साखियाँ एवं सबद 9th Class (CBSE) Hindi क्षितिज
प्रश्न: हंस किसके प्रतीक हैं? वे मानसरोवर छोड़कर अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहते हैं?
उत्तर: हंस जीवात्मा के प्रतीक हैं। वे मानसरोवर अर्थात् मेन रूपी सरोवर को छोड़कर अन्यत्र इसलिए जाना चाहते हैं क्योंकि उसे प्रभु भक्ति का आनंद रूपी मोती चुगने को मिल रहे हैं। ऐसा आनंद उसे अन्यत्र दुर्लभ है।
प्रश्न: कबीर ने सच्चा संत किसे कहा है? उसकी पहचान बताइए।
उत्तर: कबीर ने सच्चा संत उसे कहा है जो हिंदू-मुसलमान के पक्ष-विपक्ष में न पड़कर इनसे दूर रहता है और दोनों को समान दृष्टि से देखता है, वही सच्चा संत है। उसकी पहचान यह है कि किसी धर्म / संप्रदाय के प्रति कट्टर नहीं होता है और प्रभुभक्ति में लीन रहता है।
प्रश्न: कबीर ने ‘जीवित’ किसे कहा है?
उत्तर: कबीर ने उस व्यक्ति को जीवित कहा है जो राम और रहीम के चक्कर में नहीं पड़ता है। इनके चक्कर में पड़े व्यक्ति राम-राम या खुदा-खुदा करते रह जाते हैं पर उनके हाथ कुछ नहीं लगता है। इन दोनों से दूर रहकर प्रभु की सच्ची भक्ति करने वालों को ही कबीर ने ‘जीवित’ कहा है।
प्रश्न: ‘मोट चून मैदा भया’ के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर: मोट चून मैदा भया के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों की बुराइयाँ समाप्त हो गई और वे अच्छाइयों में बदल गईं। अब मनुष्य इन्हें अपनाकर जीवन सँवार सकता है।
प्रश्न: कबीर ‘सुबरन कलश’ की निंदा क्यों करते हैं?
उत्तर: कबीर ‘सुबरन कलश’ की निंदा इसलिए करते हैं क्योंकि कलश तो बहुत महँगा है परंतु उसमें रखी सुरा व्यक्ति के लिए हर तरह से हानिकारक है। सुरा के साथ होने के कारण सोने का पात्र निंदनीय बन गया है।
साखियाँ एवं सबद प्रश्न: ‘सुबरन कलश’ किसका प्रतीक है? मनुष्य को इससे क्या शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए?
उत्तर: ‘सुबरन कलश’ अच्छे और प्रतिष्ठित कुल का प्रतीक है जिसमें जन्म लेकर व्यक्ति अपने-आप को महान समझने लगता है। व्यक्ति तभी महान बनता है जब उसके कर्म भी महान हैं। इससे व्यक्ति को अच्छे कर्म करने की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।
प्रश्न: कबीर मनुष्य के लिए क्रिया-कर्म और योग-वैराग्य को कितना महत्त्वपूर्ण मानते हैं?
उत्तर: कबीर मनुष्य के लिए क्रिया-कर्म और योग-वैराग्य को महत्त्वपूर्ण नहीं मानते हैं क्योंकि मनुष्य इन क्रियाओं के माध्यम से ईश्वर को पाने का प्रयास करता है, जबकि कबीर के अनुसार ईश्वर को इन क्रियाओं के माध्यम से नहीं पाया जा सकता है।
प्रश्न: मनुष्य ईश्वर को क्यों नहीं खोज पाता है?
उत्तर: मनुष्य ईश्वर को इसलिए नहीं खोज पाता है क्योंकि वह ईश्वर का वास मंदिर-मस्जिद जैसे धर्मस्थलों और काबा-काशी जैसी पवित्र मानी जाने वाली जगहों पर मानता है। वह इन्हीं स्थानों पर ईश्वर को खोजता-फिरता है। वह ईश्वर को अपने भीतर नहीं खोजता है।
प्रश्न: कबीर ने संसार को किसके समान कहा है और क्यों?
