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बसन्त पंचमी पर हिन्दी निबंध विद्यार्थियों के लिए

बसन्त पंचमी पर हिन्दी निबंध विद्यार्थियों के लिए

बसन्त पंचमी पर हिन्दी निबंध [2]

प्रस्तावना

बसंत पंचमी, बसंत ऋतू के आरम्भ का शुभ प्रतीक माना जाता है। बसंत ऋतू के पांचवे दिन के रूप में बसंत पंचमी को मनाया जाता है। बसंत पंचमी माघ महीने के पांचवे दिन में आती है। यह जनवरी से लेकर फरवरी के बीच होती है। कई लोगो की मान्यता है कि बसंत पंचमी के शुभ दिन से बसंत ऋतू प्रारम्भ होता है।

इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह मौसम अधिक सुहावना और खिला खिला सा होता है। यह दिन देवी सरस्वती के जन्म दिन के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। यह हिन्दुओं का त्यौहार है। इस दिन को शुभ माना जाता है। कई विशेष कार्यो को करने के लिए लोग इस शुभ घड़ी का इंतज़ार करते है। यह त्यौहार भारत, नेपाल, बांग्लादेश इत्यादि देशो में भी मनाया जाता है। ग्रामीण जगहों में पीले सरसो के फूल खिलते है, जिससे प्रकृति का सौंदर्य निखर उठता है।

बसंत पंचमी का शुभ समय

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, यह उत्सव माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस महीने में पेड़ पौधे, फूल और सरसो के पीले खेत मन को भा जाते है। इस मौसम में ना ज़्यादा गर्मी होती है और ना अधिक सर्दी। सुहावनी और सुगन्धित हवा इस मौसम में चार चाँद लगा देती है। बसंत पंचमी का मन भावन त्यौहार ऐसे ही मौसम में मनाया जाता है। बसंत ऋतू को कई लोग ऋतुराज भी कहते है।गर्मियों का मौसम आने से पहले मार्च से लेकर मई महीने तक बसंत ऋतू रहता है। इस मौसम में कोयल गाना गाती है। इस मौसम में रंग बिरंगे फूल खिलते है और खुशबू चारो ओर फैल जाती है। पेड़ो पर नए पल्लव और कोपले आती है। जब बसंत आता है, तो प्रकृति जैसे प्रफुल्लित हो उठती है। सभी लोगो में उमंग छा जाती है कि बसंत ऋतू आ गया है। इस मौसम में लोग आम जिसे फलो का राजा कहा जाता है, उसका आनंद के साथ सेवन करते है। इस मौसम में थोड़ी ठंडी हवा चलती है। चिड़ियों की आवाज़ सवेरे को मनमोहक बना देती है। बसंत ऋतू का मौसम प्रत्येक कृषको के लिए ज़रूरी होता है। फसले पकने लगती है और उनको काटने का सटीक समय भी आ जाता है। सभी लोग भरपूर आनंद और उत्साह से भरे होते है। बसंत ऋतू में कई त्योहारों का आगमन होता है। जैसे होली रंगो का त्यौहार, हनुमान जयंती, लोहड़ी, बिहू इत्यादि।

बसंत पंचमी का महत्व

जब सर्दियों का मौसम ख़त्म होता है, तो बसंत के आगमन की तैयारी शुरू हो जाती है। देश के लगभग सभी राज्यों में सरवती पूजा की जाती है। इस त्यौहार में पशु पक्षी और पेड़ पौधे खुशियों से नाच उठते है। माँ सरस्वती को संगीत की देवी भी कहा जाता है। इसलिए सभी कलाकार इस दिन को प्राथमिकता देते हुए सरस्वती पूजा को सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाते है। सभी लोग इस त्यौहार पर पीले रंग के पोशाक पहनते है। सरस्वती माँ का आशीर्वाद पाने के उद्देश्य से विद्यार्थी और बड़े लोग व्रत रखते है और पुष्पांजलि देते है। पुष्पांजलि देने के पश्चात सभी लोग प्रसाद ग्रहण करते है।

बसंत पंचमी के दिन पीला वस्त्र ही क्यों?

