शास्त्री जी का जन्म 2 अक्यूबर 1904 ई॰ को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय नामक शहर में हुआ था। उनके पिता स्कूल में अध्यापक थे। दुर्भाग्यवश बाल्यावस्था में ही उनके पिता का साया उनके सिर से उठ गया। उनकी शिक्षा-दीक्षा उनके दादा की देखरेख में हुई। परंतु वे अपनी शिक्षा भी अधिक समय तक जारी न रख सके।
उस समय में गाँधी जी के नेतृत्व में आंदोलन चल रहे थे। चारों ओर भारत माता को आजाद कराने के प्रयास जारी थे। शास्त्री जी स्वयं को रोक न सके और आंदोलन में कूद पड़े। इसके पश्चात् उन्होंने गाँधीजी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। मात्र सोलह वर्ष की अवस्था में सन् 1920 ई॰ को उन्हें जेल भेज दिया गया।
प्रदेश कांग्रेस के लिए भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। 1935 ई॰ को राजनीति में उनके सक्रिय योगदान को देखते हुए उन्हें ‘उत्तर प्रदेश प्रोविंशियल कमेटी’ का प्रमुख सचिव चुना गया। इसके दो वर्ष पश्चात् अर्थात् 1937 ई॰ में प्रथम बार उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् 1950 ई॰ तक वे उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री के रूप में कार्य करते रहे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् वे अनेक पदों पर रहते हुए सरकार के लिए कार्य करते रहे। 1952 ई॰ को वे राज्यसभा के लिए मनोनीत किए गए। इसके पश्चात् 1961 ई॰ में उन्होंने देश के गृहमंत्री का पद सँभाला। राजनीति में रहते हुए भी उन्होंने कभी अपने स्वयं या अपने परिवार के स्वार्थों के लिए पद का दुरुपयोग नहीं किया।
निष्ठापूर्वक ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों के निर्वाह को उन्होंने सदैव प्राथमिकता दी। लाल बहादुर शास्त्री सचमुच एक राजनेता न होकर एक जनसेवक थे जिन्होंने सादगीपूर्ण तरीके से और सच्चे मन से जनता के हित को सर्वोपरि समझते हुए निर्भीकतापूर्वक कार्य किया। वे जनता के लिए ही नहीं वरन् आज के राजनीतिज्ञों के लिए भी एक आदर्श हैं। यदि हम आज उनके आदर्शों पर चलने का प्रयास करें तो एक समृद्ध भारत का निर्माण संभव है।
नेहरू जी के निधन के उपरांत उन्होंने देश के द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र की बागडोर सँभाली। प्रधानमंत्री के रूप में अपने 18 महीने के कार्यकाल में उन्होंने देश को एक कुशल व स्वच्छ नेतृत्व प्रदान किया। सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार आदि को समाप्त करने के लिए उन्होंने कठोर कदम उठाए।
उनके कार्यकाल के दौरान 1965 ई॰ को पाकिस्तान ने भारत पर अघोषित युद्ध थोप दिया। शास्त्री जी ने बड़ी ही दृढ़ इच्छाशक्ति से देश के युद्ध के लिए तैयार किया। उन्होंने सेना को दुश्मन से निपटने के लिए कोई भी उचित निर्णय लेने हेतु पूर्ण स्वतंत्रता दे दी थी। अपने नेता का पूर्ण समर्थन पाकर सैनिकों ने दुश्मन को करारी मात दी।
ऐतिहासिक ताशकंद समझौता शास्त्री जी द्वारा ही किया गया परंतु दुर्भाग्यवश इस समझौते के पश्चात् ही उनका देहांत हो गया। देश उनकी राष्ट्र भावना तथा उनके राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव के लिए सदैव उनका ऋणी रहेगा।
उनके बताए हुए आदर्शों पर चलकर ही भ्रष्टाचार रहित देश की हमारी कल्पना को साकार रूप दिया जा सकता है। ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ की धारणा से परिपूरित उनका जीवन-चरित्र सभी के लिए अनुकरणीय है।