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9th Hindi NCERT CBSE Books

स्मृति: 9th Class (CBSE) Hindi Sanchayan Chapter 02

स्मृति 9th Class (CBSE) Hindi Sanchayan

प्रश्न: भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में किस बात का डर था?

उत्तर: लेखक अपने साथियों के साथ झरबेरी के बेर तोड़ रहा था उसी समय गाँव के एक आदमी ने ज़ोर से पुकार कर कहा कि उनका भाई बुला रहा है, जल्दी घर जाओ। इस पर लेखक डर गया कि भाई ने क्यों बुलाया है? उससे क्या कसूर हो गया है? कहीं बेर खाने पर न नाराज़ हों। उसे मार पड़ेगी और इसी पिटने के भय से वह सहमा-सहमा घर पहुँचा।

प्रश्न: मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी?

उत्तर: बच्चे स्वभाव से नटखट होते हैं। मक्खनपुर पढ़ने जाने के रास्ते में एक सूखा कुआँ था। उसमें एक साँप गिर गया था। अपने नटखट स्वभाव के कारण साँप को तंग करने और उसकी फुसकार सुनने के लिए बच्चे कुएँ में ढेले फेंका करते थे। उसकी आवाज़ सुनने के बाद अपनी आवाज़ की प्रतिध्वनि सुनने की इच्छा उनके मन में रहती थी।

प्रश्न: ‘साँप ने फुसकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, यह बात अब तक स्मरण नहीं’ – यह कथन लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?

उत्तर: लेखक के साथ यह घटना 1908 में घटी। उसने यह बात अपनी माँ को 1915 में सात साल बाद बताई और लिखा शायद और भी बाद में होगा, इसलिए लेखक ने कहा कि उसे याद नहीं है कि ढेला फेंकने पर साँप को लगा या नहीं, उसने फुसकार मारी या नहीं क्योंकि इस समय लेखक बुरी तरह डर गया था। चिट्ठियाँ कुएँ में गिर गई थी, जिन्हें उनके भाई ने डाकखाने में डालने के लिए दी थी। इससे उसकी घबराहट झलकती है।

प्रश्न: किन कारणों से लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया?

उत्तर: चिट्ठियाँ लेखक के बड़े भाई ने डाकखाने में डालने के लिए दी थी। लेखक अपने बड़े भाई से बहुत डरते थे। कुएँ में चिट्ठियाँ गिरने से उन्हें अपनी पिटाई का डर था और वह झूठ भी नहीं बोल सकता था। इसलिए भी कि उसे अपने डंडे पर भी पूरा भरोसा था। इन्हीं सब कारणों से लेखक ने कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने का निर्णय किया।

प्रश्न: साँप का ध्यान बँटाने के लिए लेखक ने क्या-क्या युक्तियाँ अपनाईं?

उत्तर: साँप का ध्यान बँटाने के लिए लेखक ने कई युक्तियाँ अपनाईं। जैसे – साँप के पास पड़ी चिट्ठियों को उठाने के लिए डंडा बढ़ाया, साँप उस पर कूद पड़ा इससे डंडा छूट गया लेकिन इससे साँप का आसन बदल गया और लेखक चिट्ठियाँ उठाने में सफल रहा पर डंडा उठाने के लिए उसने कुएँ की बगल से एक मुट्ठी मिट्टी लेकर साँप के दाई ओर फेंकी कि उसका ध्यान उस ओर चला जाए और दूसरे हाथ से डंडा खींच लिया। डंडा बीच में होने से साँप उस पर वार नहीं कर पाया।

प्रश्न: कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को निकालने संबंधी साहसिक वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: भाई द्वारा दी गई चिट्ठियाँ लेखक से कुएँ में गिर गई थी और उन्हें उठाना भी ज़रुरी था। लेकिन कुएँ में साँप था, जिसके काटने का डर था। परन्तु लेखक ने कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने का निर्णय लिया। उसने अपनी और अपने भाई की धोतियाँ कुछ रस्सी मिलाकर बाँधी और धोती की सहायता से वह कुएँ में उतरा। अभी 4-5 गज ऊपर ही था कि साँप फन फैलाए हुए दिखाई दिया। उसने सोचा धोती से लटककर साँप को मारा नहीं जा सकता और डंडा चलाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी। लेखक ने डंडे से चिट्ठियाँ सरकाने का प्रयत्न किया तो साँप डंडे पर लिपट गया। साँप का पिछला हिस्सा लेखक के हाथ को छू गया तो उसने डंडा पटक दिया। उसका पैर भी दीवार से हट गया और धोती से लटक गया। फिर हिम्मत करके उसने कुएँ की मिट्टी साँप के एक ओर फेंकी। डंडे के गिरने और मिट्टी फेंकने से साँप का आसन बदल गया और लेखक चिट्ठियाँ उठाने में सफल रहा। धीरे से डंडा भी उठा लिया और कुएँ से बाहर आ गया। वास्तव में यह एक साहसिक कार्य था।

