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माटी वाली: 9th Class NCERT CBSE Hindi Kritika Chapter 04

माटी वाली 9th Class (CBSE) Hindi कृतिका

प्रश्न: उन परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए जिनके कारण टिहरी जैसा शहर माटी वाली की आजीविका कमाने की जगह बना हुआ है, ‘माटी वाली’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर: टिहरी शहर भागीरथी और भीलंगाना नामक दो नदियों के तट पर बसा हुआ है। इस शहर की मिट्टी इतनी रेतीली है। कि उससे चूल्हों की लिपाई का काम नहीं हो सकता है। इतना ही नहीं इस मिट्टी से दीवारों की गोबरी लिपाई भी नहीं की जा सकती है। रसोई और भोजन कर लेने के बाद चूल्हे-चौके की लिपाई के लिए जैसी मिट्टी चाहिए वैसी मिट्टी माटाखान से लाकर माटी वाली देती है जिससे उसकी रोटी-रोजी चल रही है।

प्रश्न: माटी वाली का एक शब्द-चित्र अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: माटी वाली नाटे कद की महिला वृद्धावस्था में पहुँचकर भी घर-घर मिट्टी पहुँचाती थी। उसके सिर पर कपड़े से बना डिल्ला, डिल्ले पर उसका कंटर, उसका ढक्कन गायब, कंटर के मुँह तक भरी लाल मिट्टी। टिहरी शहर के घरों में मिट्टी देने जाती हुई। वह आँगन के किसी कोने में मिट्टी गिराती और घर की मालकिन से बातें करती, जो कुछ मिल जाता उसे कपड़े में बाँधती और घर की ओर चल पड़ती थी।

प्रश्न: माटी वाली का कंटर दूसरे कंटरों से किस तरह भिन्न होता था और क्यों?

उत्तर: माटी वाली अपने कंटर से मिट्टी लाने का काम करती थी। इसके लिए वह कंटर का ढक्कर काटकर अलग कर देती थी। इससे उसका कंटर खुला रहता था जबकि अन्य कंटरों में ढक्कन लगा रहता है। माटी वाली का कंटर ऐसा इसलिए होता था क्योंकि खुले मुँह वाले कंटर में मिट्टी भरना और मिट्टी गिराना आसान होता है। इससे माटी वाली को अपने काम में सुविधा होती है।

प्रश्न: ‘शहरवासी सिर्फ़ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं।’ आपकी समझ से वे कौन से कारण रहे होंगे जिनके रहते ‘माटी वाली’ को सब पहचानते थे?

उत्तर: पूरे शहर में माटी वाली एकमात्र माटी देने वाली औरत थी जो घर जाकर माटी दे आती थी। चूंकि पूरे गाँव में कोई माटीखाना नहीं था इसलिए वह ही माटी का एक मात्र साधन थी। लोगों के पास इतना वक्त नहीं था कि वो स्वयं जाकर माटी ले आएँ। घर-घर में माटी से घर व चूल्हें लीपे जाते थे। लोगों को इस कारण भी माटी की आवश्यकता थी। माटी वाली का कोई प्रतिद्वंदी नहीं था। सालों से वो माटी देती आ रही थी जिस कारण उस शहर का बच्चा-बच्चा तक उसको व उसके कंटर को पहचान लेता था।

प्रश्न: माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज़्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था?

उत्तर: पूरे टिहरी शहर को सिर्फ़ वही माटी देती आ रही थी। उसका घर शहर से दूर था जिस कारण वह प्रात:काल निकल जाती थी। वहाँ पूरा दिन माटीखान से माटी खोदती व शहर में विभिन्न स्थानों में फैले घरों तक माटी को पहुँचाती थी। माटी ढोते-ढोते उसे रात हो जाती थी। इसी कारण उसके पास समय नहीं था कि अपने अच्छे या बुरे भाग्य के विषय में सोच पाती अर्थात् उसके पास समय की कमी थी जो उसे सोचने का भी वक्त नहीं देती थी।

प्रश्न: ‘भूख मीठी कि भोजन मीठा’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: इस बात का आशय है जब मनुष्य भूखा होता है तो उस भूख के कारण उसे बासी रोटी भी मीठी लगती है। यदि मनुष्य को भूख न हो तो उसे कुछ भी स्वादिष्ट भोजन या खाने की वस्तु दे दी जाए तो वह उसमें नुक्स निकाल ही देता है। परन्तु भूख लगने पर साधारण खाना या बासी खाना भी उसे स्वादिष्ट व मीठा लगेगा। इसलिए बुजुर्गों ने कहा है – भूख मीठी की भोजन मीठा। अर्थात् भूख स्वयं में ही मिठास होती है जो भोजन में भी मिठास उत्पन्न कर देती है।

