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भिक्षावृत्ति पर निबंध: Hindi Essay on Beggary

भिक्षावृत्ति पर निबंध: Hindi Essay on Beggary

‘वृत्ति’ शब्द का प्रयोग स्वभाव और आजीविका दोनों अर्थों में किया जाता है। भिक्षावृत्ति के संदर्भ में इस का अर्थ भिक्षा के द्वारा अपना भरण-पोषण करने से ही है। कविवर घाघ ने भिक्षावृत्ति को भरण पोषण का अन्तिम साधन बताते हुए कहा है:

उत्तम खेती मध्यम वान। निषद चाकरी भीख निदान।।

सुदामा चरित में भी ‘बामन को धन केवल भिच्छा‘ कहकर ब्राह्मणों द्वारा भिक्षावृत्ति के माध्यम से जीवन यापन करने का समर्थन किया गया है। प्राचीन काल में जब आश्रम व्यवस्था अपने उत्कर्ष पर थी, तब ग्रहस्थ जनों पर ही शेष तीन आश्रमों (ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और संन्यास) के पालन-पोषण का भार था।

यह प्राचीन सामाजिक व्यवस्था द्वारा अनुमोदित थी। परन्तु इस वृत्ति को कभी भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा गया। मांगने को मरण के समान बताकर इसका निषेध किया गया। कबीर ने तो डंके की चोट से कहा:

मर जाऊं मांगू नहीं अपने तन के काज।

इसी प्रकार कविवर रहीम ने भी मांगने पर अपमान होने का उल्लेख किया है:

रहिमन याचकता गहे बड़े छोट हैं जात।

भगवान विष्णु भी बलि के द्वार पर याचक होने के कारण ‘वामन’ (बौने) हो गये। माँगना बड़ा कठिन कार्य है। इसमें मन को मारना पड़ता है। मनुष्य पानी-पानी हो जाता है परन्तु परिस्थितिवश कभी-कभी महान कार्य की पूर्ति के लिए और कभी निजी स्वार्थपूर्ति के लिए मनुष्य को भिक्षावृत्ति के लिए विवश होना पड़ता है।

अपने पुत्र अर्जुन की प्राण रक्षा के लिए कुन्ती ने इन्द्र के कहने से दानवीर कर्ण से कवच और कुंडल मांगने में संकोच नहीं किया। इन्द्र ने वृत्रासुर के वध के लिए देवताओं के साथ दधिचि की अस्थियां जा मांगी। विश्वामित्र ने हरिश्चन्द्र से उनका सारा राज्य ही ले लिया और उन्हें बिकने पर विवश कर दिया। धार्मिक और सामाजिक महत्त्व के कार्यो के लिए मांगना तो उचित कहा जा सकता है।

अस्पताल, स्कूल, मंदिर, धर्मशाला आदि का निर्माण व्यक्ति विशेष के वश की बात नहीं होती। अत: इसकी स्थापना के लिए धनाढ़य लोगों से मांगना अनुचित नहीं कहा जा सकता। धार्मिक स्थल लोगों के सहयोग से ही चल रहे हैं। महामना मदनमोहन मालवीय ने ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ के लिए तत्कालीन नवाबों और राजाओं से चन्दा मांगा था।

आज कल भिक्षावृत्ति की समस्या दिनों-दिन जटिल होती जा रही है। कुछ लोग तो अशक्त होने पर भीख मांगने पर मजबूर होते हैं। अनेक साधु भी इसी वृत्ति से अपना भरण पोषण करते हैं। भीख मांगने के लिए लोग तरह-तरह के स्वांग करते हैं। कभी जानबूझ कर अंधे बन जाते हैं।

कभी जाड़े में नगे रह कर, पेट पर हाथ मार-मार कर लोगों की सहानुभूमि अर्जित करते हैं। अनेक भिखारी पेट पर पट्‌टी बांधकर यह काम करते हैं। वृद्ध महिलाएं, बच्चे आदि भी भिक्षावृत्ति करते हैं। वे लोगों को ठगते हैं। अकेली-दुकेली महिला को लूटकर भी ले जाते हैं।

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