बसंत त्यौहार पर पीले रंग का प्रभाव अधिक रहता है। बसंती रंग पीले रंग का होता है। पीला रंग ख़ुशी, समृद्धि, ऊर्जा और रोशनी का प्रतीक है। यह एक मुख्य कारण है, जिसकी वजह से लोग पीले रंग का वस्त्र धारण करते है। पीले रंग का फूल और पीले रंग की मिठाईयों को देवी सरस्वती के आगे चढ़ाया जाता है। बसंत पंचमी के इस पवित्र मौके पर स्वादिष्ट भोजन बनता है, जिसे लोग आनंद से ग्रहण करते है।

कैसे मनाया जाता है बसंत पंचमी

इस त्यौहार में हिन्दू मान्यताओं के अनुसार छोटे बच्चो को उनका पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। सरस्वती देवी कला, ज्ञान का स्रोत है। उन्हें ज्ञान और बुद्धि की देवी कहा जाता है। इस दिन के सुबह को बसंत पंचमी का त्यौहार लोग अपने घरो में मनाते है। भारत में लगभग सभी विद्यालयों और शिक्षा संस्थानों में बड़े रीति रिवाज़ के संग इसे मनाया जाता है। बसंत पचमी में कई जगहों पर मेला लगता है। लोग एक दूसरे से प्यार और स्नेह के साथ मिलते है। बसंत पंचमी में लोग पतंग उड़ाते है। इस पर्व में बसंती रंग के पोशाक पहनते है और बसंती रंग के भोजन खाते है। सभी छात्र नहा धोकर सरस्वती पूजा के लिए तैयार हो जाते है। प्रत्येक छात्र सरस्वती देवी का आर्शीवाद चाहते है, ताकि वह अपनी शिक्षा अच्छे से प्राप्त कर सके। सरस्वती पूजा आरम्भ होने से पहले छात्र इस पूजा की तैयारी शुरू कर देते है। अनगिनत जगहों पर पूजा पंडाल लगाए जाते है। छात्र गण सभी पूजा पंडालों की साज में जुट जाते है। पूजा के दिन सभी छात्र सुबह नए नए कपड़े पहनते है। लड़कियां पीली साड़ी और लड़के पीले कुर्ते में नज़र आते है। सभी पूजा के दिन पुष्पांजलि से पहले पंडालों में आ जाते है। माँ सरस्वती के आगे शीश झुकाकर उनकी पूजा करते है। बच्चे इस दिन अपनी सारी किताबे माँ सरस्वती के समक्ष रखते है। उनका विश्वास है कि वह सरस्वती माँ के आशीर्वाद से सभी विषयो में अच्छा प्रदर्शन करेंगे। उसके बाद सम्पूर्ण विधि विधान के साथ पूजा पंडालों में पूजा होती है। सभी प्रकार के फल, अगरबत्ती, चन्दन, प्रसाद, लड्डू, पेडे इत्यादि भोग माँ के आगे लगाए जाते है। उनके चरणों में फूल अर्पित किये जाती है। पूजा के बाद सभी लोगो में प्रसाद वितरित किया जाता है। उसके बाद इस दिन कई जगहों पर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। सभी छात्र इस में भाग लेते है। भव्य तरीके से इस पूजा को आयोजित किया जाता है। सभी शिक्षा संस्थानों में बड़े पैमाने पर पूजा का आयोजन किया जाता है। शिक्षक और छात्र सभी मिल जुलकर पूजा में हिस्सा लेते है। जो भी माँ के दर्शन करता है उन्हें प्रसाद दिया जाता है। सरस्वती पूजा के दिन पंडालों में रौनक रहती है। सभी प्रकार के गीत बजाये जाते है और लोग उत्साहित रहते है। माँ की प्रतिमा का विसर्जन एक या दो दिन में कर दिया जाता है। अधिकाँश लोग सड़को पर देवी को विसर्जित करने के लिए जाते है। उसके बाद पानी में मूर्ति को विसर्जित किया जाता है और लोग हाथ जोड़कर नमन करते है। सरस्वती विसर्जन में विद्यार्थी भी भाग लेते है।

