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बरसात के एक दिन पर हिंदी निबंध

छतरी की आत्मकथा पर हिंदी में निबंध

मैं हूँ छतरी। बरसात प्रारम्भ होते ही मनुष्यों की सबसे अधिक आवश्कता मेरी ही होती है। मेरा प्रयोग सारे संसार में समान रूप से जाता है। भारत में मेरा प्रचलन उन्नीसवीं सदी के अंत में हुआ था। आजकल मेरा रूप फोल्डिंग छतरी के रूप में भी देखा जा सकता है। मैं एक छोटा रूप धारण कर छोटे से थैले में या पर्स में समा जाती हूँ। जिससे लोग मुझे सुविधा से अपने साथ लिए घूमते रहते हैं। और मैं उन्हें बरसात और गर्मी से बचाती हूँ।

चीन के लोगों की मान्यता है कि मेरा सर्वप्रथम आविष्कार यहीं पर हुआ था। रोम में मेरा शुभारम्भ तेज धूप से बचने के लिए हुआ था। लोग ऐसा कहते हैं कि फ्रांस के सम्राट लुई तेरहवें के पास मैं तेरह रंगों में थी। इसके अतिरिक्त मैं उसके पास चाँदी, सोने के भी रूप में थी। इंग्लैण्ड में मेरा सर्वप्रथम प्रयोग जॉन हेरवे ने किया। उन दिनों लोग मुझे ‘पेटीकोट वाली छडी’ के रूप में जानते थे। अंग्रेज अफसर युद्ध में मेरा प्रयोग करते थे। ड्‌यूक ऑफ बेलिंगटन तो मेरे अंदर अपनी तलवार छुपा कर रखते थे।

धीरे-धीरे मैं महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधन की वस्तु बन गई। महारानी विक्टोरिया ने मुझमें कपड़ों और तारों के बीच लोहे की जाली भी लगवाई। पहले में साधारण हत्थे में बना करती थी। बाद में मेरे विभिन्न धातुओं के हत्थे बनने लगे। धनाढ़य और शौकीन लोगों ने हाथी दांत के हत्थों से सजवाया। खरगोश, सांप, भालू आदि अन्य जीव-जन्तुओं की मुखाकृति में मुझे ढाला गया।

मेरा जीवन बड़ा शानदार है। मेरा जन्म एक बड़े कारखाने में होता है। वहाँ से मुझे छोटे-छोटे दुकानदारों के यहाँ पहुँचाया जाता है। वर्षा आरम्भ होने से पूर्व नर-नारियाँ मुझे भारी कीमत देकर खरीद लेते हैं। मेरे रंग रूप और मजबूती की प्रशंसा अपने मित्र और सहेलियों में करते हैं। अपनी प्रशंसा सुनकर मैं फूली नहीं समाती। धूप और वर्षा में उनकी रक्षा करने में मुझे परम सुख मिलता है।

मेरे जीवन में भी अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं। कुछ लोग मेरा सही इस्तेमाल करते हैं और कुछ लापरवाही से पटक देते हैं। इससे मेरी हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जाती है। फटने पर मनुष्य मेरी मरम्मत छतरियाँ बनाने वालों से करवाते हैं इससे मुझे नया जीवन मिलता है।

आपत्ति के समय मैं हथियार का भी काम करती हूँ। लोग मुझ हाथ में पकड़कर बदमाशों की पिटाई करते हैं। मैं सदैव अपने कर्त्तव्य का पालन करती हूँ, अपने शरीर पर तेज धूप, तेज वर्षा की बौछारें, धूप, कंकड़ आदि को झेलकर दूसरे व्यक्तियों की रक्षा करती हूँ।

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