प्रश्न: इस पाठ को पढ़ने के बाद किन-किन बाल-सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता है?

उत्तर:

  1.  मौसम अच्छा होते ही खेतों में जाकर फल तोड़कर खाना।
  2. स्कूल जाते समय रास्ते में शरारतें करना।
  3. रास्ते में आए कुएँ, तालाब, पानी से भरे स्थानों पर पत्थर फेंकना, पानी में उछलना।
  4. जानवरों को तंग करते हुए चलना।
  5. अपने आपको सबसे बहादुर समझना आदि अनेकों बाल सुलभ शरारतों का पता चलता है।

प्रश्न: ‘मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं’ – का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: मनुष्य अपनी स्थिति का सामना करने के लिए स्वयं ही अनुमान लगाता है और अपने हिसाब से भावी योजनाएँ भी बनाता है। परन्तु ये अनुमान और योजनाएँ पूरी तरह से ठीक उतरे ऐसा नहीं होता। कई बार यह गलत भी हो जाती हैं। जो मनुष्य चाहता है, उसका उल्टा हो जाता है। अत: कल्पना और वास्तविकता में हमेशा अंतर होता है।

प्रश्न: ‘फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है’ – पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आश्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: लेखक जब कुएँ में उतरा तो वह यह सोचकर उतरा था कि या तो वह चिट्ठियाँ उठाने में सफल होगा या साँप द्वारा काट लिया जाएगा। फल की चिंता किए बिना वह कुएँ में उतर गया और अपने दृढ़ विश्वास से सफल रहा। अत: मनुष्य को कर्म करना चाहिए। फल देने वाला ईश्वर होता है। मनचाहा फल मिले या नहीं यह देने वाले की इच्छा पर निर्भर करता है। लेकिन यह भी कहा जाता है, जो दृढ़ विश्वास व निश्चय रखते हैं, ईश्वर उनका साथ देता है।

स्मृति: लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न: बड़े भाई द्वारा बुलाए जाने की बात सुनकर लेखक की क्या दशा हुई और क्यों?

उत्तर: बड़े भाई द्वारा बुलाई जाने की बात सुनकर लेखक घबरा गया। उसे बड़े भाई द्वारा पिटाई किए जाने का भय सता रहा था। वह कडी सरदी और ठंडी हवा के प्रकोप के बीच अपने छोटे भाई के साथ झरबेरी के बेर तोड़-तोड़कर खा रहा था। कहीं बेर खाने के अपराध में ही तो उसे नहीं बुलाया जा रहा था।

प्रश्न: लेखक को अपने पिटने का भय कब दूर हुआ?

उत्तर: लेखक अपने बड़े भाई के बुलाने पर सहमा-सा घर आया तो देखा कि उसके बड़े भाई पत्र लिख रहे हैं। भाई को पत्र लिखते देखकर वह समझ गया कि उसे इन पत्रों को डाकखाने में डालने के लिए ही बुलवाया होगा। यह सोचकर उसे अपने पिटने का भय जाता रहा।

प्रश्न: डाकखाने में पत्र डालने जाते समय लेखक ने क्या-क्या तैयारियाँ कीं और क्यों?

उत्तर: डाकखाने में पत्र डालने जाते समय लेखक ने निम्नलिखित तैयारियाँ की:

  1. उसने और उसके छोटे भाई ने अपने-अपने कानों को धोती से बाँधा।
  2. उसने अपना मजबूत बबूल का डंडा साथ लिया।
  3. उनकी माँ ने उन्हें भुनाने के लिए चने दिए।
  4. उन्होंने सिर पर टोपियाँ लगाईं।

उन्होंने ये तैयारियाँ इसलिए की क्योंकि सर्दी के मौसम में तेज़ हवा हड्डियों को भी कँपा रही थी।

प्रश्न: लेखक को अपने डंडे से इतना मोह क्यों था?

