जापान में हुए इस महाविनाश को देखकर केवल दुर्बल राज्य ही भयभीत, भविष्य के प्रति चिन्तित और आशंकित नहीं हुए, अणु बम बनाने वाले और बम बनाने की क्षमता रखनेवाले पश्चिम के देश फ्रांस और चीन जैसे देश भी मन ही मन भयाक्रान्त हो गये और विश्व-मंच पर आणविक अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण पर, परमाणु-परिक्षण के कर्योंक्रमों पर प्रतिबन्ध की बातें होने लगीं; अणु-अस्त्रों का विरोध करनेवाली शक्तियों का उदय हुआ और परमाणु-प्रसार प्रतिबन्ध सन्धि की चर्चा होने लगी, सन्धि का प्रारूप तैयार किया गया, बहुत-से देशों ने उस पर हस्ताक्षर कर दिये, अन्य देशों जैसे भारत, पाकिस्तान आदि पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाला गया। भारत उस सन्धि पर हस्ताक्षर करने को तैयार भी है, परन्तु कुछ शर्तों के साथ। उसकी मान्यता है कि यह सन्धि भेद-भाव से ऊपर हो, सबके लिए हो, परमाणु अस्त्र-शस्त्र सम्पन्न देश अपने इन शस्त्रों के भण्डारों को नष्ट कर दें या उनकी संख्य सीमित कर दें, भविष्य में परमाणु परिक्षण न हों, और न इन घातक, संहारक अस्त्रों का निर्माण हो। पर इन अस्त्रों के विशाल भण्डारों के स्वामी राज्यों, विशेषतः अमेरिका ने भारत के इस प्रस्ताव का विरोध किया। अमेरिका, फ्रांस, चीन जैसे देश आज भी आये-दिन परमाणु परिक्षण करते रहते हैं, अणु बमों से भी अधिक विनाशकारी बमों हाइड्रोजन बम आदि के निर्माण में संलग्न हैं, अपनी सैन्य शक्ति बढ़ा रहे हैं और भारत आदि देशों पर दबाव डालते रहे हैं कि वे न तो परमाणु परिक्षण करे, न अणु बम का निर्माण करे। इस भेद-भाव की नीति अपनाये जाने की स्थिति में और विशेषकर पड़ौसी देशों चीन और पाकिस्तान द्वारा परमाणु बम बनाने में सफल होने और उनका प्रयोग करने की धमकी दिये जाने की स्थिति में भारत को अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका आदि देशों का प्रस्ताव ठुकराना पड़ा और उसके पास भी शत्रु के आक्रमण या आक्रमण की धमकियों का मुँहतोड़ जबाव देने की शक्ति है। “बचाव में ही सुरक्षा” है का पाठ उसने सीख लिया है। भारत जानता है ‘समरथ को नहिं दोष गोसाईं।’ 1964-65 में चीन द्वारा अणु विस्फोट करने के बाद विश्व में उसकी प्रतिष्ठा ही बढ़ी है, यह बात भी भारत जानता है। अतः उसने अपनी इस नीति की घोषणा कर दी है कि वह परमाणु शक्ति का प्रयोग शान्ति के लिए करेगा, देश के आर्थिक, औद्योगिक विकास के लिए, कृषि-उत्पाद बढ़ाने के लिए, चिकित्सा के क्षेत्र में करेगा तथा कभी अपनी ओर से अणु बम नहीं गिरायेगा, पर साथ ही चौकन्ना, सजग, सावधान रहेगा और शत्रु को ईंट का जवाब पत्थर से देगा। कवि ‘दिनकर’ की बात मानकर उसने निश्चय कर लिया है कि वृकों और व्याघ्रों के दाँत उखाड़ने की क्षमता रखने पर भी, बकरी के मेमनों में भेड़ियों से लड़ने की शक्ति पैदा कर ही सुरक्षित रहा जा सकता है, देश का विकास किया जा सकता है।
Tags Easy Hindi Essays Essays for NCERT Syllabus Essays in Hindi Language Hindi Essays for 10 Class Students Hindi Essays for 11 Class Students Hindi Essays for 12 Class Students Hindi Essays for 5 Class Students Hindi Essays for 6 Class Students Hindi Essays for 7 Class Students Hindi Essays for 8 Class Students Hindi Essays for 9 Class Students Hindi Essays for CBSE Students Hindi Essays for NCERT Students Hindi Essays in Easy Language Popular Hindi Essays for CBSE Students Short Hindi Essays
Check Also
रतन टाटा पर हिंदी निबंध विद्यार्थियों और बच्चों के लिए
Ratan Tata Essay in Hindi: रतन टाटा प्रेरणा निबंध: भारत के सबसे सम्मानित और प्रभावशाली …