वैज्ञानिक चेतना के वाहक: चन्द्र शेखर वेंकट रामन् 9th Class (CBSE) Hindi
निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए:
प्रश्न: रामन् भावुक प्रकृति प्रेमी के अलावा और क्या थे?
उत्तर: रामन् भावुक प्रकृति प्रेमी के अलावा एक सुयोग्य वैज्ञानिक एवं अनुसंधानकर्ता थे।
प्रश्न: समुद्र को देखकर रामन् के मन में कौन-सी दो जिज्ञासाएँ उठीं?
उत्तर: समुद्र को देखकर रामन् के मन में दो जिज्ञासाएँ उठीं:
- समुद्र के पानी का रंग नीला ही क्यों होता है?
- वह रंग कोई और क्यों नहीं होता है?
प्रश्न: रामन् के पिता ने उनमें किन विषयों की सशक्त नींव डाली?
उत्तर: रामन् के पिता ने उनमें गणित और भौतिकी की सशक्त नींव डाली।
प्रश्न: वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन् क्या करना चाहते थे?
उत्तर: रामन् वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के द्वारा उनके कंपन के पीछे छिपे रहस्य की परतें खोलना चाहते थे।
प्रश्न: सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन् की क्या भावना थी?
उत्तर: सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन् की भावना थी कि वह पढ़ाई करके विश्वविद्यालय के शिक्षक बनकर, अध्ययन अध्यापन और शोध कार्यों में अपना पूरा समय लगाना चाहते थे।
प्रश्न: ‘रामन् प्रभाव’ की खोज के पीछे कौन-सा सवाल हिलोरें ले रहा था?
उत्तर: रामन् का सवाल थी कि आखिर समुद्र के पानी का रंग नीला ही क्यों है? इसके लिए उन्होंने तरल पदार्थ पर प्रकाश की किरणों का अध्ययन किया।
प्रश्न: प्रकाश तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने क्या बताया?
उत्तर: प्रकाश तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने बताया था कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है। उन्होंने इन कणों की तुलना बुलेट से की और इन्हें फोटॉन नाम दिया।
प्रश्न: रामन् की खोज ने किन अध्ययनों को सहज बनाया?
उत्तर: रामन् की खोज ने पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं के बारे में खोज के अध्ययन को सहज बनाया।
प्रश्न: उपयुक्त शब्द का चयन करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए: इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस, फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन, भौतिकी, रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट
- रामन् का पहला शोध पत्र ………… में प्रकाशित हुआ था।
- रामन् की खोज …………… के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
- कलकत्ता की मामूली-सी प्रयोगशाला का नाम …………….. था।
- रामन् द्वारा स्थापित शोध संस्थान ……… नाम से जानी जाती है।
- पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए ………. का सहारा लिया जाता था।
उत्तर:
- रामन् का पहला शोध पत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।
- रामन् की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
- कलकत्ता की मामूली-सी प्रयोगशाला का नाम इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस था।
- रामन् द्वारा स्थापित शोध संस्थान रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट नाम से जानी जाती है।
- पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था।
प्रश्न: निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए: उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।
उत्तर: डॉ. रामन् सरकारी सुख-सुविधाओं का त्याग करके भी सरस्वती अर्थात शिक्षा पाने और देने के काम को अधिक महत्त्वपूर्ण मानते थे और उन्होंने यही किया भी।
प्रश्न: हमारे पास ऐसी न जाने कितनी ही चीज़ें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं।
उत्तर: हमारे आस-पास के वातावरण में अनेक प्रकार की चीज़ें बिखरी होती हैं। उन्हें सही ढंग से सँवारने वाले व्यक्ति की आवश्यकता होती है। वही उनको नया रुप देता है।
प्रश्न: यह अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।
उत्तर: डॉ. रामन् किसी न किसी प्रकार अपना कार्य सिद्ध कर लेते थे। वे हठ की स्थिति तक चले जाते थे। योग साधना हठ का अंश रहता है। रामन् मामूली उपकरणों से भी अपनी प्रयोगशाला का काम चला लेते थे। यह एक प्रकार का हठयोग ही था।
निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए:
प्रश्न: कॉलेज के दिनों में रामन् की दिली इच्छा क्या थी?
उत्तर: कॉलेज के दिनों में रामन् की दिली इच्छा थी कि वे नए-नए वैज्ञानिक प्रयोग करें, पूरा जीवन शोधकार्यों में लगा दें। उनका मन और दिमाग विज्ञान के रहस्यों को सुलझाने के लिए बैचेन रहता था। उनका पहला शोधपत्र फिलॉसॉफिकल मैग़जीन में प्रकाशित हुआ।
प्रश्न: वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन् ने कौन-सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की?
उत्तर: रामन् ने देशी और विदेशी दोनों प्रकार के वाद्ययंत्रों का अध्ययन किया। इस अध्ययन के द्वारा वे पश्चिमी देशों की भ्रांति को तोड़ना चाहते थे कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्ययंत्रों की तुलना में घटिया है।
प्रश्न: रामन् के लिए नौकरी संबंधी कौन-सा निर्णय कठिन था?
उत्तर: रामन् भारत सरकार के वित्त विभाग में अफसर थे। परन्तु एक दिन प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी ने रामन् से नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद लेने के लिए आग्रह किया। इस बारे में निर्णय लेना उनके लिए अत्यंत कठिन हो गया क्योंकि सरकारी नौकरी की बहुत अच्छी तनख्वाह अनेकों सुविधाएँ छोड़कर कम वेतन, कम सुविधाओं वाली नौकरी का फैसला मुश्किल था। परन्तु रामन् ने सरकारी नौकरी छोड़कर विश्वविद्यालय की नौकरी कर ली क्योंकि सरस्वती की साधना उनके लिए महत्वपूर्ण थी।
प्रश्न: सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया?
उत्तर: सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर निम्नलिखित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया:
- 1924 में ‘रॉयल सोसायटी’ की सदस्यता प्रदान की गई।
- 1929 में उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी गई।
- 1930 में विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार ‘नोबल पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
- रॉयल सोसायटी का ह्यूज पदक प्रदान किया गया।
- फ़िलोडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का ‘फ्रेंकलिन पदक’ मिला।
- सोवियत संघ का अंतर्राष्ट्रीय ‘लेनिऩ पुरस्कार’ मिला।
- 1954 में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
प्रश्न: रामन् को मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतीय-चेतना को जाग्रत किया। ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर: रामन् को समय पर मिलने वाले पुरस्कारों ने भारतीय-चेतना को जाग्रत किया। इनमें से अधिकाँश पुरस्कार विदेशी थे और प्रतिष्ठित भी। अंग्रेज़ों की गुलामी के दौर में एक भारतीय वैज्ञानिक को इतना सम्मानित दिए जाने से भारत को आत्मविश्वास और आत्मसम्मान मिला। इसके लिए भारतवासी स्वयं को गौरवशाली अनुभव करने लगे।