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Child labour

बन्धुआ मजदूर समस्या पर हिन्दी निबंध विद्यार्थियों के लिये

बहुत पुराने जमाने में गुलाम-प्रथा अर्थात् आदमी को बेचने-खरीदने का रिवाज था। इसके अन्तर्गत सम्पन्न व्यक्ति पुरुषों को परिश्रम के लिए तथा स्त्रियों को अपनी वासना-पूर्ति के लिए कुछ धन देकर जीवन-भर के लिए अपना दास बना लेता था। समय के साथ जागरूकता, मानवता, मनुष्य को मनुष्य होने के नाते सम्मान देने के भाव जागे और यह क्रूर, अमानवीय प्रथा समाप्त हो गयी। पर मानव की प्रभुता, स्वामित्व और दूसरों को अपने अधीन रखने की मनोवृत्ति तो आज भी है और कदाचित् सृष्टि के अन्त तक रहेगी। अमीर और गरीब भी सदैव रहेंगे। साम्यवाद कुछ भी कहता रहे, वे सदा रहेंगे। आज भी जब कोई विपन्न, गरीबी का मारा व्यक्ति आर्थिक संकट में फंसता है तो अपना जेवर, कीमती सामना, खेत, भूमि, सम्पत्ति आदि रेहन रखकर उसके बदले ऋण लेता है तो इसे बन्धक रखना कहते हैं। ऋण प्राप्त करनेवाले को ब्याज तो चुकाना ही पड़ता है, हाँ ब्याज की दर कम होती है।

बन्धुआ मजदूर समस्या पर हिन्दी निबंध विद्यार्थियों और बच्चों के लिये

बन्धुआ मजदूरी की प्रथा उस दिन आरम्भ हुई जब कोई व्यक्ति ऋण लेने के लिए किसी साहूकार या जमींदार के पास गया। उसके पास रेहन रखने के लिए जमीन, जेवर या कोई अन्य मूल्यवान-उपयोगी वस्तु न थी। अतः साहूकार ने प्रस्ताव रखा कि यदि स्वयं को ही रेहन रख दे तो उसे ऋण मिल सकता है। ‘मरता क्या न करता‘। अतः वह संकट की दलदल में फंसा व्यक्ति साहूकार की शर्त मान लेता है। स्थिति वही रहती है जो जेवर या जमीन रेहन रखनेवाले की होती थी। ऋण प्राप्त करनेवाले को जब तक मूल धन नहीं लौटाया जाता, ब्याज देना पड़ता है और यह ब्याज होता है उसका परिश्रम। या तो वह स्वयं या उसके परिवार का कोई सदस्य-पत्नी, बहिन, लड़का, लड़की-ऋणदाता के यहाँ तब तक करते हैं तब तक मूलधन नहीं लौटाया जाता और ऋण वह मेहमान है जो एक बार आकर फिल लौटने का नाम ही नहीं लेता। परिणाम यह होता है कि ऋण की राशि बढती जाती है और उसे चुकाने के लिए बन्धुआ के परिवार के अन्य सदस्य भी बंधुआ मजदूर बनते जाते हैं।

भारत में भी मानवता के भाल पर कलंक बंधुआ मजदूरी है, इसका पता बहुत समय तक नहीं लगा। आज भी ठीक से पता नहीं है कि कुप्रथा देश के किन-किन भागों में है और बंधुआ मजदूरों की संख्या कितनी है। महाजनी सभ्यता में ऋणदाता कर्जदार को ऐसे दुष्चक्र में फंसाता है कि वह जीवन-भर उस जाल से निकल नहीं पाता, उसी में फंसा-फंसा अपन प्राण त्याग देता है। मूलधन न चुका पा सकने के कारण उसे जीवन-भर ब्याज के रूप में मजदूरी करनी पड़ती है और स्वामी उसके साथ पशुओं से भी अधिक दुर्व्यवहार करता है। उसे इतना परिश्रम करना पड़ता है कि असमय ही रोगों और मृत्यु का ग्रास बनना पड़ता है। कोल्हू के बैल की तरह रात-दिन परिश्रम करने के बाद मिलता क्या है- रुखा-सूखा अन्न और फटे-पुराने, जीर्ण-शीर्ण, स्वामी के तन से उतार के फैंके जाने कपड़े। ये भी इसलिए कि वह मरे नहीं, जीवित रहे और जीवन-भर स्वामी की सेवा करता रहे।

भारत अपने को धर्म-अध्यात्म के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ देश बताता है, सबसे बड़ा प्रजातंत्र कहता है, मानवता का पुजारी मानता है, अन्याय, अत्याचार, उत्पीड़न-शोषण के विरुद्ध जिहाद करनेवाला घोषित करता है। इस मानवता के पुजारी देश में बंधुआ मजदूरी हमारे लिए शर्म की बात है, हमारी सभ्यता-संस्कृति के माथे पर कलंक है। एक ओर हम दावा कर रहे हैं, जनता को आश्वस्त कर रहे हैं कि हमारी प्रगति, विकास की रफ्तार ऐसी है कि हम 2020 तक विकासशील देशों की पंक्ति लांघकर विकसित देश बन जायेंगे और दूसरी और हमारे देश में बंधुआ मजदूर हैं जो पशुओं का जीवन बिता रहे हैं। कैसी विडम्बना है! राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की रक्षा करने का दम भरनेवाले भारत में उसके नागरिक मानवाधिकारों से वंचित होकर पशुवत् जीवनं बिताने को बाध्य हैं। यह हमारे माथे पर कलंक है, घोर लज्जा का विषय है, मानवता का उपहास और अपमान है। यह शोषण-उत्पीड़न का सबसे अधिक विकराल, भयावह और जघन्य रूप है।

बंधुआ मजदूरी के इस कलंक को धोने के लिए सरकार तथा कुछ अन्य समाजसेवी संस्थाओं ने काम किया तो है, पर वह अपर्याप्त है, ऊँट के मुँह में जीरा है। बंधुआ मजदूरी का पता लगाकर कुछ लोगों को उस जाल से मुक्त किया गया है, उन्हें ऋण-मुक्त कर स्वतंत्र, स्वेच्छा से जीने का अवसर दिया गया है, परन्तु ऋणमुक्त होने के बाद भी उनके पुनर्वास की व्यवस्था ठीक से नहीं की गयी। परिणाम यह हुआ है कि बंधुआ मजदूरी के चंगुल से एक बार मुक्त होने के बावजूद उन्हें जीवित रहने के लिए पुनः इन्हीं महाजनों की शरण में जाना पड़ा है, उनकी मनमानी शर्तें माननी पड़ी हैं। वे नए सिरे से बंधुआ मजदूर बना लिये गये हैं। यदि इस समस्या को पूरी तरह समाप्त करना है तो इसके उपाय हैं:

  1. बंधुआ मजदूरी करनेवालों की सही-सही जानकारी प्राप्त करना।
  2. बंधुआ मजदूरी के जाल से मुक्त लोगों के पुनर्वास की समुचित व्यवस्था।
  3. बंधुआ मजदूरी सम्बन्धी कठोर कानून कि कोई व्यक्ति भी बंधुआ मजदूरी नहीं कराएगा और कानून का उल्लंघन करने वालों को कठोर दंड।
  4. बंधुआ मजदूरी को मिटाने के लिए तत्पर समाजसेवी संस्थाओं को सरकार द्वारा हर तरह का सहयोग और सहायता।

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