बाल दिवस पर हिंदी निबंध [2] ~ 700 Words
पंडित नेहरू का बच्चों के प्रति स्नेह और उनके व्यक्तित्व-विकास की चिन्ता केवल वैचारिक धरातल पर ही नहीं थे, इसके लिए उन्होंने अपने जीवनकाल में ही अनेक योजनाएँ बनाई और उनको अमली जामा पहनाया, उनके क्रियान्वयन में गहरी रूचि ली जिसके फलस्वरूप उन योजनाओं के फल शीघ्र ही भारत के बाल-समुदाय को लाभ पहुँचाने लगे। दिल्ली में रहने के कारण उनकी इन योजनाओं के सर्वाधीक प्रमाण हमें राजधानी में मिलते हैं। उन्हीं की प्रेरणा से इंडिया गेट के निकट राष्ट्रीय बाल-उद्यान बना जिसमें बालकों को खेलने-कूदने, व्यायाम करने और नौका-विहार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। बहादुर शाह जफर मार्ग पर बाल-भवन की स्थपना हुई जहाँ बच्चों के मनोरंजन के अतिरिक्त उनकी प्रतिभा के विकास के लिए अनेक कला-प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं जैसे शंकर्स चित्र-कला प्रतियोगिता। बच्चों को सुरुचिपूर्ण, ज्ञानवर्धक, उनका मनोरंजन करनेवाली पुस्तकें कम दामों में उपलब्ध हों और बच्चों की पढने-लिखने में रूचि बढ़े इसके लिए चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट नामक संस्था की स्थापना का श्रेय भी पंडित नेहरु को है। बच्चों के प्रति प्रधानमंत्री का इतना प्यार और उनके विकास की चिन्ता को देखकर ही दिल्ली के बाहर अन्य प्रदेशों में भी बाल-मनोरंजन और बाल-विकास की संस्थाएँ बनीं जिनसे भारत के असंख्य बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।
अपने परम हितैषी और प्यारे चाचा नेहरु के प्रति अपना सम्मान, आदर, श्रद्धा प्रकट करने के लिए समूचा राष्ट्र और विशेषकर बच्चे उके जन्मदिवस को बाल-दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं और बच्चों के हित की अनेक योजनाएँ आरम्भ की जाती हैं। इस दिवस को मनाने का प्रयोजन ही यह हैं कि भविष्य का निर्माण जिनके हाथों में है, उन बच्चों के लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा, उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए अधिकाधिक साधन और अवसर प्रदान किये जायें। हमारे समाज में अभी भी शोषण होता है: गरीबों और महिलाओं का ही नहीं मासूम बच्चों का भी। जिनका समय और शक्ति पढने-लिखने में लगनी चाहिए वे बाल-मजदूरी करते है। बाल-दिवस के अवसर पर इस शोषण के विरुद्द चेतना जगाई जाती है, कुछ कार्य भी किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्गत स्थापित यूनिसेफ जैसी संस्था भी सहयोग देती हैं।
बाल-दिवस मनाने की तैयारी हफ्ता-दस दिन पहले से शुरू हो जाती है। विभिन्न विद्यालय उस दिन आयोजित होनेवाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी, उनका रिहर्सल करने लगते हैं। 14 नवम्बर को विभिन्न विद्यालयों के बच्चों के दल अपनी-अपनी वेशभूषा में परेड करते हुए, मार्ग में अपने करतब दिखाते हुए जुलूस के रूप में बाल-पार्क, बाल-भवन जैसे स्थानों पर एकत्र होते हैं। वहाँ रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किये जाते हैं, प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं, बच्चों को फल, मिठाई बाँटे जाते हैं, विजेताओं को पुरस्कार दिये जाते हैं। कुछ दल शान्तिवन जाकर चाचा नेहरू की समाधि पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। कुछ अन्य दल त्रिमूर्ति भवन स्थित स्न्ग्रहलय जाकर उन वस्तुओं को देखते है जिनका पंडित जी प्रयोग करते थे अथवा जो उन्हें भेंट के रूप में दी गई थीं। इस प्रकार यह दिवस देश के भावी नागरिकों के व्यक्तित्व निर्माण और विकास के लिए देश को चेतना प्रदान करने का दिन है।