दुष्ट व्यक्ति भी अपनी व्यवहार कुशलता से शिष्ट प्रतीत हो सकता है। लेकिन कभी-कभी ऋषि भी अपने क्रोध के कारण अपनी शिष्ट मर्यादा का उल्लंघन कर जाते हैं जैसे दुर्वासा ऋषि ने सोच में डूबी हुई शकुन्तला को शाप दे डाला, परशुराम ने क्रोध में आकर इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय से रहित कर दिया। अपने दुराचार के कारण इन्द्र महर्षि गौतम के कोप भाजन बने और उनकी पत्नी अहिल्या पाषाण प्रतिमा बनी, जिसका बाद में भगवान राम ने उद्धार किया। सदाचार की रक्षा करने के कारण युधिष्ठिर धर्मराज कहलाए। सत्य का निर्वाह करने के कारण हरिश्चन्द्र ‘सत्यवादी हरिश्चन्द्र’ कहलाए।
सदाचार के द्वारा ही व्यक्ति महान् बनता है। विश्व में प्रसिद्धि पाने वाले जितने भी महापुरुष हुए उन्होंने सदाचार का ही पालन किया था। जैसे – गुरू नानक, संत कबीर, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामदास, संत तुकाराम आदि।आधुनिक काल में मोरारजी देसाई, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण, जवाहर लाल नेहरू आदि नेताओं ने अपने सदाचार के कारण ही बड़े-बड़े आन्दोलनों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। विशाल जन समूह उनके पीछे ऐसे चलता था जैस बांध को तोड़कर जल बहा चला जाता है और किसी के रोके नहीं रुकता। आज भी टी.एन. शेषन और किरण बेदी ने अपनी सच्चरित्रता के कारण अपनी एक अलग छवि का निर्माण किया है। उनके समक्ष यह शासन वर्ग पंगु जान पड़ता है।
सदाचारी का प्रभाव इतना व्यापक और असरदार होता है कि उस के सम्पर्क में आने पर ही दुष्ट व्यक्ति भी सच्चरित्र बन जाता है। जैसे डाकू अंगुलीमाल महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने पर उनका अनुयायी हो गया।
स्वावलंबन सदाचार का गुण है। स्वावलम्बी व्यक्ति में एक विशेष प्रकार का तेज होता है। उस के चेहरे पर चमक, मन में आत्म विश्वास और कुछ बनने की ललक होती है। यही सब चीजें उसे उसके लक्ष्य तक पहुँचाती हैं। आत्म विश्वासी एक अकेला व्यक्ति सुभाष चन्द्र बोस ‘आजाद हिन्द फौज’ लेकर भारत आया था। जिसने आजादी की लड़ाई लड़ी। अपना नाम भारत की आजादी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित करा अमर हो गया।
सदाचार ही एक ऐसा गुण है जो मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाता है। कहा भी गया है – “if character is lost everything is lost” इसका अर्थ है कि “धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चरित्र गया तो सर्वस्व चला गया।” सदाचारी व्यक्ति की समाज में इज्जत होती है।
हमारी संस्कृति ज्ञान को विशेष महत्व देती है। ज्ञानहीन पुरुष को भर्तृहरि ने पूँछ विहीन पशु की संज्ञा दी है। लेकिन ज्ञान से भी बढ्कर है चरित्र, शास्त्र कहता है कि दूसरों की स्त्री को माता और दूसरे के धन को मिट्टी का ढेला समझना चाहिए। लेकिन लंकापति रावण वेदों का ज्ञाता, शिव भक्त, यज्ञ करने वाला था फिर भी दूसरे की स्त्री को छल से हरण करके ले आया। उसकी इस गलती को भारतीय समाज ने आज तक क्षमा नहीं किया। उसका और उसके भाई कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाद का पुतला दशहरे वाले दिन जलाया जाता है। जिससे लोगों को शिक्षा मिले और वह ऐसी गलती को न दोहराएं।
सत्य बोलना भी सदाचार है। लेकिन ऐसा सत्य जिससे दूसरों को नुकसान न हो। उसके सत्य से किसी की जान चली जाए, ऐसा सत्य नहीं बोलना चाहिए। यदि डॉक्टर रोगी को पहले ही बता दे कि वह कुछ ही दिनों में मरने वाला है, तो यह सत्य सदाचार नहीं हैं। सत्य बोलो लेकिन अप्रिय सत्य मत करो। सत्य की परिभाषा समाज और परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है।
सदाचार सद्गुणों की खान है। सदाचारी व्यक्ति ही अपना और राष्ट्र का उत्थान कर सकता है। किसी भी राष्ट्र का इतिहास सदैव चरित्रवान् लोगों से प्रकाशित रहता है।