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Hindi Grammar

समास: Compound – Hindi Grammar for Students and Children

समास (Compound) की परिभाषा

अनेक शब्दों को संक्षिप्त करके नए शब्द बनाने की प्रक्रिया समास कहलाती है। दूसरे अर्थ में – कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट करना ‘समास’ कहलाता है।

अथवा, दो या अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर संबद्ध बताने वाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतन्त्र शब्द बनता है, उस शब्द को सामासिक शब्द कहते है और उन दो या अधिक शब्दों का जो संयोग होता है, वह समास कहलाता है।

  • समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है।
  • वे दो या अधिक पद एक पद हो जाते है: ‘एकपदीभावः समासः‘।
  • समास में समस्त होनेवाले पदों का विभक्ति-प्रत्यय लुप्त हो जाता है।
  • समस्त पदों के बीच सन्धि की स्थिति होने पर सन्धि अवश्य होती है। यह नियम संस्कृत तत्सम में अत्यावश्यक है।
  • समास की प्रक्रिया से बनने वाले शब्द को समस्तपद कहते हैं; जैसे: देशभक्ति, मुरलीधर, राम-लक्ष्मण, चौराहा, महात्मा तथा रसोईघर आदि।
  • समस्तपद का विग्रह करके उसे पुनः पहले वाली स्थिति में लाने की प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं; जैसे: देश के लिए भक्ति; मुरली को धारण किया है जिसने; राम और लक्ष्मण; चार राहों का समूह; महान है जो आत्मा; रसोई के लिए घर आदि।
  • समस्तपद में मुख्यतः दो पद होते हैं – पूर्वपद तथा उत्तरपद।पहले वाले पद को पूर्वपद कहा जाता है तथा बाद वाले पद को उत्तरपद; जैसे:पूजाघर (समस्तपद) – पूजा (पूर्वपद) + घर (उत्तरपद) – पूजा के लिए घर (समास-विग्रह)राजपुत्र (समस्तपद) – राजा (पूर्वपद) + पुत्र (उत्तरपद) – राजा का पुत्र (समास-विग्रह)

समास के भेद

समास के मुख्य सात भेद है:

  1. तत्पुरुष समास (Determinative Compound)
  2. कर्मधारय समास (Appositional Compound)
  3. द्विगु समास (Numeral Compound)
  4. बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
  5. द्वन्द समास (Copulative Compound)
  6. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
  7. नञ समास

तत्पुरुष समास

जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक-चिह्न लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते है।जैसे:

तुलसीकृत = तुलसी से कृत
शराहत = शर से आहत
राहखर्च = राह के लिए खर्च
राजा का कुमार = राजकुमार

तत्पुरुष समास में अन्तिम पद प्रधान होता है। इस समास में साधारणतः प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष्य होता है। द्वितीय पद, अर्थात बादवाले पद के विशेष्य होने के कारण इस समास में उसकी प्रधानता रहती है।

तत्पुरुष समास के भेद

तत्पुरुष समास के छह भेद होते है:

  1. कर्म तत्पुरुष
  2. करण तत्पुरुष
  3. सम्प्रदान तत्पुरुष
  4. अपादान तत्पुरुष
  5. सम्बन्ध तत्पुरुष
  6. अधिकरण तत्पुरुष

(1) कर्म तत्पुरुष (द्वितीया तत्पुरुष) – इसमें कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ का लोप हो जाता है। जैसे:

समस्त-पद विग्रह
स्वर्गप्राप्त स्वर्ग (को) प्राप्त
कष्टापत्र कष्ट (को) आपत्र (प्राप्त)
आशातीत आशा (को) अतीत
गृहागत गृह (को) आगत
सिरतोड़ सिर (को) तोड़नेवाला
चिड़ीमार चिड़ियों (को) मारनेवाला
सिरतोड़ सिर (को) तोड़नेवाला
गगनचुंबी गगन को चूमने वाला
यशप्राप्त यश को प्राप्त
ग्रामगत ग्राम को गया हुआ
रथचालक रथ को चलाने वाला
जेबकतरा जेब को कतरने वाला

(ii) करण तत्पुरुष (तृतीया तत्पुरुष) – इसमें करण कारक की विभक्ति ‘से’, ‘के द्वारा’ का लोप हो जाता है। जैसे:

समस्त-पद विग्रह
वाग्युद्ध वाक् (से) युद्ध
आचारकुशल आचार (से) कुशल
तुलसीकृत तुलसी (से) कृत
कपड़छना कपड़े (से) छना हुआ
मुँहमाँगा मुँह (से) माँगा
रसभरा रस (से) भरा
करुणागत करुणा से पूर्ण
भयाकुल भय से आकुल
रेखांकित रेखा से अंकित
शोकग्रस्त शोक से ग्रस्त
मदांध मद से अंधा
मनचाहा मन से चाहा
सूररचित सूर द्वारा रचित