उत्तर: कबीर ने संसार को श्वान रूपी कहा है क्योंकि जिस तरह हाथी को जाता हुआ देखकर कुत्ते अकारण भौंकते हैं उसी तरह ज्ञान पाने की साधना में लगे लोगों को देखकर सांसारिकता में फँसे लोग तरह-तरह की बातें बनाने लगते हैं। वे ज्ञान के साधक को लक्ष्य से भटकाना चाहते हैं।
प्रश्न: कबीर ने ‘भान’ किसे कहा है? उसके प्रकट होने पर भक्त पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: कबीर ने ‘भान’ (सूर्य) ज्ञान को कहा है। ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त होने पर मनुष्य के मन का अंधकार दूर हो जाता है। इस अंधकार के दूर होने से मनुष्य के मन से कुविचार हट जाते हैं। वह प्रभु की सच्ची भक्ति करता है और उस आनंद में डूब जाता है।
प्रश्न: ‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर: ‘मानसरोवर’ से कवि का आशय हृदय रुपी तालाब से है। जो हमारे मन में स्थित है।
प्रश्न: कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर: सच्चे प्रेम से कवि का तात्पर्य भक्त की ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति से है। एक भक्त की कसौटी उसकी भक्ति है। अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति ही भक्त की सफलता है।
प्रश्न: तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्व दिया है?
उत्तर: कवि ने यहाँ सहज ज्ञान को महत्व दिया है। वह ज्ञान जो सहजता से सुलभ हो हमें उसी ज्ञान की साधना करनी चाहिए।
प्रश्न: इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
उत्तर: जो भक्त निष्पक्ष भाव से ईश्वर की आराधना करता है, संसार में वही सच्चा संत कहलाता है।
प्रश्न: अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर: अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीरदास जी ने समाज में व्याप्त धार्मिक संकीर्णताओं, समाज की जाति-पाति की असमानता की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा की है।
साखियाँ एवं सबद प्रश्न: किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर: व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण उसकी जाति या धर्म से न होकर उसके कर्मों के आधार पर होती है। कबीर ने स्वर्ण कलश और सुरा (शराब) के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट की है।
जिस प्रकार सोने के कलश में शराब भर देने से शराब का महत्व बढ़ नहीं जाता तथा उसकी प्रकृति नहीं बदलती। उसी प्रकार श्रेष्ठ कुल में जन्म लेने मात्र से किसी भी व्यक्ति का गुण निर्धारित नहीं किया जा सकता। मनुष्य के गुणों की पहचान उनके कर्म से होती है। अपने कर्म के माध्यम से ही हम समाज मे प्रतिष्ठित होते हैं। कुल तथा जाति द्वारा प्राप्त प्रतिष्ठा अस्थाई होती है।
9th Class (CBSE) Hindi क्षितिज
गद्य – खंड
- Chapter 01: दो बैलों की कथा
- Chapter 02: ल्हासा की ओर
- Chapter 03: उपभोक्तावाद की संस्कृति
- Chapter 04: साँवले सपनों की याद
- Chapter 05: नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया
- Chapter 06: प्रेमचंद के फटे जूते
- Chapter 07: मेरे बचपन के दिन
- Chapter 08: एक कुत्ता और एक मैना
काव्य – खंड
- Chapter 09: साखियाँ एवं सबद
- Chapter 10: वाख
- Chapter 11: सवैये
- Chapter 12: कैदी और कोकिला
- Chapter 13: ग्राम श्री
- Chapter 14: चंद्र गहना से लौटती बेर
- Chapter 15: मेघ आए
- Chapter 16: यमराज की दिशा
- Chapter 17: बच्चे काम पर जा रहे हैं