प्रश्न: ‘पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीज़ों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता।’ – मालकिन के इस कथन के आलोक में विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर: इसमें मालकिन द्वारा अपने पुरखों की मेहनत के प्रति आदर व सम्मान का भाव व्यक्त किया गया है। वह अपने पुरखों की परिस्थितियों को समझने की पूरी कोशिश करती है कि उन्होंने किन परिस्थितियों में संघर्ष कर घर की ये चीज़ें बनाई है। इसलिए वह उस संघर्ष के प्रति सम्मान भाव रखते हुए उन्हें यूंही बेच देना नहीं चाहती।

मालकिन की ये बात काबिल-ए-तारीफ है। हम कभी ये नहीं समझ पाते की हमारे बुजुर्गों ने कितनी कड़ी मेहनत से हमारे लिए ये सब अर्जित किया होगा पर हम समय के साथ चलते हुए उनका अनादर करते हुए उन्हें बेच देते हैं या फिर नष्ट कर देते हैं। उनकी भावनाओं का तनिक भी ध्यान नहीं रखते। हमें चाहिए कि हम अपनी पीढ़ियों से चली आ रही इन विरासतों का पूरे सम्मान व आदर भाव से ध्यान रखें व दूसरों को भी यही सीख दें।

प्रश्न: माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है?

उत्तर: यहाँ माटी वाली की दरिद्रता का पता चलता है। इतनी कड़ी मेहनत के बावजूद वह अपने व अपने पति के लिए दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पाती। लोगों द्वारा रोटी दिए जाने पर वह पूरा हिसाब लगा लेती है। ताकि वह दोनों के खाने का प्रबन्ध कर सके। फिर चाहे वह आधा पेट ही भोजन क्यों न हो।

प्रश्न: आज माटी वाली बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी – इस कथन के आधार पर माटी वाली के हृदय के भावों को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: माटी वाली का उसके पति के अलावा अन्य कोई नहीं है। दूसरे उसका पति अत्याधिक वृद्ध होने के कारण बीमारियों से ग्रस्त है, उसका लीवर खराब होने के कारण उसका पाचनतंत्र भी भली-भाँति से काम नहीं करता है। इसलिए वह निर्णय लेती है कि वह बाज़ार से प्याज लेकर जायेगी व रोटी को रुखा देने के बजाए उसको प्याज की सब्जी बनाकर रोटी के साथ देगी इससे उसका असीम प्रेम झलकता है कि वह उसका इतना ध्यान रखती है कि उसे रुखी रोटियाँ नहीं देना चाहती।

प्रश्न: ‘गरीब आदमी का शमशान नहीं उजड़ना चाहिए।’ इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: यह वाक्य टिहरी बाँध के समय में उजड़े हुए लोगों की व्यथा को माटी वाली के माध्यम से व्यक्त किया गया है कि गरीब आदमी का श्मशान नही उजड़ना चाहिए। गरीबों को रहने का स्थान ही बड़ी मुश्किल से मिलता है उसी स्थान पर वह जीते हैं व मर जाते हैं और वह भी डूब जाए तो उनके मरने व जीने का स्थान भी नहीं बचेगा। इसलिए बूढ़ी अपनी वेदना को प्रकट कर इस बात को कहती है।

प्रश्न: ‘विस्थापन की समस्या’ पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर: भारत जिस रफ्तार से ‘विकास’ और आर्थिक लाभ की दौड़ में भाग ले रहा है उसी भागमभाग में शहरों और गाँवों में हाशिए पर रह रहे लोगों को विस्थापन नाम की समस्या को झेलना पड़ रहा है और जो भी थोड़ा बहुत सामान या अन्य वस्तु उनके पास हैं वो सब उनसे छिन जाता है। बिजली व पानी आदि अन्य समस्याओं से जूझने के लिए नदियों पर बनाए गए बाँध द्वारा उत्पन्न विस्थापन सबसे बड़ी समस्या आई है। सरकार उनकी ज़मीन और रोजी रोटी को तो छीन लेती है पर उन्हें विस्थापित करने के नाम पर अपने कर्त्तव्यों से तिलांजलि दे देते हैं। कुछ करते भी हैं तो वह लोगों के घावों पर छिड़के नमक से ज़्यादा कुछ नहीं होता। भारत की दोनों अदालतों ने भी इस पर चिंता जताई है। इसके कारण जनता में आक्रोश की भावना ने जन्म लिया है। टिहरी बाँध इस बात का ज्वलंत उदाहरण है। लोग पुराने टिहरी को नहीं छोड़ना चाहते थे। इसके लिए कितने ही विरोध हुए, जूलूस निकाले गए पर सरकार के दबाव के कारण उन्हें नए टिहरी में विस्थापित होना पड़ा। अपने पूर्वजों की उस विरासत को छोड़कर जाने में उन्हें किस दु:ख से गुजरना पड़ा होगा उस वेदना को वही जानते हैं। सरकार को चाहिए कि इस विषय में गंभीरता से सोचे व विस्थापन की स्थिति न आए ऐसे कार्य करने चाहिए।

