रक्षाबंधन पर हिंदी निबंध [1]
रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण मास में ऋषिगण आश्रम में रहकर अध्ययन और यज्ञ करते थे। श्रावण-पूर्णिमा को मासिक यज्ञ की पूर्णाहुति होती थी। यज्ञ की समाप्ति पर यजमानों और शिष्यों को रक्षा-सूत्र बाँधने की प्रथा थी। इसलिए इसका नाम रक्षा-बंधन प्रचलित हुआ। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए ब्राह्मण आज भी अपने यजमानों को रक्षा-सूत्र बाँधते हैं। बाद में इसी रक्षा-सूत्र को राखी कहा जाने लगा। कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधते हुए ब्राह्मण निम्न मंत्र का उच्चारण करते हैं:
येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां प्रति बच्चामि, रक्षे! मा चल, मा चल।।
अर्थात् रक्षा के जिस साधन (राखी) से अतिबली राक्षसराज बली को बाँधा गया था, उसी से मैं तुम्हें बाँधता हूँ। हे रक्षासूत्र! तू भी अपने कर्त्तव्यपथ से न डिगना अर्थात् इसकी सब प्रकार से रक्षा करना।
आजकल राखी प्रमुख रूप से भाई-बहन का पर्व माना जाता है। बहिनों को महीने पूर्व से ही इस पर्व की प्रतीक्षा रहती है। इस अवसर पर विवाहित बहिनें ससुराल से मायके जाती हैं और भाइयों की कलाई पर राखी बाँधने का आयोजन करती हैं। वे भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं तथा राखी बाँधकर उनका मुँह मीठा कराती हैं। भाई प्रसन्न होकर बहन को कुछ उपहार देता है। प्रेमवश नया वस्त्र और धन देता है। परिवार में खुशी का दृश्य होता है। बड़े बच्चों के हाथों में रक्षा-सूत्र बाँधते हैं। घर में विशेष पकवान बनाए जाते हैं।
रक्षाबंधन के अवसर पर बाजार में विशेष चहल-पहल होती है। रंग-बिरंगी राखियों से दुकानों की रौनक बढ़ जाती है। लोग तरह-तरह की राखी खरीदते हैं। हलवाई की दुकान पर बहुत भीड़ होती है। लोग उपहार देने तथा घर में प्रयोग के लिए मिठाइयों के पैकेट खरीदकर ले जाते हैं।
श्रावण पूर्णिमा के दिन मंदिरों में विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। लोग गंगाजल लेकर मीलों चलते हुए शिवजी को जल चढ़ाने आते हैं। काँधे पर काँवर लेकर चलने का दृश्य बड़ा ही अनुपम होता है। इस यात्रा में बहुत आनंद आता है। कई तीर्थस्थलों पर श्रावणी मेला लगता है। घर में पूजा-पाठ और हवन के कार्यक्रम होते हैं। रक्षाबंधन के दिन दान का विशेष महत्त्व माना गया है। इससे प्रभूत पुण्य की प्राप्ति होती है, ऐसा कहा जाता है। लोग कंगलों को खाना खिलाते हैं तथा उन्हें नए वस्त्र देते हैं। पंडित पुराहितों को भोजन कराया जाता है तथा दान-दक्षिणा दी जाती है।
रक्षाबंधन पारिवारिक समागम और मेल-मिलाप बढ़ाने वाला त्योहार है। इस अवसर पर परिवार के सभी सदस्य इकट्ठे होते हैं। विवाहित बहनें मायके वालों से मिल-जुल आती हैं। उनके मन में बचपन की यादें सजीव हो जाती हैं। बालक-बालिकाएँ नए वस्त्र पहने घर-आँगन में खेल-कूद करते हैं। बहन भाई की कलाई में राखी बाँधकर उससे अपनी रक्षा का वचन लेती है। भाई इस वचन का पालन करता है। इस तरह पारिवारिक संबंधों में प्रगाढ़ता आती है। लोग पिछली कडुवाहटों को भूलकर आपसी प्रेम को महत्त्व देने लगते हैं।
इस तरह रक्षाबंधन का त्योहार समाज में प्रेम और भाईचारा बढ़ाने का कार्य करता है। संसार भर में यह अनूठा पर्व है। इसमें हमें देश की प्राचीन संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।