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यदि मैं प्रधानमंत्री बनूँ: छात्रों और बच्चों के लिए हिंदी निबंध

यदि मैं प्रधानमंत्री बनूँ: छात्रों और बच्चों के लिए हिंदी निबंध

देश को स्वतंत्र हुए आज पचपन वर्ष ही गये। इन पचपन वर्षों में पंडित नेहरु से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक अनेक प्रधानमंत्री बने। प्रजातंत्र या लोकतंत्र होने के कारण देशवासियों ने देश के लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को देश का शासन करने का अवसर दिया। पूर्ण बहुमत पाने पर किसी एक दल ने शासन की बागडोर संभाली और ऐसा न होने पर गठबंधन सरकार बनी जैसे आजकल अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एन.डी.ए. सरकार। इन प्रधानमंत्रियों में गुण भी थे तथा दोष भी। पंडित नेहरु का दृष्टिकोण व्यापक था, वह शान्ति के देवदूत थे, राष्ट्र को हर क्षेत्र में, हर दृष्टि से सुदृढ़ और स्वावलंबी बनाना उनका लक्ष्य था और इसके लिए उन्होंने जी जान से, पूर्ण समर्पण-भावना से कार्य किया। इन्दिरा गांधी की कूटनीति ने सदा शत्रुतापूर्ण व्यवहार करनेवाले ईर्ष्या-द्वेष-वैमनस्य के पुतले पाकिस्तान को खंडित कर उसकी कमर तोड़ दी। कुछ प्रधानमंत्री अनिर्णय के शिकार रहे, पदलोलुप रहे और गद्दी को सुरक्षित बनाये रखने, कुर्सी पर बैठे रहने के लिए कुछ गलत कार्य भी किये – आपातकाल की घोषणा, लोकसभा में बहुमत बनाये रखने के लिए सांसदों को रिश्वत, मंत्रिमंडल का अत्यधिक विस्तार ऐसे ही कार्य थे।

अत: मैं इन पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री के गुण-दोषों से भली-भांति परिचित हूँ। अत: उन्हें दृष्टि में रखकर ही शासन की बागडोर सम्भाल कर देश की विकास-यात्रा के रथ पर सारथी बनकर देश को समृद्धि, सम्पन्नता, आत्मनिर्भरता और प्रतिष्ठा के लक्ष्य तक ले जाने का प्रयास करूंगा।

विश्व के देशों में किसी राष्ट्र को तभी सम्मान मिलता है जब वह आर्थिक, औधोगिक दृष्टि से और आत्मरक्षा के मामले में सुदृढ़ हो। अत: मेरी पहली प्राथमिकता होगी देश में उद्दोगों का जाल बिछाने और कृषि-उत्पादों की दृष्टि से देश को आत्म-निर्भर बनाना। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए विज्ञान और प्रौद्दोगिकी का विकास आवश्यक है, उदार आर्थिक निति अपनानी जरूरी है, अन्य देशों से उनकी ओद्दोगिक कुशलता, नई-नई प्रौद्दोगिकी से परिचित होना जरूरी है। मैं उनका सहयोग-सहायता, ऋण प्राप्त करने का प्रयास करूँगा। ऋण कम से कम लेना पड़े इसके लिए आयात कम करना होगा और निर्यात बढ़ाने के लिए निर्यातकों को भरपूर सहायता और प्रोत्साहन देने की नीति बनाऊँगा।

देश के आन्तरिक विकास के लिए आवश्यक है कि देश की सीमा भयमुक्त हों। पाकिस्तान और चीन दोनों की गिद्ध दृष्टि हमारी सीमाओं पर लगी रहती है, दोनों ने हमारे देश की भूमि पर अनधिकृत कब्जा कर रखा है। हमें इन दोनों से सावधान रहते हुए अपनी सेना के तीनों अंगों-थल सेना, जल सेना, वायु सेना को आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों, युद्ध सामग्री से सुसज्जित कर हर खतरे के लिए तैयार करना होगा। इस कार्य के लिए मैं धन की कमी नहीं होने दूँगा और मित्र देशों से भरपूर सहायता पाने का प्रबन्ध करूँगा।

