गाय की चार टांगें और एक लम्बी पूंछ होती हैं, जिससे वह अपने ऊपर बैठने वाले पक्षियों, मक्खियों और मच्छरों को उड़ाती है। उसकी दो मोटी-मोटी प्यारी आँखें होती हैं। इसका रंग-सफेद, लाल, काला और मटमैला होता है। पार्क, खेल के मैदान या खुले स्थानों में इसे घास खाते हुए देखा जा सकता है।
गाय किसी देवता का वाहन नहीं, फिर भी देवताओं की तरह पूजी जाती है। भगवान् श्रीकृष्ण की प्रतिमाओं के साथ, इसे भी देखा जा सकता है। संसार की सृष्टि के समय ब्रह्मा ने इसकी उत्पत्ति भी की जिससे मनुष्य के द्वारा यह पूजी जाए और उसके बदले गाय उसे दूध, घी देती रहे।
प्राचीन काल में मकान और फर्श कच्चे होते थे, उन्हें गाय के गोबर से लीपा जाता था। गोबर का ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। गोबर के उपले बनाकर जलाए जाते थे। वर्तमान समय में ‘गोबर गैस’ का भी प्रयोग किया जाता है जिससे धुंआ नहीं निकलता और आखे भी ठीक रहती हैं। गाँवों की स्त्रियाँ आज भी अपना चूल्हा गोबर से लीपती हैं और पुरुष जले हुए उपलों को हुक्कों में भरकर गुड़गुड़ाते हैं।
‘गोवर्धन’ के दिन गोबर को जलाकर उसकी पूजा और परिक्रमा की जाती है। गोबर का प्रयोग खेतों में खाद के लिए भी किया जाता है। गाय के मूत्र का प्रयोग दवाइयां बनाने में भी किया जाता है।
अनेक हिन्दू घरों में गायों की प्रतिदिन पूजा होती है। सुबह और शाम को पहली रोटी गाय के लिए निकाली जाती है।
प्राचीन काल में राजा, ब्राह्मणों को गो-दान भी देते थे। जिसमें राजा अपनी गौशाला की स्वस्थ गाय देता था। कन्याओं को भी विवाह के अवसर पर गाय उपहार में दी जाती थी। यज्ञ की समाप्ति पर भी गोदान दिया जाता था।
भारत की राजधानी दिल्ली में, जहां घनी आबादी है, वहाँ सड़कों और गलियों में गायें बिना बाधा के विचरण करती हैं। गाय उन सड़कों पर बैठकर जुगाली कर लेती है जहाँ तीव्र गति के वाहन दौड़ते हैं। गाय को बचाने के चक्कर में कई बार बस चालकों से दुर्घटना हो जाती है, लेकिन गाय को खरोंच तक नहीं आती।
नर गाय को बैल कहते हैं। गाय का बच्चा बछड़ा कहलाता है। बैल को खेती के कामों में, गाड़ी खींचने के लिए, पानी निकालने के लिए उपयोग में लाते हैं। गाय ‘माँ’ के स्वर का मधुर उच्चारण करती हैं। दिल्ली की सड़कों पर गाय गन्दगी में मुंह मारती नजर आती हैं। सरकार को चाहिए कि इन गायों के लिए एक गौशाला कानिर्माण करे, इन्हें वहाँ रखकर इनकी उचित देखभाल की जाए, जिससे दूध का अधिक उत्पादन हो।
ईश्वर का श्रेष्ठ उपहार गाय है, जो उसने मानव के लिए दिया है। भारतीय परम्परा के पूज्य पशुओं में गाय का स्थान सर्वोपरि है। यह परोपकारिणी है। गाय की सेवा सुश्रूषा से परम पुण्य की प्राप्ति होती है। मन की कामनाओं को पूर्ण करने के कारण इसे कामधेनु कहा गया है। ठीक ही कहा है: