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भारत और साम्प्रदायिकता की समस्या पर विद्यार्थियों के लिए निबंध

भारत और साम्प्रदायिकता की समस्या पर निबंध

सम्प्रदाय का सामान्य अर्थ है एक ऐसा वर्ग, जन-समूह जिसका रहन-सहन, जीवन-पद्धति, धार्मिक विश्वास, पूजा-अर्चना की पद्धति, रीति-रिवाज एक समान हों। सम्प्रदाय का मुख्य आधार है धार्मिक विश्वास, आस्था, पूजा-उपासना की पद्धति। हिन्दू भगवान के विभिन्न रूपों देवी-देवताओं में विश्वास रखते हैं, मूर्ति-पूजक हैं। मुसलमान एक ईश्वर में आस्था रखते हैं, मूर्ति-भंजक हैं; नमाज़ पढ़ते हैं, रोजा रखते हैं, मांस-भक्षक हैं। प्रत्येक देश और समाज में सम्प्रदाय होते हैं। एक ही धर्म में विश्वास रखने वाले भी सम्प्रदायों में विभक्त हैं, जैसे ईसाईयों में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट, मुसलमानों में शिया-सुन्नी। सम्प्रदायों में विभक्त होना स्वाभाविक है क्योंकि सभी देशवासी समान विचारों के नहीं होते, उनके आचरण-व्यवहार में भिन्नता होती है। सम्प्रदायों की संरचना में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे असवैधानिक, अनैतिक या मानवता-विद्रोही कहा जाये।

भारत और साम्प्रदायिकता की समस्या पर विद्यार्थियों और बच्चों के लिए हिंदी निबंध

इतिहास साक्षी है कि आरम्भ से ही समाज अनेक सम्प्रदायों में विभक्त था-वैष्णव, शैव, शाक्त, जैन-बौद्ध, श्रौत-स्मार्त अनेक सम्प्रदाय थे।कृष्ण-भक्तों में अनेक सम्प्रदाय रहें हैं, कोई पुष्टि मार्गी था, कोई राधावल्लभ सम्प्रदाय का, कोई हरिदास सम्प्रदाय का, कोई सखी सम्प्रदाय का। इन सम्प्रदायों में परस्पर कलह और संघर्ष भी होते रहते थे। तुलसीदास ने वैष्णवों और शैवों के बीच वैमनस्य को दूर करने के लिए ही राम द्वारा शिव की पूजा- अर्चना करायी है और उनके मुख कहलवाया है – ‘शिव द्रोही मम दस कहावा, सो नर सपनेहु मोहि न पावा।‘ कबीर ने हिन्दू-मुसलमानों दोनों को फटकारा है ‘अरे इन दोउन रह न पायी‘ और उद्घोष किया है ‘हरी कौ भजै सो हरि कौ होई।“अंग्रेजों के आगमन से पूर्व तथा उनकी विषैली कूटनीति  से पूर्व भारत में सम्प्रदाय थे, हिन्दू-मुसलमानों में परस्पर घृणा, वैमनस्य, दुसरे को हीन समझने की भावना थी। धर्म-परिवर्तन भी होता था – कभी धमका कर, डरा कर, आतंकित कर, तो कभी लालच देकर, फुसलाकर। परन्तु साम्प्रदायिकता देश के लिए, राष्ट्र की अखंडता के लिए, देश की स्वतंत्रता के लिए कभी खतरा नहीं बनी थी। हिन्दू-मुसलमान दोनों जानते थे कि इसी देश में रहना है, न हिन्दू मुसलमानों को और न मुसलमान हिन्दुओं को निगल सकते हैं, उनका उनका अस्तित्व मिटा सकते हैं। परन्तु जब अंग्रेज शासक बने और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम में उन्होंने हिन्दू-मुसलमानों को कंधे-से कंधा मिलाकर अपने विरुद्ध एक-जुट होकर लड़ते देखा, ब्रिटिश साम्राज्यवाद को उखाड़ फैंकने का प्रयास करते पाया, तो उन्होंने ‘बाँटों और शासन करो‘ की नीति अपनाई। बाद में जब कांग्रेस के झंडे के नीचे स्वाधीनता सेनानी एकत्र हुए और उन्होंने ब्रिटिश सत्ता को ललकारा तो इनमें अधिकांश को हिन्दू देखकर उन्होंने मुसलमानों को हिन्दुओं के विरुद्ध भड़काया और साम्प्रदायिक विद्वेष की चिन्गारी भयंकर आग में बदल गई, दावाग्नि की तरह फैली और आये दिन होने वाले साम्प्रदायिक झगड़ों में सैकड़ों लोग मारे जाने लगे। गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह सैंकड़ों देशभक्तों को, अपने प्राण गँवाने पड़े। परिणाम था 1947 में देश का विभाजन, एक नये देश पाकिस्तान का जन्म।

