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लगातार आगे बढ़ो “चरैवैति चरैवैति”: विद्यार्थियों और बच्चों के लिए निबंध

चरैवैति चरैवैति का शाब्दिक अर्थ है – निरन्तर आगे बढ़ते रहना। जिस प्रकार सूर्य निरन्तर भ्रमणशील रहता है कभी रुकता नहीं और थकता नहीं उसी प्रकार जो मनुष्य निरन्तर लक्ष्योम्मुख होकर अपने कार्य में प्रवृत्त रहता है वह एक न एक दिन अपने गन्तव्य को प्राप्त कर लेता है।

निरन्तर आगे बढ़ते रहने का सिद्धान्त सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है। परन्तु इस सिद्धान्त का परिपालन अत्यन्त कठिन है क्योंकि मनुष्य के जीवन में काल स्थान और परिस्थितियों का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। हर समय परिस्थितियाँ एक जैसी नहीं होती। कभी शारीरिक अक्षमताओं के कारण, कभी आर्थिक कठिनाईयों के कारण कभी भावनात्मक दुर्बलताओं के कारण, कभी प्राकृतिक आपदाओं के कारण, कभी राजभय के कारण मनुष्य का उत्साह मन्द पड़ जाता है और वह अपने लक्ष्य से बीमुख हो जाता है। निरन्तर आगे बढ़ने की बात तो दूर, वह परिस्थितियों के आगे जुआ डाल देता है या उनसे समझौता कर लेता है। विषम परिस्थितियों में केवल वे ही लोग बढ़ पाते हैं जिनमें बाधाओं से लड़ने का अदम्य साहस होता है। कविवर हरिऔध ने ठीक ही कहा है:

देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं।
वे रह भरोसे भाग्य के दु:ख भोग पछताते नहीं।।

केवल ऐसे लोग ही अपने परिश्रम से अन्धकार को चाँदनी में बदल सकते हैं, सफलता के अन्तिम सोपान तक पहुँच पाते हैं।

इतिहास साक्षी है कोलम्बस अपने साथियों के विरोध करने पर भी गरजते हुए समुद्र में नौका लेकर उतर पड़ा था और आखिर नई दुनिया की खोज करने में सफल हुआ। ऐतरेय ब्राह्मण में इन्द्र कहते हैं – “परिश्रम करने वाले को श्री मिलती है।अत: चलते-चलते चलो।” पण्डित जवाहर लाल नेहरू कहा करते थे – “आराम हराम है”। वे स्वयं भी बीस-बीस घण्टे तक परिश्रम करते थे। जो लोग दृढ़ संकल्प शक्ति से युक्त होते हैं वे अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर बढ़ते रहते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है:

बाधाएं कब बांध सकी हैं,
आगे बढ़ने वालों को।
विपदाएं कब रोक सकी हैं,
मरकर जीने वालों को।।

संघर्षो से खेलना जिसका स्वभाव बन जाता है, वे मार्ग में आने वाली आपदाओं और बाधाओं से नहीं डरते, वे अमर्त्य वीर पुत्र निरन्तर बढ़ते ही जाते हैं। एकलव्य गुरु के बिना भी महान धनुर्धर बना। हिलैरी और तेनसिंह एवरेस्ट की चोटी पर झंडा फहराने में सफल हुए। महान लोग निरन्तर चलते कालचक्र की परवाह किए बिना उत्तम लक्ष्य के लिए प्राणोत्सर्ग तक कर देते हैं। महर्षि दधीचि, हरिश्चंद्र, ईसा मसीह, मंसूर और गाँधी आज भी संसार में वंदनीय हैं।

भारतीय संस्कृति बड़ी विराट है। उसके अनुसार मनुष्य ईश्वर का अंश है। अत: ईश्वर पुत्र अर्थात् मानव का कर्त्तव्य है कि वह अपने मार्ग पर निरन्तर आगे बढ़, समाज की आलोचना प्रत्यालोचना की परवाह न करे, प्रलोभन अथवा भयवश मार्ग का परित्याग न करे।

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