखते है। भीटे की ओर दीखने वाले पहाड़ों पर न तो बरफ़ की सफ़ेदी थी, न किसी तरह की हरियाली। उत्तर की तरफ पत्थरों का ढ़ेर था।

प्रश्न: आपने भी किसी स्थान की यात्रा अवश्य की होगी? यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को लिखकर प्रस्तुत करें।

उत्तर: इस प्रश्न का उत्तर अपने अनुभवों के आधार पर दें।

प्रश्न: यात्रा-वृत्तांत गद्य साहित्य की एक विधा है। आपकी इस पाठ्यपुस्तक में कौन-कौन सी विधाएँ हैं? प्रस्तुत विधा उनसे किन मायनों में अलग है?

उत्तर: प्रस्तुत पाठ्यपुस्तक में “महादेवी वर्मा” द्वारा रचित “मेरे बचपन के दिन” संस्मरण है। संस्मरण भी गद्य साहित्य की एक विधा है। इसमें लेखिका के बचपन की यादों का एक अंश प्रस्तुत किया गया है।

यात्रा वृत्तांत तथा संस्मरण दोनों ही गद्य साहित्य की विधाएँ हैं जोकि एक दूसरे से भिन्न है। यात्रा वृत्तांत किसी एक क्षेत्र की यात्रा के अपने अनुभवों पर आधारित है तथा संस्मरण जीवन के किसी व्यक्ति विशेष या किसी खास स्थान की स्मृति पर आधारित है। संस्मरण का क्षेत्र यात्रा वृत्तांत से अधिक व्यापक है।

प्रश्न: किसी भी बात को अनेक प्रकार से कहा जा सकता है, जैसे:

  1. सुबह होने से पहले हम गाँव में थे।
  2. पौ फटने वाली थी कि हम गाँव में थे।
  3. तारों की छाँव रहते-रहते हम गाँव पहुँच गए।

नीचे दिए गए वाक्य को अलग-अलग तरीके से लिखिए:
‘जान नहीं पड़ता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।’

उत्तर:

  1. जान नहीं पड़ता था कि घोड़ा आगे है या मैं आगे।
  2. समझ में नहीं आ रहा था कि घोड़ा मेरे आगे है या पीछे।
  3. समझ में नहीं आ रहा है कि घोड़ा कहा गया?

प्रश्न: ऐसे शब्द जो किसी ‘अंचल’ यानी क्षेत्र विशेष में प्रयुक्त होते हैं उन्हें आंचलिक शब्द कहा जाता है। प्रस्तुत पाठ में से आंचलिक शब्द ढूँढ़कर लिखिए।

उत्तर: आंचलिक शब्द:

  1. कुची-कुची (दया-दया)
  2. थुक्पा

प्रश्न: पाठ में कागज़, अक्षर, मैदान के आगे क्रमश: मोटे, अच्छे और विशाल शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों से उनकी विशेषता उभर कर आती है। पाठ में से कुछ ऐसे ही और शब्द छाँटिए जो किसी की विशेषता बता रहे हों।

उत्तर:

  1. खुफ़िया विभाग
  2. अच्छी तरह
  3. श्वेत शिखर
  4. बरफ़ की सफ़ेदी

प्रश्न: तिब्बत का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम है। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: तिब्बत का प्राकृतिक सौंदर्य सचमुच अनुपम है। यह सुंदर एवं मनोहारी घाटियों से घिरा पर्वतीय क्षेत्र हैं। एक ओर हरी भरी घाटियाँ और हरे-भरे सुंदर मैदान हैं तो दूसरी ओर ऊँचे पर्वत हैं। इनके शिखरों पर बरफ़ जमी रहती है। वहीं कुछ भीटे जैसे स्थान हैं जिन पर कम ही बरफ़ दिखाई देती है। यहाँ के ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के कोने और नदियों के मोड़ इस खूबसूरती को और भी बढ़ाते हैं। यहाँ की ठंड जलवायु इसके सौंदर्य में वृद्धि करती हैं।

प्रश्न: सुमति लोगों की धार्मिक आस्था का अनुचित फायदा किस तरह उठाते थे?

उत्तर: सुमति मिलनसार एवं हँसमुख व्यक्ति थे। वे तिब्बत में धर्मगुरु के समान माने जाते थे। सुमति बोध गया से कपड़े लाते और उन्हें पतले-पतले आकर में फाड़कर गाँठ लगाकर गंडा बना लेते थे। इन गंडों को वे अपने यजमानों में बाँटकर दक्षिणा के रूप में धन लिया करते थे। बोध गया से लाए ये कपड़े जब खत्म हो जाते तो वे लाल रंग के किसी कपड़े का गंडा बनाकर यजमानों में बाँटने लगते ताकि वे दक्षिणा पाते रहें। इस तरह वे लोगों की धार्मिक आस्था का अनुचित फायदा उठाते थे।

प्रश्न: डाँड़े के प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण कीजिए।

उत्तर: तिब्बत में डाँड़े खतरनाक जगह है जो समुद्रतल से सत्रह-हज़ार फीट ऊँचाई पर स्थित है। यह सुंदर स्थान निर्जन एवं सुनसान होता है। यहाँ के ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के कोने और नदियों के मोड के अलावा चारों ओर फैली हरियाली इसकी सुंदरता बढ़ाती हैं। एक ओर बरफ़ से ढंकी पहाड़ों की चोटियाँ हैं तो दूसरी ओर घाटियों में विशाल मैदान हैं। वहाँ भीटे जैसे पहाड़ों पर न हरियाली दिखती है और न बरफ़ यह मिला-जुला रूप प्राकृतिक सौंदर्य बढ़ा देता है।

प्रश्न: तिब्बत में खेती की ज़मीन की क्या स्थिति है? ‘ल्हासा की ओर पाठ के आलोक में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: तिब्बत में खेती की ज़मीन छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जमीनों का एक बड़ा हिस्सा जागीरों (मठों) के हाथ में है। अपनी-अपनी जागीर में से हर जागीरदार खुद भी कुछ खेती कराता है। इसके लिए उन्हें मजदूरों को मेहनताना नहीं देना पड़ता है। खेती का इंतजाम देखने के लिए जिन भिक्षुओं को भेजा जाता है जो जागीर के आदमियों के लिए राजा जैसा होता है। इन भिक्षुओं और जागीरदारों पर ही खेती कराने की जिम्मेदारी होती है।

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