विश्व का राजनितिक इतिहास बताता है कि संसार के विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न कालों में शासन की अनेक प्रणालियाँ प्रचलित रही हैं। सबसे प्राचीन प्रणाली राजतंत्र है जिसके अन्तर्गत राजा प्रजा पर राज्य करता था। वह अपने मंत्रियों की सहायता से राज्य-कार्य करता था तथा सेना और सेनापतियों के बाहुबल, शौर्य, पराक्रम से देश की रक्षा करता था या दूसरे देशों पर आक्रमण कर अपने साम्राज्य का विस्तार करता था। हमारे पुराण-ग्रंथों में ऐसे चक्रवर्ती सम्राटों का उल्लेख है। कुछ राज्यों में राजा क्रूर, महत्त्वाकांक्षी, भोग-विलास करने वाले और मनमानी करनेवाले निरंकुश शासक होते थे जिनकी तुलना आज के डिक्टेटरों से की जा सकती है। इन सभी शासन-प्रणालियों में सर्वोत्कृष्ट शासन-प्रणाली जनतंत्र, लोकतंत्र या जनतंत्र मानी जाती है। अब्राहम लिंकन ने इसकी परिभाषा दी है: जनता की, जनता द्वारा तथा जनता के लिए काम करने वाली शासन-पद्धति। इस प्रणाली में सभी वयस्कों को, स्त्री-पुरुषों दोनों को अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार होता है। प्रत्येक चार-पाँच वर्ष बाद चुनाव होते हैं और जनता को नये सिरे से अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर दिया जाता है। जनता द्वारा चुने गये ये प्रतिनिधि ही सरकार बनाते हैं, शासन करते हैं, देश और देशवासियों की उन्नति तथा हित के कार्य करने के लिए योजनाएँ बनाते हैं और उन्हें पूरा करने का ईमानदारी से प्रयास करते हैं। यदि जनता द्वारा चुने गये ये प्रतिनिधि सच्चे, ईमानदार, जनहित को सर्वोपरि मान कर अपना उत्तरदायित्व निभाते हैं, तो देश बड़ी तीव्र गति से प्रगति करता है, देश में मंगल की वर्षा होती है, देशवासी सुखी, समृद्ध और सम्पन्न होकर शांति से जीवन बिताते हैं। इस चुनी हुई सरकार का दायित्व होता है प्रत्येक नागरिक के साथ न्याय हो, सबकी मूलभूत आवश्यकताएँ: रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा आदि पूरी की जायें। इस दायित्व को निभानेवाली सरकार ही सच्ची जनतांत्रिक सरकार होती है।
जनतांत्रिक शासन-प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसके अतर्गत जनता को चार-पाँच वर्ष बाद अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर मिलता है। यदि पहले चुने गये प्रतिनिधि सन्तोषजनक कार्य नहीं कर पाते, जनता की आशा-आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतरते तो उन्हें हटा दिया जाता है, उनके स्थान पर नये प्रतिनिधि चुने जाते हैं, पुराने राजनितिक दल को अपदस्थ कर नयी राजनितिक पार्टी को शासन करने का अधिकार दिया जाता है। इस प्रकार शासकों पर जन-बहुमत का अंकुश लगा रहता है, वे जनमत का आदर कर, सत्ता की पीठ पर बने रहने के लिए जन-विरोधी कार्य करने तथा केवल अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति में संलग्न रहने से बाज आते हैं, मनमानी नहीं पर पाते।
जनतांत्रिक शासन-प्रणाली का दूसरा गुण है: व्यक्ति की स्वतंत्रता-विचार करने, बोलने, लिखने, अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता। यह शासन-प्रणाली जनता में परस्पर सहयोग और सहकारिता को भी बढ़ावा देती है।
सन् 1950 में भारतीय संविधान लागू होने से लेकर अब तक के अनुभवों के आधार पर यदि जनतांत्रिक शासन प्रणाली के गुण-दोषों का आकलन किया जाये, तो निराशा, क्षोभ और स्वप्न-भंग होने से उत्पन्न कटुता ही हाथ लगेगी। इन पचास वर्षों का इतिहास बताता है कि आरम्भिक कुछ वर्षों के बाद ही सामान्य जनता का स्वप्न-भंग आरम्भ हो गया था। जिन लोगों ने स्वतंत्रता-संग्राम में त्याग, बलिदान किया था, देशप्रेम के लिए अपना सर्वस्व होम दिया था, वे किनारे पर कर दिये गये और धूर्त, चालाक, तिकड़मी, भ्रष्टाचारी लोग अपने धन, अपने बाहुबल, अपनी गुंडागर्दी, धूर्तता के कारण जनता के प्रतिनिधि चुने जाकर शासन की बागडोर संभालने लगे और उनकी सारी प्रतिभा, शक्ति, पद, सत्ता, कुर्सी हथियाने में व्यय होने लगी। तस्करी, कालाबाजारी, गुंडों, की एक नयी दुनिया को गुण्डों, धूर्तों, मक्कारों का अखाड़ा बना दिया। राजनीति बदमाशों के लिए सुख-सुविधाएँ जुटाने का माध्यम बन कर रह गयी।
इस शासन-प्रणाली का एक अन्य दोष है: उत्तरदायित्वहीनता। मंत्री अफसरशाही को तथा अफसर अपने अधीन कर्मचारियों को त्रुटियों के लिए दोषी बताते हैं। नौकरशाही और अफसर शाही के तंत्र में पीस कर कोई कार्य समय पर पूरा नहीं होता। फाइलें एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर में, एक कुर्सी से दूसरे कुर्सी तक जाती हैं। अनावश्यक विलम्ब से बचने के लिए काम करानेवाला रिश्वत का सहारा लेता है। अतः भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, अनैतिकता को बढ़ावा मिलता है। परिणाम होता है कि जनसाधारण की मुसीबतें बढती रहती हैं, देश की प्रगति में रुकावट आती है, देश आगे बढने की बजाय पीछे ढकेला जाता है। इस प्रणाली में जनतंत्र के नाम पर, व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर यूनियनें बनती हैं, आये दिन हड़तालें होती हैं, तरह-तरह के बंद आयोजित किये जाते हैं जिनका देश की उत्पादन-क्षमता पर, अर्थ-व्यस्था पर दुष्प्रभाव पड़ता है। कुछ लोग कहते हैं कि यह जनतंत्र शासन-व्यस्था का दोष नहीं, उसके चलानेवालों की अक्षमता और अनैतिकता का परिणाम है। परन्तु हमें सिद्धान्त नहीं, कार्य-प्रणाली और उसके परिणाम देखने हैं और उन्हें देखकर तो निराशा ही होती है।
Tags Easy Hindi Essays Essays for NCERT Syllabus Essays in Hindi Language Hindi Essays for 10 Class Students Hindi Essays for 11 Class Students Hindi Essays for 12 Class Students Hindi Essays for 5 Class Students Hindi Essays for 6 Class Students Hindi Essays for 7 Class Students Hindi Essays for 8 Class Students Hindi Essays for 9 Class Students Hindi Essays for CBSE Students Hindi Essays for NCERT Students Hindi Essays in Easy Language Popular Hindi Essays for CBSE Students Short Hindi Essays
Check Also
दशहरा पर 10 लाइन: विजयादशमी के त्यौहार पर दस पंक्तियां
दशहरा पर 10 लाइन: दशहरा भगवान राम की रावण पर विजय का उत्सव है, जो …