स्वतंत्रता दिवस / 15 अगस्त पर निबंध [1]
15 अगस्त 1947 को भारत परतंत्रता के अन्धेरे से निकलकर स्वतंत्रता के प्रकाश में आया था। देश को स्वतंत्र कराना जितना कठिन कार्य है, उतना ही कविन कार्य उस स्वतंत्रता की रक्षा करना है। देश की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति और पं. जवाहरलाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बनाए गए।
सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश को जयचन्द और मीर जाफर जैसे लोगों ने अपनी आपसी फूट के कारण गुलाम बनवा दिया। इस देश का वैभव, संस्कृति, ज्ञान, धर्म, दर्शन पहले मुसलमानों की और बाद में अंग्रेजों की भेंट चढ़ गए।
स्वतंत्रता प्राप्ति की पहली चिंगारी 1857 में लगी थी। खुदीराम बोस, सुभाषचन्द्र बोस, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू ने इस चिंगारी को अपने प्रभावशाली भाषणों से इतनी हवा दी कि यह चिंगारी प्रत्येक भारतीय के हृदय में जल उठी और शोला बनकर अंग्रेंजों पर गिरी। 15 अगस्त 1945 को देश दो भागों में बंटकर स्वतंत्र हो गया।
इस स्वतंत्रता आन्दोलन में महारानी लक्ष्मीबाई और सरोजिनी नायडू जैसी नारियाँ भी अपना सहयोग देने में पीछे नहीं रहीं।
हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। मुख्य समारोह लाल किले पर होता है। प्रधानमंत्री के वहाँ पहुँचने पर तीनों सेना के मुख्याध्यक्ष उन्हें सलामी देते हैं।
प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से तिरंगे को फहराते हैं। ध्वज के सम्मान में 21 तोपों की सलामी दी जाती है। प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संदेश में देश की उन्नति और भविष्य की योजनाओं के बारे में राष्ट्र को बताते हैं। इस अवसर पर देश के गणमान्य व्यक्तियों के अतिरिक्त विदेशी अतिथि भी होते हैं। भाषण की समाप्ति पर तीन बार ‘जय हिन्द’ के उद्घोष के साथ राष्ट्रीय गान गाया जाता है और कार्यक्रम समाप्त हो जाता है।
स्वतंत्रता दिवस को राष्ट्रीय अवकाश रहता है। इस दिन सरकारी और गैर-सरकारी संस्थान बंद रहते हैं। इसलिए स्कूलों और महाविद्यालयों में एक दिन पहले ध्वजारोहण होता है और प्राचार्य भाषण देते हैं।
राज्यों के मुख्य मंत्री ध्वजारोहण करते हैं और भाषण देते हैं। प्रधानमंत्री देश के गणमान्य व्यक्तियों, सेना के मुख्य अधिकारियों को और विदेशी अतिथितियों को रात्रि भोजन पर आमन्त्रित करते हैं। रात को सरकारी इमारतों पर रोशनी की जाती है। जिसकी शोभा देखते ही बनती है।
15 अगस्त का कार्यक्रम सीधा रेडियो और दूरदर्शन पर प्रसारित किया जाता है। इसके पश्चात् राष्ट-भक्ति गीत, कविताएं और नाटक प्रसारित किए जाते हैं। भारतीयों और विदेशियों में अध्यात्म ज्ञान की ज्योति जलाने वाले ‘अरविन्द घोष’ का जन्म दिन भी 15 अगस्त है।
भारतीयों के लिए यह दिन असाधारण है, जो हमें यह सोचने पर बाध्य करता है कि अपने भविष्य को बनाने के लिए हम अपनी पुरानी गलतियों को न दुहराएं और देश की एकता और अखण्डता की हर कीमत पर रक्षा करें। तभी हम गर्व के साथ इकबाल के शब्दों में कह सकेंगे।