प्रश्न: मालकिन के लौटने तक माटी वाली अपना मुँह यों ही चलाकर खाने का दिखावा क्यों करने लगी? ऐसा करने के पीछे उसकी क्या विवशता थी?

उत्तर: माटी वाली जिस घर में माटी देने गई थी उस घर की मालकिन ने उसे दो रोटियाँ और कुछ बचा-खुचा साग लाने के लिए अंदर चली गई। इसी बीच माटी वाली ने इधर-उधर देखा और किसी को न देखकर अपने सिर पर रखा डिल्ला खोलकर उस कपड़े में एक रोटी जल्दी से रख लिया। यह बात मालकिन न जान सके, इसलिए वह मुँह चलाने का दिखावा करने लगी। इससे मालकिन यह समझती कि इसने एक रोटी खा लिया है। कपड़े में एक रोटी छिपाने के पीछे उसकी मानसिकता यह थी कि इसे रोटी को वह घर लेकर अपने अशक्त बुड्ढे को देगी। वह यह भी चाहती थी रोटी छिपाने की बात घर की मालकिन न जान सके।

प्रश्न: ‘भूख तो अपने में एक साग होती है’ – को आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि ऐसा किसने कब और क्यों कहा?

उत्तर: ‘भूख ता अपने में एक साग होती है’ का आशय यह है कि यदि भूख लगी हो और सामने रोटियाँ हों तो व्यक्ति साग होने, न होने का परवाह नहीं करता है बल्कि खाना शुरू कर देता है। भूख उसे सूखी रोटियाँ खाने पर विवश कर देती है। उक्त वाक्य घर की मालकिन ने तब कहा जब माटी वाली उनकी दी हुई एक रोटी को चबा-चबाकर चाय के साथ गले के नीचे उतार रही थी। माटी वाली से मालकिन ने तब कहा जब माटी वाली उनकी दी हुई एक रोटी को चबा-चबाकर चाय के साथ गले के नीचे उतार रही थी। माटी वाली ने मालकिन से कहा कि चाय तो बहुत अच्छा साग बन जाती है, ठकुराइन जी! तब यह बात उन्होंने कही थी क्योंकि उन्होंने बुढ़िया को चाय देने से पहले सूखी रोटियाँ चबाते हुए देख लिया था।

प्रश्न: विरासत के प्रति ठकुराइन की क्या सोच थी? उनकी इस सोच से आज के युवाओं को क्या प्रेरणा लेनी चाहिए?

उत्तर: विरासत के प्रति ठकुराइन की सोच सकारात्मक थी। वे अपने पुरखों की वस्तुओं से लगाव ही नहीं रखती हैं बल्कि उनकी महत्ता भी समझती हैं। उन्होंने अपने घर में पीतल के गिलास अब तक सँभालकर रखे हैं जबकि इन्हें खरीदने वाले कई बार आए। पुरखों की गाढ़ी कमाई से बनी इन वस्तुओं को वे हराम के भाव नहीं बेचना चाहती है। इन वस्तुओं को खरीदने के लिए पुरखों ने अपनी कई इच्छाएँ दबाईं होंगी और दो-दो पैसे जमा किए होंगे। ठकुराइन की ऐसी सोच से आज के युवाओं को यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि वे इस ज़माने में भी उनका मूल्य समझें विरासत से जुड़ी ऐसी वस्तुओं को नष्ट होने से बचाएँ और उनका संरक्षण करें ताकि आने वाली पीढ़ी इनसे परिचित हो सके।

