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भारत-अरब देश और इजराइल सम्बन्ध

भारत-अरब देश और इजराइल सम्बन्ध पर विद्यार्थियों के लिए निबन्ध

स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भारत की नीति सभी देशों के साथ मैत्री, शान्ति, भाईचारा और परस्पर सहयोग की रही है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू देश के विदेश मंत्री भी थे और उन्होंने भारत के लिए जो विदेश – नीति निर्धारित की उसका आधार था दूसरे देशों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, यथाशक्ति सहायता – सहयोग देना और सबके साथ दोस्ती करना। उन्हीं की प्रेरणा से गुट – निरपेक्ष आन्दोलन का जन्म हुआ जिसमें युगोस्लाविया के मार्शल टीटो और मिस्र के कर्नल नासिर भारत के सहयोगी थे। उनहोंने अरब देशों के साथ भी मैत्री सम्बन्ध स्थापित किये। यद्यपि पाकिस्तान भारत को हिन्दुओं का, मुसलमानों पर अत्यचार करनेवाला देश कहता रहा फिर भी भारत इस्लाम धर्म के अनुयायी अरब देशों के साथ मित्रता का आचरण करता रहा, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अरब देशों का समर्थन करता रहा, उमके अधिकारों की रक्षा करता रहा। भारत के इस सद्भावपूर्ण आचरण एवं उसकी सबको सन्तुष्ट रखने, प्रसन्न रखने की नीति से प्रभावित होकर अरब देश भी भारत के साथ मैत्री बनाये रखने के पक्ष में थे। मिस्र के कर्नल नासिर और फिलस्तीन के नेता यासिर अराफात तो भारत को दूसरा घर मानते थे, यासिर अफरात ने तो खुलकर कहा था कि वह श्रीमती इन्दिरा गांधी को अपनी बहन मानते हैं।

यह एक बुनियादी सत्य है कि प्रत्येक देश के लिए सर्वोपरी उसका हित होता है। अपने हितों की खातिर वह नैतिकता, न्याय के सिद्धान्तों को भी ताक पर रख देता है। विश्व यदि दो शिविरों में बंटा – अमेरिका और रूस – में तो उसका मूल कारण उनके राजनीतिक सिद्धान्तों, साम्यवाद और जनतंत्र तथा आर्थिक नीतियाँ-पूँजीवाद तथा पूँजीवाद का विरोध थे। परन्तु आज स्वार्थ ही प्रमुख है। भारत ने यदि अरब देशों के साथ अरब देशों ने भारत के साथ यदि सहयोग किया तो अपने – अपने हितों की रक्षा के लिए। भारत को अरब देशों से ऊर्जा स्रोत-पैट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल और गैस चाहिए थे तथा अरब देशों को खाद्यान्न, फल और सब्जियों के साथ विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञता एवं इंजीनियर तथा वैज्ञानिक। अतः भले ही सिद्धान्तों, धर्म और मान्यताओं की दृष्टि से दोनों के बीच भेद रहा हो फिर भी दोनों के बीच मैत्री और सहयोग के सम्बन्ध बने रहे और आज भी बने हुए है। कुछ अरब देशों ने अपने कठमुल्लापन और धर्मान्धता के कारण भारत के साथ दुर्व्यवहार भी किया। अरब नेता ईदी अमीन ने अपने देश में रह रहे सम्पन्न और समृद्ध भारतवासियों की सम्पत्ति जब्त कर, उन्हें अपने देश से निष्कासित तक कर दिया। ईरान के खुमैनी ने भी धर्म के कारण भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार किया। काश्मीर के प्रश्न पर आरम्भ में तो अरब देश तटस्थ रहे या भारत का समर्थन करते रहे, परंतु पाकिस्तान के बहकावे, भड़काने, बरगलाने के कारण उनकी नीति में कुछ परिवर्तन आया।

आज अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य बदल गया है। मुसलमान देश समझते हैं कि उनके तथा उनके धर्म के विरुद्ध पश्चिम के देश जो या तो ईसाई  हैं या यहूदी षड्यंत्र कर रहे हैं, इस्लाम तथा इस्लाम धर्मावलम्बियों का समूल नाश करना चाहते हैं। अतः विश्व धर्म के नाम पर पुनः दो शिविरों में बंट गया है। भारत सदा कि तरह निरपेक्ष रहा है, फिलस्तीन-इजराइल के बीच संघर्ष होने पर उसने अनुभव किया कि इजराइल साम्राज्यवादी है, उसने येरुसलम तथा गाजा पट्टी पर जोर-जर्बदस्ती से अधिकार जमाकर फिलस्तीन के साथ अन्याय किया है। अतः उसने इजराइल के विरोध में फिलस्तीन का समर्थन किया और अरब देश प्रसन्न हुए परन्तु पाकिस्तान के आतंकवादी रवैयों को तथा उसके परिणामस्वरूप देश की सुरक्षा को ध्यान में रखकर, अपनी आत्मरक्षा के लिए इजराइल से दोस्ती के सम्बन्ध जोड़े हैं।

इजराइल के प्रधानमंत्री शेरोन की भारत-यात्रा तथा उनका भारत को आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने में सहायता देना, आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए कुछ सैन्य उपकरणों-रडार आदि की सहायता देने का वचन भारत के अरब देशों के साथ सम्बन्ध को प्रभावित कर सकता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि अरब देशों तथा भारत के बीच सम्बन्धों का आधार कोई सिद्धान्त नहीं है, वे केवल अपने-अपने स्वार्थों पर टिके हैं। पहले भी सम्बन्ध औपचारिकता  निभाने के लिए थे और आज भी वे औपचारिक हैं, आन्तरिक सौहार्द, सच्ची दोस्ती नहीं है।

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