समझा गया था कि पाकिस्तान के बनने के बाद कलह, झगड़े, मार-काट बंद हो जायेंगे, सब शान्ति से रहेंगे; परन्तु गाँधी जी ने जो सोचा था वही कटु सत्य हुआ-साम्प्रदायिकता की विष-बेल को देश का बटवारा नष्ट नहीं कर पाया, वह फलती, बढती गई। देश के विभाजन के समय जो रक्तपात हुआ था, जो घृणा और बदला लेने की भावना जन्मी थी वह बढती ही गयी। पाकिस्तान छोटा होते हुए भी भारत के बराबर होने की प्रतिस्पर्धा का शिकार बना, कश्मीर को मुसलमान-बहुल राज्य मानकर उसे अपना अंग समझकर उसने उस पर आक्रमण किया और बार-बार भारत को पराजित कर, युद्ध में विजय पाकर कश्मीर को हड़पने और उसे अपना राज्य बनाने की महत्वाकांक्षा पाले रहा और आज भी पाले हुए है। इसी सपने को चरितार्थ करने के लिए, भारत की उन्नति, विकास को रोकने के लिए वह आतंकवाद को शै दे रहा है, अपने प्रशिक्षण -शिविरों, अपने नागरिकों को, विदेशी भाड़े के धर्मान्ध मुसलमानों को भारत की नियंत्रण रेखा को चोरी-चुपके लांघ कर उन्हें कश्मीर में प्रवेश कराकर, निरीह नागरिकों-बच्चों, बूढों, महिलाओं की हत्या कराकर देश को अस्थिर बनाना चाहता है। इतना ही नहीं, वह कश्मीर के मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को भड़काकर निष्कासित करने में सफल भी हुआ है। कश्मीर ही नहीं शेष भारत में भी उसकी नापाक गतिविधियाँ चल रही हैं। भारत के मुसलमानों को धर्म के नाम पर बरगलाकर, उन्हें हिन्दुओं के अत्याचारों, अनीतियों का भय दिखाकर, मुसलमान धर्म और संस्कृति खतरे में है की बात कहकर देश में झगड़ों को बढ़ावा दे रहा है। यदि कुछ समझदार, सहिष्णु, उदार मुसलमान हिन्दुओं के साथ सौहार्द, स्नेह, सहयोग की बात करते हैं तो उनकी आवाज या तो कुचल दी जाती है या नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह जाती है। पाकिस्तान के आई.ई.एस. के अड्डे भारत में ही नहीं, उसके पड़ौसी देशों नेपाल, बांग्लादेश में भी हैं। ये सब कोई-न-कोई कांड खड़ा करते रहते हैं। कुछ दिन पहले गुजरात के अक्षयधाम मन्दिर पर तथा कुछ समय बाद मुम्बई के जावेरी बाजार में विस्फोट इस षड्यंत्र के प्रमाण हैं।

सारांश यह कि पाकिस्तान बनने से साम्प्रदायिक शक्तियाँ बढ़ी हैं। इस साम्प्रदायिक विद्वेष की आग को फैलने से रोकने के दो ही उपाय हैं -सतर्कता-सजगता तथा सद्बुद्धि। जहाँ प्रशासन को सतर्क-सावधान रहकर इन विद्वेषपूर्ण साम्प्रदायिक शक्तियों को कुचलना होगा, वहाँ हिन्दू-मुसलमान दोनों को विद्वेष का मार्ग त्यागकर विवेक का मार्ग अपनाना होगा:

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम
सबको सन्मति दे भगवान।

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