प्रश्न: अब इस उमर में इस शहर को छोड़कर हम जाएँगे कहाँ? माटी वाली के कथन में छिपी वेदना को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: टिहरी शहर में बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया है। इससे शहर में पानी भरने लगा है। जिन लोगों के पास जमीन के कागज हैं, उनके आधार पर उनके विस्थापन हेतु अन्यत्र जमीन दी जा रही है पर माटी बेचकर गुजारा करने वाली बुढ़िया के पास जमीन का कोई प्रमाण पत्र नहीं है। माटाखान से वह माटी भले ही लाती है पर यह भी उसके नाम नहीं है। ऐसे में बुढ़िया को विस्थापन हेतु कहीं और जगह जमीन नहीं मिल पाएगी तब उसका क्या होगा, वह कैसे जिएगी, कहाँ रहेगी, क्या खाएगी? आदि की वेदना उसके कथन में निहित है।

प्रश्न: माटी वाली बुढ़िया की दिनचर्या और रहन-सहन आम लोगों से किस तरह अलग था? ‘माटी वाली’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर: ‘माटी वाली’ बुढिया शहर से एक कोस दूर झोंपड़ी में रहती थी। यह झोंपड़ी गाँव के ठाकुर की जमीन पर स्थित है। माटी वाली के साथ उसका बीमार अशक्त पति भी रहता है। माटी बेचने से किसी तरह माटी वाली अपना और अपने पति का पेट पालती है। वह सवेरे ही अपना कंटर लिए माटाखान की ओर चल देती है। माटाखान में माटी खोदने भरने के बाद वह शहर आती है और घरों में माटी देती है।

वहाँ मिलने वाली थोड़ी-सी मज़दूरी तथा एक-दो रोटियों के सहारे वह अपनी आजीविका चलाती है। इसी में वह स्वयं खाती है और अपने पति को खिलाती है। वह घोर गरीबी में दिन बिता रही है। इसके विपरीत ठकुराइन और गाँव के ठाकुर जैसे लोग भी हैं जो सुखमय जीवन बिता रहे हैं। उनकी दिनचर्या से माटी वाली की दिनचर्या पूर्णतया अलग है।

प्रश्न: ‘माटी वाली’ की तरह ही कुछ महिलाएँ हमारे समाज में आज भी यातना झेल रही हैं। आप इनकी मदद कैसे कर सकते हैं, लिखिए।

उत्तर: आज भी हमारे समाज में बहुत-सी महिलाएँ हैं जो माटी वाली की तरह ही यातना झेलने के लिए विवश हैं। ये महिलाएँ घोर गरीबी में दिन बिताते हुए अपनी मूलभूल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हाथ-पैर मार रही हैं। उनकी मदद करने के लिए हमें आगे चाहिए। इन लोगों को वृद्धावस्था पेंशन का लाभ दिलाने हेतु आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए। समाज कल्याण विभाग द्वारा इनके रहने और खाने की व्यवस्था करवाते हुए इनके स्वास्थ्य की नियमित जाँच करवाने हेतु प्रेरित करूंगा। इन्हें मुफ्त दवाइयाँ दिलवाने की व्यवस्था करूंगा। मैं यथासंभव इनके लिए गरम कपड़े और इनके काम आने वाली वस्तुओं को इन्हें देने का प्रयास करूंगा। मैं समाज के अमीर वर्ग को इनकी मदद करने हेतु प्रोत्साहित करूंगा। इसके अलावा विभिन्न माध्यमों से सरकार का ध्यान इनकी ओर आकर्षित करवाने का प्रयास करूंगा।

प्रश्न: माटी वाली गरीब जरूर है पर उसके चरित्र में जीवन मूल्यों की कमी नहीं है। उसकी चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए बताइए कि आप उससे कौन-कौन से जीवन मूल्य अपनाना चाहेंगे?

उत्तर: माटी वाली गरीब महिला है। वह अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संघर्षरत है। उसका चरित्र प्रेरणादायी है। उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. माटी वाली अत्यंत परिश्रमी महिला है। वह सुबह से शाम तक परिश्रम करती रहती है।
  2. माटी वाली विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करके उन पर विजय पाने का प्रयास कर रही है।
  3. माटी वाली का स्वभाव अत्यंत जुझारू है।
  4. माटी वाली में सेवा भावना कूट-कूटकर भरी है। वह अपने बीमार एवं अशक्त पति की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्रयास रहती है।
  5. वह मृदुभाषिणी है तथा विनम्रता से बातें करती है। माटी वाली के चरित्र से मैं परिश्रमी बनने, काम से जी न चुराने, आलस्य त्यागने, विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करने, दूसरों की सेवा करने, अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहने जैसे जीवन मूल्य अपनाना चाहूँगा।

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