मनुष्य ने काल पर अपनी अमिट छाप छोड़ने के उद्देश्य से कालचक्र को नियंत्रित करने का भी प्रयास किया। उसने विक्रम संवत, शक-संवत, हिजरी सन, ईसवी सन आदि की परिकल्पना की। जैन और बोद्ध मतावलम्बियों ने अपने-अपने ढंग से काल गणना के सिद्धान्त बनाये।
हमारे देश में नव संवत्सर का प्रारम्भ विक्रम संवत के आधार पर चैत्र शुक्ल प्रतिपाद से स्वीकार किया जाता है और पाश्चात्य दृस्टि से पहली जनवरी को नव वर्ष का सुभारम्भ होता है। अतः हमें दोनों ही दृस्टि से इस विषय पर विचार करना होगा।
भारतीय मतानुसार महाराज विक्रमादित्य ने विक्रम संवत का प्रारम्भ किया था। इसकी गणना चन्द्रमा के आधार पर की जाती है। इसी दिन से नवरात्र का प्रारम्भ होता है। इस दिन मंदिरो और घरों में घट स्थापित किये जाते है। जौ बोए जाते है और नो दिन पश्चात पवित्र नदियों में प्रवाहित कर दिए जाते है। गृहस्थ लोग इन दिनो मांगलिक कार्यो का आयोजन करते है। गृह प्रवेश, लगन-सगाई और विवाह आदि के लिए यह समय सर्वोत्तम समझा जाता है। अनेक आस्तिक लोग रामायण-पाठ का आयोजन करते है। व्यापारी लोग नए बही खाते प्रारम्भ करते है। नयी दुकानों और व्यापारी संस्थानों की स्थापना-उद्घाटन करते है। कृषको के लिए रबी की फसल की कटाई का काल प्रारम्भ होता है। नव संवत्सर से ग्रीष्म ऋतू का प्रराम्भ माना जाता है।
पश्चात्य मतानुसार 31 दिसंबर को वर्षात की घोषणा के साथ एक जनवरी से नव वर्ष मनाया जाता है। आज कल विश्व के अधिकांस देश में एक जनवरी को ही नव वर्ष मनाया जाता है। एक सप्ताह पूर्व क्रिसमस के दिन से ही नव वर्ष के बधाई पत्र भेजे जाते है। दीपावली की भांति ही नव वर्ष पर ही अब मिठाई देने का प्रचलन बढ़ रहा है। व्यापारी कंपनिया नए-नए कैलेंडर छपवाती है और प्रचारार्थ बांटती है। दूरदर्शन से 31 दिसंबर की रात को अनेक प्रकार के रंगारंग कार्यक्रम का प्रसारण होता है। सप्ताह भर पहले ही होटलो और रेस्तराओं में अग्रिम बुकिंग हो जाती है। बड़े बड़े नगरो में पुलिस को इस दिन व्यापक बंदोबस्त करना पड़ता है। जैसे ही रात्रि के बारह बजते है, नववर्ष की उल्लासमयी घोषणा प्रारम्भ हो जाती है। युवक युवतियो के समूह नाचते-गाते, मौज मस्ती मनाते देखे जाते है।
कुछ लोग मदिरा पान करके अभद्र प्रदर्शन करते हुए भी पाए जाते है। पुलिस ऐसे लोगो को चेतावनी देकर छोड़ देती है। अश्लील हरकते करने वालो के चालान भी कर देती है। हमें नव वर्ष का स्वागत भारतीय अथवा अभारतीय किसी भी दृस्टि से करे, हमारे कार्यक्रम शालीन एव संगत तथा राष्ट्र को जोड़ने वाले होने चाहिए।