‘राम की शक्तिपूजा’ की दुर्गा तक उनको आधिर्वाद देते हुए कहती हैं – ‘जय हो, जय हो, हे पुरुषोत्तम नवीन’ बलशाली। अपार शक्ति के भंडार, दुर्जेय होते हुए भी वह विनयशील हैं। महाक्रोधी परशुराम के प्रसंग तथा अहंकार तथा मद में चूर सागर के प्रसंग में लक्ष्मण तो अपना धैर्य और संयम खो बैठते हैं, परंतु राम विनय की मूर्ति बने रहते हुए हैं। उनकी विनयशीलता ही इन दोनों उद्दंड पत्रों को झुकने के लिए बाध्य करती है। राम का चरित्र वस्तुतः मानवीय गुणों का ही नहीं दैवी गुणों का आदर्श रूप है। यही कारण है कि राम भारतवासियों के हृदय में बस गये हैं, उनके रक्त के कण-कण में समाये हुए हैं, उनकी जिह्वा पर बैठे हुए हैं। प्रातःकाल से सोने के लिए शय्या पर लेटते हुए न मालूम कितनी बार राम का नाम लेते है। सुख में, दुःख में, हर्ष में, क्लेश में, डकार लेते हुए, जंभाई लेते हुए राम का नाम स्वतः मुख से निकल पड़ता है। अभिवादन करते हैं तो राम-राम कहते हैं, शमशान जाते समय अर्थी उठानेवाले और उनके पीछे चलने वाले ‘राम नाम सत्य है’ का उदघोष करते चलते हैं। राम भारत में तो पूज्य और वन्दनीय हैं ही, विदेशों में भी विशेषकर जहाँ भारतीय मूल के लोग रहते हैं जैसे फिजी द्वीप-समूह या मारीशस, बाली आदि में रामभक्तों की संख्या पर्याप्त है, उनके नाम राम से जुड़े हैं जैसे रामगुलाम तथा वे भी भारत की तरह रामलीला मनाते हैं, भले ही उनका ढंग यहाँ से कुछ भिन्न हो।
जिस व्यक्ति के प्रति इतना श्रद्धा-भक्ति का भाव हो, जिसे महामानव नहीं भगवान का अवतार माना जाता हो, उसके प्रति श्रद्धा-सुमन अर्पित करना, उसका स्मरण करना, उसकी जयन्ती मनाना स्वाभाविक ही है। राम त्रेता युग में हुए थे। उस समय से आज तक हजारों वर्ष बीत गये। पता नहीं कब से राम का जन्मदिन श्रद्धा-भक्ति-आदर से मनाया जाता रहा है और आज भी मनाया जाता है।
परम्परा के अनुसार, बाल्मीकि रामायण आदि प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर राम का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। इसी तिथि को रामनवमी कहकर उसे पर्व और उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
रामनवमी के दिन राम-भक्त प्रातः उठकर नित्य कर्म, स्नान आदि से निवृत्त हो मन्दिरों में जाकर या अपने घर के पूजा-गृह में बैठकर राम का भजन -पूजन, आरती-वन्दन, पूजा-उपासना करते हैं। कहीं कीर्तन होता है, कहीं भजन गाये जाते हैं, कहीं तुलसीकृत रामचरित मानस का पाठ होता है, कहीं गीत-संगीत की महफिल में कवितावली, गीतावली, विनयपत्रिका के पदों का सस्वर पाठ कर वातावरण को संगीतमय एवं भक्तिभावना से सात्विक बनाया जाता है। रामनवमी से कई दिन पहले से ही राम-मंदिरों को सजाना-सँवारना आरम्भ हो जाता है। मूर्तियों का प्रक्षालन कर, उन्हें नये-नये वस्त्राभूषणों से अलंकृत किया जाता है। मन्दिरों में झूला डालकर उसमें शिशु राम की मूर्ति को झुलाया जाता है। जन्म के समय शंख-घड़ियाल बजते हैं। समवेत स्वर में ‘भए प्रगत कृपाला, दीनदयाला, कौसल्या हितकारी’ पद गाया जाता है। कुछ लोग कृष्ण जन्माष्टमी की तरह इस दिन व्रत-उपवास भी रखते हैं। सारे दिन व्रत रखने के बाद फलाहार कर व्रत का उपारण करते हैं। इस दिन मंदिरों में सामूहिक उत्सव-भजन, कीर्तन, कथा-वाचन होते हैं; झाँकियाँ निकाली जाती हैं, शोभा-यात्राओं की अपनी छटा होती है। रामकथा के मर्मज्ञ विद्वान और कथा-वाचक सस्वर रामचरित मानस का पाठ करते हैं, अपने प्रवचनों में राम की महिमा का बखान करते हैं, उनके आदर्शों की प्रासंगिकता पर व्याख्यान देते हैं, राम के आचरण और कार्यों की सूक्ष्म व्याख्या करते हैं, बाली-वध या शम्बूक-वध के लिए राम की आलोचना करनेवालों को अपने तर्कों द्वारा पराभूत कर उनकी बोलती बन्द कर देते हैं।
इस प्रकार रामनवमी का पर्व मनाकर हम भारतीय सभ्यता-संस्कति के अग्रदूत, मानवता के संरक्षक, शक्ति-शील और सौन्दर्य की त्रिमूर्ति भगवान राम का स्मरण करते हैं। आज के युग में जब सभी प्रकार के जीवन-मूल्यों में पतन हो रहा है उनके जन्मदिन को मनाना सबसे उत्तम रीती होगी। इस दिन राम के आदर्शों का पालन करने, उनके पद-चिन्हों पर चलने कासंकल्प करना चाहिए।