व्यायाम के अनेक रूप, अनेक ढंग, अनेक प्रकार हैं – दण्ड-बैठक लगाना, कुश्ती लड़ना, अखाड़े में पहलवानी करना, दौड़ लगाना, घुड़सवारी करना, तैरना, तरह-तरह के खेल-कबड्डी, फुटबाल, हॉकी, बैडमिंटन, टेनिस, वालीबाल, पोलो, क्रिकेट आदि व्यायाम के सुन्दर साधन हैं। प्राणायाम और योगासन की महिमा तो पश्चिम के लोग भी मानने लगे हैं।
व्यायाम अवस्था, आयु के अनुरूप होना चाहिए। कुछ व्यायाम पुरुषों के लिए अधिक उपयोगी होते हैं परन्तु स्त्रियों के लिए वर्जित हैं। किशोरों और युवकों के लिए व्यायाम के जो रूप उपयोगी होते हैं वे वृध्दों के लिए हानिकर हो सकते हैं। व्रिधाव्स्था में प्रातः – सांयकाल भ्रमण करना ही अधिक लाभदायक होता है, अन्य श्रमसाध्य व्यायाम उनके रक्तचाप को बढ़ा सकते हैं, हृदय गति को भी प्रभावित कर सकते हैं। व्यायाम का समय भी प्रातःकाल और संध्या समय ही अधिक उपयोगी होता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शारीरिक शक्ति और शारीरिक आवश्यकता के अनुसार व्यायाम करना चाहीए। दिन-भर शारीरिक श्रम करनेवालों के लिए अतिरिक्त व्यायाम आवश्यक नहीं होता। आवश्यकता से अधिक व्यायाम भी शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है, उससे थकावट, क्षीणता आती है, कई बार उनसे कई रोग – जैसे दमा, रक्तचाप, खांसी, ज्वर भी हो जाते हैं। व्यायाम करने के कुछ नियम भी हैं: – पेट भरा होने पर व्यायाम नहीं करना चाहिए, थका हुआ शरीर व्यायाम करने के लिए उपयुक्त नहीं होता; व्यायाम खुली हवा में करना चाहिए न कि बन्द कमरों में जहाँ वायु स्वच्छ नहीं होती।व्यायाम करते समय केवल नाक से सांस लेना चाहिए और सांस लम्बे-लम्बे लेने चाहिएँ। सादा, सात्विक और पौष्टिक भोजन करना भी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
व्यायाम के अनेक लाभ हैं। व्यायाम से शरीर तो स्वस्थ रहता ही है, मन भी प्रसन्न रहता है। शरीर की मांस पेशियाँ पुष्ट रहती हैं, शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है, पाचन शक्ति, रक्तचाप ठीक रहते हैं, काम करने में उत्साह, उमंग, स्फूर्ति अनुभव होती है। शरीर सुडौल रहता है, बीमारी पास नहीं फटकती। व्यायाम हृदय में उत्साह, आत्म-विश्वास और निर्भय भाव पैदा करता है।
व्यायाम शरीर और जीवन रूपी वृक्ष के लिए जड़ का काम करता है। जड़ वृक्ष को हरा-भरा, स्वस्थ, विशाल आकारवाला बनाती है। व्यायाम शरीर को हष्ट-पुष्ट, चित्त को प्रफुल्ल और आयु को दीर्घ बनाता है। स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन का सुख भोग कर सकता है और स्वस्थ रहने का रहस्य है नियमित रूप से व्यायाम करना। व्यायाम करने पर ही हमारी कामना ‘जिवेत् शरदः शतम्‘ पूरी हो सकती है।