भारत के अधिकांश व्यक्ति विशेषतः देहातों में रहनेवाले ग्रामीण धार्मिक वृत्ति, ईश्वर तथा देवी-देवताओं में आस्था रखनेवाले भोले-भाले नागरिक होते हैं। वह अच्छी फसल को दैवी अनुग्रह मानते हैं और देवता के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए धार्मिक विधि-विधानों का आश्रय लेते हैं। अतः वैशाखी के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व ही शय्या छोड़कर स्नान के बाद मंदिरों, गुरुद्वारों या पूजा-स्थलों में जाकर अच्छी फसल के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए भजन-पूजन, अरदास, गुरुग्रंथ साहब का पाठ सुनते हैं। खुशी मनाने का एक ढंग है पाकशाला में स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर उनको स्वयं खाना तथा गरीबों, असहायों को खिलाना। अतः वैसाखी के दिन भी पकवान, मिष्ठान्न, खीर, हलुवा आदि बनाये जाते हैं। गृहस्थी लोग स्वयं खाते हैं और गरीबों, भिखारियों आदि को खिलाते हैं; यथाशक्ति दान-दक्षिणा भी देते हैं।
कुछ लोग वैशाख मास की संक्रान्ति से नया वर्ष शुरू होना मानते हैं, नए वर्ष या संवत्सर का आरम्भ मानते हैं और इस दृष्टि से भी इस त्यौहार का महत्त्व बढ़ जाता है। प्रातःकाल के धार्मिक कृत्यों और दोपहर के भोजन, दान-दक्षिणा के बाद शेष समय मौज-मस्त, नृत्य-गान, मेले – ठेलों में बीतता है।
दिन में सरोवर, नदी-तट या खुले मैदान मेले का रुप धारण क्र लेता है। तमाशा दिखानेवाले, सर्कसवाले वैशाखी के दिन से तीन-चार दिन पहले ही मेले में अपना ताम-झाम लेकर पहुँच जाते हैं और खेल – तमाशे दिखाने की त्यारियाँ शुरू कर देते हैं और जब वैशाखी के दिन मेले में लोगों की – युवक-युवतियों, बच्चों-बूढों की भीड़ उमड़ती है तो मेले में दूकान लगानेवालों, खेल-तमाशे दिखानेवालों की बन आती है, वे खूब पैसा कमाते हैं क्योंकि उस समय इन गाँववालों की जेबों में पैसों की कमी नहीं होती, हृदय आशा और उमंग से भरे होते हैं। संध्या से लेकर आधी रात तक खेतों, खलिहानों, गली-मुहल्लों, चौपालों पर लोग नाचते-गाते हैं। नाचनेवालों में स्त्रियाँ कम और परुष अधिक होते हैं। उनका प्रिय नृत्य है भाँगड़ा। सिक्ख अपने सिरों पर तुर्रेदार साफा पहने रंग-बिरंगे कपड़े धारण किये हाथ मटकाते, पैर थिरकाते, तरह-तरह के गीत गाते ढोल, ढोलक, नगाड़ों की धुन पर नाचते हैं। उनका हर्षोल्लास पागलपन की सीमा तक पहुँच जाते हैं। बैलगाड़ियों और ट्रैक्टरों की ट्रालियों में बैठकर आसपास के लोग मेले में एकत्र होते हैं और तरह-तरह से अपना मनोरंजन करते हैं। अखाड़ों में दंगल-कुश्ती, कबड्डी आदि की प्रतियोगिताएँ होती हैं और विजेताओं को पुरस्कार दिये जाते हैं। सुबह से देर रात तक ढोल आदि बाजों की आवाज से वातावरण गूँजता रहता है।
सारांश यह कि वैशाखी कोई धार्मिक, सांस्कृतिक पर्व न होकर फसल पक जाने की खुशी में मनाये जानेवाला हर्षोल्लास, उत्साह, उमंग, जिन्दादिली का त्यौहार है। इसका संदेश है खूब परिश्रम करो और फिर परिश्रम का मीठा फल चखो।