जंगल में हाथी प्राय: झुण्ड में ही पाए जाते हैं। यदि वह अपने झुण्ड से बिछुड़ जाए तो वह घबरा जाता है। हाथी के झुण्ड का नेतृत्व एक हथिनी करती रहती है। यदि कोई दूसरा हाथी नेता बनना चाहता है तो उसे पहले नेता से लड़ना पड़ता है यदि वह जीत जाता है तो हाथियों का नेता बन जाता है और बाकी हाथी उसके पीछे-पीछे चलते हैं।
हाथी के पैर के तलवे को ‘तबक’ कहते हैं। यह नीचे से बहुत मुलायम होते हैं कठोर जगह चलने से वह छिल जाते हैं। इसलिए यह मिट्टी या रेतीली भूमि पर चलते हैं।
हाथी की चाल आदमी से तेज होती है। यदि हाथी पीछे पड़ जाए तो उससे पीछा छुड़ाना कठिन हो जाता है। यदि हाथी पीछे हो तो व्यक्ति को सीधा नहीं भागना चाहिए बल्कि टेढ़ा-मेढ़ा भागना चाहिए क्योंकि हाथी को टेढ़ा-मेढ़ा भागने में कठिनाई होती है। यदि ढलानदार रास्ता हो तो नीचे की ओर भागना चाहिए क्योंकि नीचे की ओर दौड़ने में आदमी की गति बढ़ जाती है और हाथी में कोई विशेष अन्तर नहीं आता।
हाथियों का शिकार करने के लिए एक गड्ढा हाथी की ऊँचाई जितना खोद लिया जाता है। उसे पतले-पतले बाँसों और घास-फूस से ढक दिया जाता है। हाथियों का झुण्ड जब वहाँ से गुजरता है, तो कोई न कोई हाथी उनमें से नीचे गिर जाता है। फिर डंडे की सहायता से हाथी को बाहर निकाला जाता है। कहा जाता है कि हाथी के मस्तक पर मणि होती है, लेकिन यह मणि नहीं होती अपितु हाथी के मस्तक से जब मद चूता है तो वह उसके कपोलों की झुर्रियों में इकट्ठा हो जाता है। जब वह सख्त हो जाता है तो गाँव वाले उसे निकाल लेते हैं और घिस कर उसे आकार देते हैं और गले में पहनते हैं। वे लोग उसे ‘गजमुक्ता’ कहते हैं।
प्राचीन काल में राजा हाथी पर सवार हौकर युद्ध और शिकार के लिए जाते थे। दक्षिण भारत में आज भी उत्सवों में हाथी को शामिल किया जाता है। उसके बिना कोई भी उत्सव अधूरा माना जाता है। सर्कस में भी हाथी तरह-तरह के करतब दिखाता है। बोझा ढोने का काम भी हाथी से लिया जाता है। माना जाता है कि जिस हाथी के आगे वाले पैर में पाँच-पाँच अंगुलियाँ और पिछले पैर में चार-चार अंगुलियाँ हों वह हाथी शुभ माना जाता है।
हाथी का दाँत भी बहुत काम आता है, उससे नाना प्रकार के आभूषण और गृह सज्जा का सामाना बनाया जाता है। लड़की की शादी में उसे चूड़ा भी हाथी दाँत का पहनाया जाता है। प्राचीन काल के राज सिंहासनों पर हाथी दाँत की पच्चीकारी की जाती थी।
जब हाथी के गण्ड स्थलों से मद निकलता है तब बहुत मद मस्त हो जाता है और कई बार बेकाबू भी हो जाता है और अपने महावत तक का कहना भी नही मानता।
भोजन न करने वाले हाथी के बच्चे का मल-मूत्र औषधि के काम आता है। हाथी-पालना राजा महाराजाओं के वश की बात है। सामान्य व्यक्ति तो उसे भरपेट खुराक भी नहीं दे सकता।