हिन्दू मान्यताएं

कई जगहों पर मान्यता है कि प्रातः काल बेसन लगाकर नहाना चाहिए। उसके बाद पीले कपड़े पहनकर माँ सरस्वती की अर्चना में लीन हो जाना चाहिए। कहा जाता है पीला रंग सिर्फ बसंत ऋतू को ही नहीं दर्शाता है, अपितु माँ सरस्वती को भी पीले रंग से लगाव है। बच्चो में अलग ही उत्साह का प्रवाह देखा जाता है। कई स्थानों पर छोटे से लेकर बड़ी प्रतिमा पंडालों में स्थापित किये जाते है। कई राज्य खासकर गुजरात में पतंग उड़ाने का उत्सव मनाया जाता है।

पौराणिक मान्यताएं

पहले दिनों में राजा हाथी पर विराजमान होकर सम्पूर्ण शहर घूमते थे। फिर मंदिर पहुँचते थे और वहाँ पूजा की जाती थी। इस मौसम में जौ, गेंहू और चना सम्पूर्ण रूप से कटने के लिए तैयार हो जाते है। फसलों के तैयार होने के आनंद में लोग इस त्यौहार को मनाते है। पौराणिक कथाओ के मुताबिक इस दिन का इतिहास प्रसिद्ध कालिदास से जुड़ा हुआ है। कालिदास ने एक सुन्दर राजकुमारी से विवाह किया था। राजकुमारी ने उसकी निंदा की, जब उसे ज्ञात हुआ कि कालिदास बेवकूफ है। कालिदास इससे आहत हुए और आत्महत्या करने के लिए जलाशय के पास गए। तभी देवी सरस्वती जल से प्रकट हुयी और उन्हें उस जल में डुबकी लगाने को कहा। कालिदास ने वैसे ही किया। उसके बाद से वह साहित्य से जुड़े श्रेष्ट कविताएं लिखने लगे और अपनी पत्नी को गलत साबित किया था। इसी तरह बसंत पंचमी को विद्या की देवी सरस्वती की लोग आराधना करते है।

त्यौहार का बदलता रूप

पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में बसंत पंचमी के समय को सरसो के खेतों से जोड़कर देखा जाता है। बच्चो से लेकर बड़े इस त्यौहार में पतंगबाज़ी करना बेहद पसंद करते है और जी खोलकर इसका लुफ्त उठाते है। आजकल त्योहारों में भी थोड़े परिवर्तन आये है। देश के उत्तरी भागो में इसे धूम धाम से मनाया जाता है। उत्तरी हिस्सों में इस त्यौहार के दिन ब्राह्मणो को खाना खिलाया जाता है। सरस्वती देवी की पूजा के साथ, विभिन्न तरह के समारोह आयोजित किये जाते है। इस शुभ दिन पर लोग गरीबो को पुस्तके, साहित्य संबंधित चीज़ें और अन्य चीज़ें दान करते है।

निष्कर्ष

बसंत पंचमी महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो पूरे देश में खुशियां भर देता है। इस त्यौहार की सुंदरता और चमक देखते ही बनती है। माँ सरस्वती का आशीर्वाद पाने के लिए सभी छात्र और लोग उत्सुक रहते है। इस दिन विद्या की देवी को समस्त देश में पूरे निष्ठा के साथ पूजा जाता है। सभी परिवार देवी सरस्वती की पूजा करते है और उनकी भक्ति में लीन रहते है।

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