गांधी जयंती पर निबंध ~ 830 Words
गांधी जी ईर्ष्या-द्वेष, वैमनस्य, घृणा आदि भावों से ऊपर थे। उनका विरोध किसी जाति, वर्ग, देश से न होकर अन्याय-अत्याचार-अनीति से था। यही कारण है कि उन्होंने बोअर युद्द के समय भारतीय चिकित्सा-यान टुकड़ी का संगठन किया, युद्ध में घायलों की सेवा की जिसके लिए गोरी सरकार ने उन्हें पदक भी दिये।
वस्तुतः गांधी जी के जीवन को चार शब्दों – सेवा, सत्याग्रह, करावास और उपवास में समेटा जा सकता है। 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद उन्होंने अपना सेवा और देश की स्वतंत्रता के के लिए अर्पित कर दिया। 1915 में पहले अहमदाबाद के निकट सत्याग्रह-आश्रम की स्थापना की, 1917 में उसे साबरमती नदी के तट पर लाया गया, सेवाग्राम बसाया गया। कुष्ट-रोग से पीड़ितों की सेवा वह स्वयं अपने हाथों से करते थे। अधिकार-वंचितों के लिए जो सत्याग्रह की नीति और आन्दोलन उनहोंने दक्षिण अफ्रीका में चलाये वे भारत आने पर भारत के स्वतंत्र कराने के लिए चलते रहे। अनशन रखना उनके लिए आत्मशुद्धि का अंग भी था पर उससे बड़ा कारण था किसी वर्ग के प्रति अन्याय के विरुद्ध अपनी असहमति प्रकट करना, अज्ञानी और धार्मिक विद्वेष के नशे में चूर सामान्य जन को प्रबोधन देना, साम्प्रदायिक एकता स्थापित करना। 1918 में पहली बार अहमदाबाद के मिल -मजदूरों में तीन दिन के उपवास से जो उपवास-श्रृंखला आरम्भ हुई वह 1948 में साम्प्रदायिक एकता के लिए दिल्ली में पाँच दिन के उपवास के साथ समाप्त हुई। उनका अधिकांश जीवन विदेशी साम्राज्यवादी निरंकुश शासकों की जेलों में बिता। उनके चरित्र के गुणों-साधु-महात्माओं की तरह लंगोटी पहनना, मिताहार, सरल जीवन, दूसरों की सेवा, परदुःखकातरता आदि देखकर कवि कुलगुरु रवीद्रनाथ ठाकुर ने उन्हें ‘महात्मा’ कह कर सम्बोधित किया। विनम्रता, विनय, सरलता की वह प्रतिमूर्ति थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर को गुरुदेव कहा करते थे, अहंकारी और उद्दंड स्वभाव के मुस्लिम लीगी नेता मुहमद्द अली जिन्ना के घर जाकर उससे मिलने में उन्हें कभी संकोच नहीं हुआ, यद्यपि जिन्ना उनकी तुलना में पासंग बराबर भी नहीं था। रवीद्रनाथ टैगोर के लिए वह महात्मा थे तो पंडित जवाहरलाल नेहरु के लिए ‘बापू’। अन्य अनेक भारतवासी भी उन्हें पिता की तरह अपना संरक्षक मानकर उन्हें बापू तथा उनकी पत्नी कस्तूरबा को ‘बा’कहकर स्नेह और आदर प्रदान करते थे। राष्ट्र ने उन्हें राष्ट्रपिता कहकर स्नेह और आदर प्रदान करते थे। राष्ट्र ने उन्हें राष्ट्रपिता कहकर उनका आदर-सम्मान किया।
इसी महामानव; महापुरुष, महात्मा का जन्मदिन प्रतिवर्ष दो अक्टूबर को सारे भारत में ही नहीं विश्व के अन्य अनेक देशों में भी गांधी जयंती के रूप में एक पर्व या उत्सव के रूप में मनाया जाता है। सुख-समृद्धि-सुविधाओं से भरे जीवन को लात मारकर, हर प्रकार के भौतिक प्रलोभनों से दूर रहकर केवल अपने देशवासियों को ही नहीं सम्पूर्ण पीड़ित, शोषित, परतंत्रता की जंजीरों में जकड़ी मानवजाति को मुक्त करनेवाला, सत्य, अहिंसा, भाईचारे और सत्याग्रह के अमोघ अस्त्र को अपनाकर मानवजाति को संघर्ष का नया रास्ता दिखानेवाला यह युग-पुरुष आज ही नहीं सहस्रों वर्षों तक पूज्य रहेगा।
गांधी जयंती अर्थात् 2 अक्टूबर को प्रातःकाल उनके भक्त, अनुयायी प्रभातफेरी निकालते हैं, उनके प्रिय भजन गाते हैं। दिल्ली में राजघाट पर बनी उनकी समाधि पर प्रातःकाल से ही राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा अन्य राजनेता और प्रतिष्ठित नागरिकों के अतिरिक्त हजारों दिल्लीवासी उनकी समाधि की परिक्रमा कर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। देश के अन्य स्थानों पर कहीं उनकी मूर्ति पर तो कहीं उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की जाती हैं। रजधानी में उनकी समाधि पर सर्वधर्म प्रार्थना सभा आयोजित की जाती है जिसमें देश के प्रमुख गायक, धर्माचार्य एकत्र होते हैं, धर्म-ग्रन्थों से पाठ करते हैं, गायक अनेक गीत और भजन गाते हैं। सारा वातावरण धार्मिक भावों से पावन हो उठता है। इस पावन पर्व पर चर्खा-यज्ञ का भी आयोजन होता है जो हमें उनके स्वदेशी वस्तुओं, हस्त-शिल्प, ग्रामोद्योगों के प्रति प्रेम को प्रकट करता है तथा स्वदेशी की भावना जगाता है। अन्यत्र भी दिन-भर सभाएँ, संगोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं जिनमें गांधीजी के विचारों, नीतियों, आदर्शों, सिद्धांतों की चर्चा होती है, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। यह सारा कार्यक्रम नितान्त सादगी, सात्विकता और पवित्रता से किया जाता है क्योंकि वह स्वयं सरलता, सादगी, उदात्त और पावन विचारों की प्रतिमूर्ति थे।