ऊँट की चार टांगे, दो आखें, एक पूंछ, पीठ पर कूबड़ और दो लटके हुए होठ होते हैं। रेगिस्तान में जब रेतीली हवाएं चलती हैं तब वह अपने नथुनों को बन्द कर लेता है जिससे रेत उसकी नाक में नहीं जा पाती। ऊँट के घुटने और गरदन में कठोरता होती है जो उसे उठते-बैठते समय रगड़ से बचाती है।
ऊँट एक दिन में 36 लिटर पानी पीता है। यदि उसे खाने के लिए ताजे पत्ते मिल जाएं तो पानी की मात्रा 4 लीटर कम हो जाती है। ऊँट के पेट में एक बहुत बड़ी थैली होती है। जिसमें वह काफी पानी और भोजन इकट्ठा कर लेता है।
इसलिए वह बहुत दिनों तक बिना पानी और भोजन के रह लेता है। सर्दियों में यदि यह ताजी पत्तियाँ ही खाएं तो उसे पानी की कम आवश्यकता रहती है। इसलिए यह जहाज रेगिस्तान के लिए सर्वाधिक उपयुक्त वाहन है। यह खाने की किसी भी चीज को कुतर-कुतर कर खाता है। ऊंट के कुल 34 दांत होते हैं।
तुर्की में 1967 में ऊंटों की लड़ाई होती थी। जिसका दर्शक आनन्द उठाते थे। लेकिन वहां की सरकार ने अब इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया। ऊंटनी का दूध बहुत पौष्टिक होता है। खानाबदोश लोग आज भी ऊंटनी का दूध पीते हैं। ऊंटनी का दूध सफेद, स्वादिष्ट मीठा और क्रीम के स्वाद जैसा होता है। इसके दूध की दही नहीं जमती।
ऊँट के शरीर के बालों को भी काटा जाता है। पंजाब में ऊँट के बाल को उतार कर उसके ऊपर सरसों के की मालिश की जाती है और कीचडू लगा दिया जाता है। जब कीचड़ सूख जाता है तब ऊँट को नहलाया जाता है। माना जाता है कि कीचड़ लगाने से ऊँट के बाल कोमल आते हैं। खाल स्वस्थ और नरम हो जाती है। ऊँट के बच्चों के बाल बरसात में काटे जाते हैं।
ऊँट के बालों को वस्त्र उद्योग प्रयोग में लाता है। उसके बालों से ओवर कोट, रस्सी, ऊन, थैली आदि बनाए जाते हैं। ऊँट बोझा ढोने में, सवारी और खेती करने के काम में भी आता है। युद्ध के मैदानों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
दिल्ली की सड़कों पर यह ऊँट सामान से गाड़ियों को खींचते हुए दिखाई दे जाते हैं। 26 जनवरी के दिन ऊँटों पर सैनिक सवार होकर आते हैं। उन्हें लाखो लोग टी.वी. पर और प्रत्यक्ष रूप में देखते हैं। पिकनिक स्थलों पर बच्चे ऊँट की सवारी करते हैं और आनन्दित होते हैं। ऊँट वालों की भी अच्छी खासी कमाई हो जाती है।