(iii) सम्प्रदान तत्पुरुष (चतुर्थी तत्पुरुष) – इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए’ लुप्त हो जाती है। जैसे:

समस्त-पद विग्रह
देशभक्ति देश (के लिए) भक्ति
विद्यालय विद्या (के लिए) आलय
रसोईघर रसोई (के लिए) घर
हथकड़ी हाथ (के लिए) कड़ी
राहखर्च राह (के लिए) खर्च
पुत्रशोक पुत्र (के लिए) शोक
स्नानघर स्नान के लिए घर
यज्ञशाला यज्ञ के लिए शाला
डाकगाड़ी डाक के लिए गाड़ी
गौशाला गौ के लिए शाला
सभाभवन सभा के लिए भवन
लोकहितकारी लोक के लिए हितकारी
देवालय देव के लिए आलय

(iv) अपादान तत्पुरुष (पंचमी तत्पुरुष) – इसमे अपादान कारक की विभक्ति ‘से’ (अलग होने का भाव) लुप्त हो जाती है। जैसे:

समस्त-पद विग्रह
दूरागत दूर से आगत
जन्मान्ध जन्म से अन्ध
रणविमुख रण से विमुख
देशनिकाला देश से निकाला
कामचोर काम से जी चुरानेवाला
नेत्रहीन नेत्र (से) हीन
धनहीन धन (से) हीन
पापमुक्त पाप से मुक्त
जलहीन जल से हीन

(v) सम्बन्ध तत्पुरुष (षष्ठी तत्पुरुष) – इसमें संबंधकारक की विभक्ति ‘का’, ‘के’, ‘की’ लुप्त हो जाती है। जैसे:

समस्त-पद विग्रह
विद्याभ्यास विद्या का अभ्यास
सेनापति सेना का पति
पराधीन पर के अधीन
राजदरबार राजा का दरबार
श्रमदान श्रम (का) दान
राजभवन राजा (का) भवन
राजपुत्र राजा (का) पुत्र
देशरक्षा देश की रक्षा
शिवालय शिव का आलय
गृहस्वामी गृह का स्वामी

(vi) अधिकरण तत्पुरुष (सप्तमी तत्पुरुष) – इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति ‘में’, ‘पर’ लुप्त जो जाती है। जैसे:

समस्त-पद विग्रह
विद्याभ्यास विद्या का अभ्यास
गृहप्रवेश गृह में प्रवेश
नरोत्तम नरों (में) उत्तम
पुरुषोत्तम पुरुषों (में) उत्तम
दानवीर दान (में) वीर
शोकमग्न शोक में मग्न
लोकप्रिय लोक में प्रिय
कलाश्रेष्ठ कला में श्रेष्ठ
आनंदमग्न आनंद में मग्न

कर्मधारय समास

जिस समस्त-पद का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान-उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य संबंध हो, कर्मधारय समास कहलाता है। दूसरे शब्दों में – कर्ता-तत्पुरुष को ही कर्मधारय कहते हैं।

पहचान: विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में ‘है जो’, ‘के समान’ आदि आते है।

जिस तत्पुरुष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधिकरण हों, अर्थात विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों, कर्ताकारक के हों और लिंग-वचन में समान हों, वहाँ ‘कर्मधारयतत्पुरुष समास होता है।

समस्त-पद विग्रह
नवयुवक नव है जो युवक
पीतांबर पीत है जो अंबर
परमेश्र्वर परम है जो ईश्र्वर
नीलकमल नील है जो कमल
महात्मा महान है जो आत्मा
कनकलता कनक की-सी लता
प्राणप्रिय प्राणों के समान प्रिय
देहलता देह रूपी लता
लालमणि लाल है जो मणि
नीलकंठ नीला है जो कंठ
महादेव महान है जो देव
अधमरा आधा है जो मरा
परमानंद परम है जो आनंद

कर्मधारय तत्पुरुष के भेद

कर्मधारय तत्पुरुष के चार भेद है:

  1. विशेषणपूर्वपद
  2. विशेष्यपूर्वपद
  3. विशेषणोभयपद
  4. विशेष्योभयपद

(i) विशेषणपूर्वपद: इसमें पहला पद विशेषण होता है।
जैसे: पीत अम्बर = पीताम्बर
परम ईश्वर = परमेश्वर

नीली गाय = नीलगाय
प्रिय सखा = प्रियसखा

(ii) विशेष्यपूर्वपद: इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद अधिकतर संस्कृत में मिलते है।

जैसे: कुमारी (क्वाँरी लड़की)
श्रमणा (संन्यास ग्रहण की हुई) = कुमारश्रमणा।

(iii) विशेषणोभयपद: इसमें दोनों पद विशेषण होते है। जैसे: नील-पीत (नीला-पी-ला); शीतोष्ण (ठण्डा-गरम ); लालपिला; भलाबुरा; दोचार कृताकृत (किया-बेकिया, अर्थात अधूरा छोड़ दिया गया); सुनी-अनसुनी; कहनी-अनकहनी।

