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प्रौढ़ शिक्षा पर हिंदी निबंध विद्यार्थियों के लिए: Adult Education

प्रौढ़ का अर्थ है चालीस-पैंतालिस वर्ष की आयु का व्यक्ति। ऐसी आयु के स्त्री-पुरुषों को शिक्षा देना प्रौढ़ शिक्षा कहलाता है। शिक्षा की आयु सामान्यतः सात वर्ष से पच्चीस वर्ष तक मानी जाती है। संसार के अधिकांश व्यक्ति इसी आयु में शिक्षा प्राप्त कर, आजीविका – उपार्जन में समर्थ हो गृहस्थ – जीवन में पावेश करते हैं। स्वतंत्रता – प्राप्ति से पूर्व भारत के बहुत से बच्चे शिक्षा से वंचित रहते थे। इसके मुख्य कारण थे – देश में शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ था। अधिकांश गाँवों और छोटे कस्बों में पाठशालाएँ तथा विद्यालय नहीं थे। कुशाग्र, मेधावी तथा पढने – लिखने में रूचि होनेवाले किशोरों को अपने गाँव से बाहर चार – पाँच मील पैदल चल कर पास के किसी विद्यालय में पढना पड़ता था। गरीब – मेहनतकश परिवारों के बच्चों को बचपन से ही अपने माता – पिता की आर्थिक सहायता करने के लिए मेहनत, मजदूरी करनी पड़ती थी। वे शिक्षा से वंचित रह जाते थे। इन परिवारों की यह मनसिकता और सोच भी बच्चों की अशिक्षा के लिए उत्तरदायी थी कि इन्हें बड़े होकर तो मजदूर ही बनना है, दफ्तर का बाबू नहीं, अतः इनको पढ़ाने – लिखाने से क्या लाभ? कुछ बच्चे ऐसे भी होते थे जिनका मन पढने लिखने में नहीं लगता था, वे कामचोर होते थे और इस कारण शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते थे।

प्रौढ़ शिक्षा निबंध: Adult Education essay in Hindi

प्रश्न उठाया जाता है कि प्रौढ़ों को, बूढ़े तोतों को पढ़ाने की, साक्षर-शिक्षित बनाने की आवश्यकता ही क्या है? उत्तर बड़ा स्पष्ट है – शिक्षा मनुष्य का बौद्धिक-मानसिक विकास करती है। शिक्षा हमारे नेत्रों पर से अज्ञान, कुरीतियों, रुढियों अंधविश्वासों के कारण जो पर्दा पड़ा हुआ है, उसे उठाती है और हम ज्ञान के आलोक में चीजों को, अपने चारों ओर के जीवन को सही तरह पहचान कर, उपयुक्त कार्य कर अपना ही नहीं समाज और देश का कल्याण कर सकते हैं। अज्ञान का अंधकार किसी के लिए भी शुभ नहीं होता। प्राचीन भारत इसीलिए समृद्ध, सम्पन्न एवं ज्ञान का भंडार था क्योंकि यहाँ शिक्षा का समुचित प्रसार था – मण्डन मिश्र के घर के पक्षी तक संस्कृत के श्लोकों का पाठ करते थे। आज विश्व में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान, प्रौद्योगिकी आदि के कारण क्रान्ति हो रही है, उद्योगों, कृषि, वाणिज्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हो रही है। यदि भारत के प्रौढ़ व्यक्ति इसकी जानकारी प्राप्त करेंगे तो एक ओर वे कुरीतियों, कुनीतियों, अन्ध-विश्वासों, रुढियों से मुक्त हो सकेंगे।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद देश के नेताओं तथा सरकार ने अनुभव किया कि साक्षरता-शिक्षा का प्रसार करने से ही देश की वैचारिक और भौतिक क्षेत्र में प्रगति हो सकती, अतः उसने विश्वव्यापी साक्षरता-प्रसार के अभियान का अंग बनकर प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम चलाने का संकल्प किया। यूनेस्को ने इस कार्य के लिए भारत को आर्थिक सहायता भी दी। इस धनराशि तथा अपने संसाधनों का प्रयोग करते हुए सरकार के शिक्षा और समाज-कल्याण मंत्रालय ने इस दिशा में सक्रिय और उपयोग कार्य किया है।

अशिक्षित प्रौढ़ों को सुशिक्षित बनाने के लिए उनकी सुविधा के अनुरूप स्थानों एवं समय पर शिक्षा का प्रबन्ध किया गया है। नगरों में कोई भवन सुनिश्चित किया जाता है – कम्युनिटी हॉल या स्कूल के खाली भवन में इनकी शिक्षा का प्रबन्ध किया जाता है और समय होता है सन्ध्या पाँच बजे बाद जब लोग अपना समय गप्पें मारने या चुगली-चकारी में नष्ट करते हैं। गाँवों में समय तो वही रहता है, स्थान होता है गाँव की चौपाल या पंचायत-भवन। प्रौढ़ स्त्रियों को शिक्षा दी जाती है मुहल्ले के किसी घर में और समय होता है दोपहर बाद जब वे घर के कामकाज से फुर्सत पाती हैं। इन्हें व्यवसायिक शिक्षा कढाई-बुनाई, चित्रकारी, खिलोने बनाने की कला आदि का भी प्रशिक्षण दिया जाता है जिन्हें सीखकर ये परिवार की आय बढ़ा सकती हैं। प्रौढ़ शिक्षा पानेवाले नर-नारियों को पुस्तकें, कापियाँ, स्लेट, पैंसिल आदि मुफ्त दी जाती है और शिक्षा निःशुल्क होती है क्योंकि अध्यापक या तो स्वयंसेवी संस्थाओं के समाजसेवी कार्यकर्त्ता होते हैं या सरकार द्वारा नियुक्त अध्यापक या ग्राम सेविकाएँ।

हमारा देश विकासशील देश है, विकास की प्रक्रिया से गुजर रहा है। वह सम्पन्न नहीं है, बजट में शिक्षा के लिए आबंटित धनराशी सीमित होती है। अतः प्रौढ़ शिक्षा के लिए भी पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं होता। देश के दूर-दराज के, पिछड़े भाग जहाँ आदिम जातियाँ रहती हैं प्रौढ़ शिक्षा के लाभ से वंचित हैं। देश के बहुत-से प्रौढ़ों को यह भी नहीं पता कि प्रौढ़-शिक्षा का अभियान चलाया जा रहा है और वे इससे लाभ उठा सकते हैं। अतः एक ओर तो जरूरी यह है कि प्रौढ़ अपनी इच्छा से स्वयं शिक्षित होने का प्रयास करें तथा दूसरी और समाजसेवी संस्थाएँ इस कार्य में अपनी सक्रिय भूमिका निभायें। जहाँ चाह होती है वहाँ राह अपने-आप निकल आती है। अत: दृढ़ संकल्प, लग्न और निष्ठा की आवश्यकता है। यदि हमें इक्कीसवीं शताब्दी को बनाना है, सन् 2020 ई. तक विकासशील देशों की पंगत को लाँघ कर विकसित देशों की श्रेणी में अपना नाम लिखना है तो अन्य कार्यों के साथ-साथ प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में भी पूरी निष्ठा और लग्न के साथ काम करना होगा।

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