देश को बाह्य शत्रुओं के आक्रमण से तो भय है ही उनकी गुप्तचर एजेंसियाँ प्रलोभन, धर्मिक उन्माद, साम्प्रदायिक वैमनस्य द्वारा देश में फुट डालकर, परस्पर लड़वाकर, शान्तिभंग क्र देश को दुर्बल बनाने के कार्य में जुटी हैं। यदि आतंकवाद काश्मीर के नागरिकों और उनकी सुरक्षा के लिए तैनात भारतीय सेना की नींद हराम किये हैं तो पूर्वोत्तर प्रदेशों – नागालैण्ड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश में उग्रवादी संगठन आये दिन हत्या, लूट-पाट, आगजनी के काम करते हैं। इन्हें समाप्त करने के लिए मैं एक ओर इन उग्रवादियों को राष्ट्र की मुख्य धारा में सम्मिलित करने के लिए मैत्री और शान्ति का हाथ बढ़ाऊँगा, उनको आत्मसमर्पण के बाद उनकी सुरक्षा तथा पुनर्स्थापना का वचन देकर उसको तत्काल पूरा करूँगा, वहाँ दुराग्रही देशद्रोहियों के साथ सख्ती बरतकर उनके विषैले फन को कुचल देने का सेना, अर्धसैनिक दलों और पुलिस को दृढ़ता से, मुस्तैदी से कुशल रणनीति से कम करने का आदेश दूंगा और देखूंगा कि आदेश का पालन किस तरह हो रहा है।

हमारी अंतराष्ट्रीय नीति समय की कसौटी पर खरी उतरी है। हम शान्ति के पक्षधर हैं, रूस हमारा पुराना दोस्त है और अमेरिका की दादागिरी के बावजूद भी हम उसके साथ मैत्री सम्बन्ध बनाने में सफल रहे हैं। अत: मेरी विदेश नीति में कोई परिवर्तन नहीं होगा। जहाँ देश की आन्तरिक व्यवस्था का प्रश्न है, हमारे लिए सबसे बड़ी समस्याएं दो हैं – पहली है जनसंख्या वृद्धि जो अन्य समस्याओं – गरीबी, बेरोजगारी, निरक्षरता, प्रदूषण, बिजली पानी का अभाव और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी आदि को जन्म देती है तथा दूसरी है भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचार के दो क्षेत्र हैं – आर्थिक क्षेत्र में रिश्वत तथा राजनीतिक क्षेत्र में दलबदल की समस्या। वोटों के प्रलोभन में, अल्पसंख्यकों के रुष्ट होने के भय से जनसंख्या विरोधी अभियान असफल रहा है। अत: सबसे पूर्व सबके लिए एक समान कानून बनाया जायेगा, दो से अधिक संतानवाली  माँ-बाप को प्रत्येक सरकारी सुविधाओं से वंचित किया जायेगा। राजनीतिक क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार के लिए कानून बनाया जायेगा कि दल बदलने वाले विधायक या सांसद को तु्रन्त अपना पद त्यागना होगा और मंत्रियों की संख्या कुल सदस्य-संख्या के पन्द्रह प्रतिशत से अधिक न होगी।

न्यायलयों की स्थिति और न्याय-पद्धति के कारण भी देशवाशियों की दशा शोचनीय है। मुकदमा वर्षों चलता है, न्याय की प्रार्थना करने वाला भगवान को प्यारा हो जाता है और निर्णय नहीं हो पाता। गवाह अपने बयान बदलते रहते हैं, पेशकार रिश्वत ले लेकर मुकदमें की तारीखी डालते रहते हैं। यह विसंगति दूर करना भी मेरी प्राथमिकता होगी। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की समस्या कुछ तो जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपायों से स्वत: हल हो जाएगी और कुछ नये-नये विद्यालय विशेषत: रोजगार से सम्बद्ध शिक्षा देनेवाली संस्थाओं की स्थापना, अस्पतालों के खोलने से हल हो जायेगी। मेरा संकल्प है कि मैं जनहित, देशहित के ये सब कार्य करूंगा और यदि इन कठोर उपायों को करने के फलस्वरूप मुझे गद्दी भी छोडनी पड़े तो राम की तरह उस गद्दी को भी बटाऊ की तरह त्याग दूंगा। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह मुझे शक्ति प्रदान करे।

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