(iv) विशेष्योभयपद: इसमें दोनों पद विशेष्य होते है। जैसे: आमगाछ या आम्रवृक्ष, वायस-दम्पति।

कर्मधारयतत्पुरुष समास के उपभेद

कर्मधारयतत्पुरुष समास के अन्य उपभेद हैं: (i) उपमानकर्मधारय (ii) उपमितकर्मधारय (iii) रूपककर्मधारय

जिससे किसी की उपमा दी जाये, उसे ‘उपमान’ और जिसकी उपमा दी जाये, उसे ‘उपमेय’ कहा जाता है। घन की तरह श्याम = घनश्याम – यहाँ ‘घन’ उपमान है और ‘श्याम’ उपमेय।

(i) उपमानकर्मधारय: इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता हैं। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘इव’ या
‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों ही पद, चूँकि एक ही कर्ताविभक्ति, वचन और लिंग के होते है, इसलिए समस्त पद कर्मधारय -लक्षण का होता है। अन्य उदाहरण – विद्युत्-जैसी चंचला = विद्युच्चंचला।

(ii) उपमितकर्मधारय: यह उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है, अर्थात इसमें उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा।
जैसे: अधरपल्लव के समान = अधर-पल्लव; नर सिंह के समान = नरसिंह।

किन्तु, जहाँ उपमितकर्मधारय – जैसा ‘नर सिंह के समान’ या ‘अधर पल्लव के समान’ विग्रह न कर अगर ‘नर ही सिंह या ‘अधर ही पल्लव’ – जैसा विग्रह किया जाये, अर्थात उपमान-उपमेय की तुलना न कर उपमेय को ही उपमान कर दिया जाय दूसरे शब्दों में, जहाँ एक का दूसरे पर आरोप कर दिया जाये, वहाँ रूपककर्मधारय होगा। उपमितकर्मधारय और रूपककर्मधारय में विग्रह का यही अन्तर है।

रूपककर्मधारय के अन्य उदाहरण – मुख ही है चन्द्र = मुखचन्द्र; विद्या ही है रत्न = विद्यारत्न भाष्य (व्याख्या) ही है अब्धि (समुद्र) = भाष्याब्धि।

(3) द्विगु समास

जिस समस्त-पद का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे:

समस्त-पद विग्रह
सप्तसिंधु सात सिंधुओं का समूह
दोपहर दो पहरों का समूह
त्रिलोक तीनों लोको का समाहार
तिरंगा तीन रंगों का समूह
दुअत्री दो आनों का समाहार
पंचतंत्र पाँच तंत्रों का समूह
पंजाब पाँच आबों (नदियों) का समूह
पंचरत्न पाँच रत्नों का समूह
नवरात्रि नौ रात्रियों का समूह
त्रिवेणी तीन वेणियों (नदियों) का समूह
सतसई सात सौ दोहों का समूह

द्विगु के भेद

इसके दो भेद होते है: (i) समाहारद्विगु और (ii) उत्तरपदप्रधानद्विगु।

(i) समाहारद्विगु: समाहार का अर्थ है ‘समुदाय’ ‘इकट्ठा होना’ ‘समेटना’।
जैसे: तीनों लोकों का समाहार = त्रिलोक
पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी
पाँच सेरों का समाहार = पसेरी
तीनो भुवनों का समाहार = त्रिभुवन

(ii) उत्तरपदप्रधानद्विगु: उत्तरपदप्रधान द्विगु के दो प्रकार है:

  • बेटा या उत्पत्र के अर्थ में; जैसे: दो माँ का – द्वैमातुर या दुमाता; दो सूतों के मेल का – दुसूती;
  • जहाँ सचमुच ही उत्तरपद पर जोर हो; जैसे: पाँच प्रमाण (नाम) = पंचप्रमाण; पाँच हत्थड़ (हैण्डिल) = पँचहत्थड़।

द्रष्टव्य – अनेक बहुव्रीहि समासों में भी पूर्वपद संख्यावाचक होता है। ऐसी हालत में विग्रह से ही जाना जा सकता है कि समास बहुव्रीहि है या द्विगु। यदि ‘पाँच हत्थड़ है जिसमें वह = पँचहत्थड़’ विग्रह करें, तो यह बहुव्रीहि है और ‘पाँच हत्थड़’ विग्रह करें, तो द्विगु।

तत्पुरुष समास के इन सभी प्रकारों में ये विशेषताएँ पायी जाती हैं:

  1. यह समास दो पदों के बीच होता है।
  2. इसके समस्त पद का लिंग उत्तरपद के अनुसार हैं।
  3. इस समास में उत्तरपद का ही अर्थ प्रधान होता हैं।

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2 comments

  1. Sachchidanannd deopandey

    Good explanation