उत्तर: लेखक को अपने डंडे से इतना मोह इसलिए था, क्योंकि:

  1. उसने इस डंडे से अब तक कई साँप मारे थे।
  2. वह इस डंडे से आम के पेड़ों से प्रतिवर्ष आम तोड़ता था।
  3. उसे अपना मूक डंडा सजीव-सा लगता था।

प्रश्न: कुएँ में साँप होने का पता लेखक एवं अन्य बच्चों को कैसे चला?

उत्तर: लेखक और उसके साथ अन्य बच्चे मक्खनपुर पढ़ने जाते थे। उसी रास्ते में छत्तीस फुट गहरा सूखा कच्चा कुआँ था। लेखक ने एक स्कूल से लौटते हुए उसमें झाँक कर देखा और एक ढेला इसलिए फेंका ताकि वह ढेले की आवाज़ सुन सके, पर ढेला गिरते ही उसे एक फुसकार सुनाई दी। इस तरह वे जान गए कि कुएँ में साँप है।

प्रश्न: लेखक पर बिजली-सी कब गिर पड़ी?

उत्तर: लेखक अपने छोटे भाई के साथ मक्खनपुर डाक में चिट्ठियाँ डालने जा रहा था। उसके साथ उसका छोटा भाई भी था। उस रास्ते में एक कुआँ पड़ता था जिसमें साँप गिर पड़ा था। लेखक के मन में उसकी फुसकार सुनने की इच्छा जाग्रत हुई। उसने एक हाथ से टोपी उतारी और उसी समय दूसरे हाथ से ढेला कुएँ में फेंका। टोपी उतारते ही उसमें रखी चिट्ठियाँ कुएँ में चक्कर काटते हुए गिर रही थी। चिट्ठियों की ऐसी स्थिति देखकर लेखक पर बिजली-सी गिर पड़ी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न: लेखक को माँ की याद कब और क्यों आई?

उत्तर: लेखक अपने भाई द्वारा लिखी चिट्ठियाँ डाक में डालने जा रहा था कि उसके मन में कुएँ में गिरे साँप की फुफकार सुनने की इच्छा जाग उठी। उसने ढेला फेंकने के लिए ज्यों ही अपने सिर से टोपी उतारी उसमें रखी टोपियाँ चक्कर काटती हुई कुएँ में गिर पड़ीं। लेखक निराशा, पिटने के भय, और उद्वेग से रोने का उफ़ान नहीं सँभाल पा रहा था। इस समय उसे माँ की गोद की याद आ रही थी। वह चाहता था कि माँ आकर उसे छाती से लगा ले और लाड-प्यार करके कह दे कि कोई बात नहीं, चिट्ठियाँ फिर लिख ली जाएँगी। उसे विश्वास था कि माँ ही उसे इस विपदा में सच्ची सांत्वना दे सकती है।

प्रश्न: ‘लेखक चिट्ठियों के बारे में घर जाकर झूठ भी बोल सकता था, पर उसने ऐसा नहीं किया’ इसके आलोक में लेखक की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए बताइए कि आप लेखक के चरित्र से किन-किन विशेषताओं को अपनाना चाहेंगे?

उत्तर: लेखक जानता था कि जिस कुएँ में उससे चिट्ठियाँ गिर गई हैं, उसमें जहरीला साँप रहता था। उसके पास से चिट्ठियाँ उठाना अत्यंत जोखिम भरा था। वह चिट्ठियों के बारे में घर आकर झूठ-भी बोल सकता था, पर उसने झूठ बोलने के बजाय कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने का जोखिम भरा कार्य किया। लेखक के चरित्र में सत्यनिष्ठा थी, जो उसके झूठ बोलने की सोच पर भारी पड़ रही थी। वह साहसी और बुद्धिमान था, जिसके बल पर वह पहले भी कई साँप मार चुका था। उसका संकल्प और आत्मबल मज़बूत था जिसके सहारे वह असंभव को भी सरल काम समझ रहा था। इसी के बल पर उसने योजनानुसार अपना काम किया। मैं लेखक के चरित्र से सत्यनिष्ठ, प्रत्युत्पन्नमति, साहसी, बुद्धि से काम करने की कला तथा दृढ़ संकल्प जैसे गुण अपनाना चाहता हूँ।

प्रश्न: कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने में उसके भाई का कितना योगदान था? इससे लेखक के चरित्र में किन-किन जीवन मूल्यों की झलक मिलती है?

