व्यक्ति को सदैव फलों का सेवन करना चाहिए। फल ताजे तथा ऋतु अनुसार खाने चाहिए। मौसम के फल ताजे और पौष्टिक होते हैं। फल के सूख जाने पर उनके विटामिन नष्ट हो जाते हैं। फलों को देख-परख कर लेना चाहिए। कटे हुए, सड़े और पेड़ से गिरकर फटे हुए फल नहीं खाने चाहिए, उनमें कीटाणु होने की सम्भावना रहती है। बाजारों में कटे हुए या छीले हुए फल हो, उन्हें भी नहीं खरीदना चाहिए, क्योंकि उन पर तरह-तरह के कीटाणु बैठते हैं। खाने के साथ वह कीटाणु हमारे शरीर में पहुँच कर तरह-तरह के रोग उत्पन्न करते हैं। हैजा जैसी बीमारियाँ भी ऐसे ही होती हैं।
फल की उत्पादन शक्ति को बढ़ाने के लिए हमारे देश के वैज्ञानिक तरह-तरह की खोज करते हैं। नए-नए बीजों का निर्माण किया जाता है। कुछ बीज विदेशों से भी खरीदे जाते हैं और अपने यहाँ के बीज विदेशों में भी जाते हैं। इसी तरह के आदान-प्रदान से लोगों को नई-नई किस्म के फल उपलब्ध होते हैं। फलों को कीटाणुओं से बचाने के लिए उनके ऊपर तरह-तरह की कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। फलों को सुन्दर बनाने के लिए उनको बेचने से पहले तरह-तरह के रंग लगा दिये जाते हैं, जिससे ग्राहक उसे देखकर आकर्षित हो और खरीद ले। ये कीटनाशक दवाइयां और रंग किसी तरह फलों के अन्दर भी पहुँच जाते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। सरकार को चाहिए कि फलों के ऊपर होने वाले हानिकारक कीटनाशकों का प्रयोग कम करवाए और फलों को प्राकृतिक रूप में ही जनता तक पहुँचने दे।
वर्तमान समय में हर मौसम के फल साल भर तक प्राप्त किए जा सकते हैं। फलों के जैम, जैली, स्केवश बनाकर उन्हें साल भर प्राप्त किया जा सकता है। टमाटर के रस को निकालकर उसे पैक कर लिया जाता है, जो काफी दिनों तक तरो-ताजा रहता है और सब्जी बनाते समय इसका प्रयोग किया जाता है। हमें फिर भी मौसम में मिलने वाले रसीले और स्वादिष्ट फल खाने चाहिए। उनकी गुणवत्ता अधिक होती है अपेक्षाकृत उनके जो शीत गृहों में स्टोर करके रखे जाते हैं।