उत्तर: लेखक कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने का काम संभवतः करने की सोच भी न पाता, यदि उसे अपने भाई का सहयोग न मिलता। लेखक ने दृढ़ संकल्प से अपनी दुविधा पर विजयी पाई। उसने चिट्ठियाँ निकालने के लिए अपनी दो धोतियाँ तथा अपने छोटे भाई की दोनों धोतियों के अलावा वह धोती भी बाँधी जिसमें भुनवाने के लिए चने बँधे थे, को परस्पर बाँधा। अब उसके छोर पर एक डंडा बाँधकर उसने कुएँ में लटका दिया और दूसरे हिस्से को कुएँ की डेंग में बाँधकर इसे अपने भाई को पकड़ा दिया। इसके बाद वह चिट्ठियाँ उठाने के लिए कुएँ में उतर गया। अदम्य साहस और बुद्धि कौशल का परिचय देते हुए चिट्ठियाँ निकालने में वह सफल हो गया। इस कार्य से लेखक के साहसी होने, बुद्धिमान होने, योजनानुसार कार्य करने तथा भाई से असीम लगाव रखने जैसे उच्च जीवन मूल्यों की झलक मिलती है।

प्रश्न: लेखक ने किस तरह अत्यंत सूझ-बूझ से अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया? ‘स्मृति’ पाठ के आलोक में स्पष्ट कीजिए। इससे आपको क्या सीख मिलती है?

उत्तर: ‘स्मृति’ पाठ में लेखक को उसके भाई ने डाक में डालने की चिट्ठियाँ दी थीं। उसकी असावधानी के कारण ये चिट्ठियाँ उस कुएँ में गिर गईं, जिसमें विषधर बैठा था। उसके पास से चिट्ठियाँ उठाना शेर के जबड़े से माँस खींचने जैसा कठिन और जोखिम भरा था, जिसमें जरा-सी चूक जानलेवा साबित हो सकती थी। यद्यपि ऐसा करने के पीछे एक ओर उसमें जिम्मेदारी का भाव था, तो दूसरी ओर भाई से पिटने का भय परंतु उसने अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास, धैर्य, विपरीत परिस्थितियों में बुद्धिमानी से काम करने की कला के कारण वह मौत के मुँह से चिट्ठियाँ उठा लिया और मौत को ठेंगा दिखा दिया। इस घटना से हमें यह सीख भी मिलती है कि ऐसी घटनाओं को हमें प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए और ऐसा कार्य करने से पहले अपने से बड़ों की राय-सलाह अवश्य लेनी चाहिए, ताकि हम किसी अनहोनी का शिकार न बनें।

प्रश्न: ‘स्मृति’ कहानी हमें बच्चों की दुनिया से सच्चा परिचय कराती है तथा बाल मनोविज्ञान का सफल चित्रण करती है। इससे आप कितना सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: ‘स्मृति’ कहानी का समूचा कथानक बच्चों की दुनिया के आसपास ही घूमता है। इसमें एक ओर बाल मनोविज्ञान का सुंदर चित्रण है तो बाल सुलभ क्रीड़ाओं का संचार भी रचा-बसा है। इसके अलावा बालकों के साहस, बुद्धि, उत्साह के कारण खतरे को अनदेखा करने जैसे क्रियाकलापों का भी उल्लेख है। कहानी की शुरुआत में ही बच्चों को कड़ी ठंड में झरबेरी तोड़कर खाते हुए चित्रित किया गया है, जिसमें उन्हें असीम आनंद मिलता है परंतु भाई द्वारा बुलाए जाने की बात सुनकर यह आनंद तुरंत भय में बदल जाता है परंतु भाई का पत्र लिखता देख उसके मन से भय गायब हो जाता है।

बच्चे स्कूल जाते हुए उछल-कूद और हँसी मजाक ही नहीं वरन् तरह-तरह की शरारतें भी करते हैं। वे कुएँ में पड़े साँप की फुफकार सुनने के लिए उसमें मिट्टी का ढेला फेंककर हर्षित होते हैं। गलती हो जाने पर वे पिटाई से बचने के लिए तरह-तरह के बहाने सोचते हैं तो समय पर जि मेदारी की अनुभूति करते हैं और जान जोखिम में डालने से भी पीछे नहीं हटते हैं। इस तरह यह कहानी बाल मनोविज्ञान का सफल चित्रण करती है।

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