हँस के लिया है पाकिस्तान, लड़ कर लेंगे हिंदुस्तान।
भारत के प्रति पाकिस्तान के इस अविवेकपूर्ण, आत्मघाती, अड़ियल रवैये का कारण क्या है? आइए इस पर विचार करें। पाकिस्तान के जन्म का कारण यह विचार या धारणा थी कि देश धर्म के आधार पर बनता है। धर्मावलम्बियों की संख्या के आधार पर देश की सत्ता बहुसंख्यक लोगों को, उनके प्रतिनिधियों को सौंप दी जनि चाहिए। अतः 1947 में भारत के जिन प्रान्तों में मुसलमान बहुसंख्यक थे उन्हें मिलाकर पाकिस्तान बना दिया गया – भारत के नार्थ-वैस्ट फ्रंटियर, सिन्ध, पंजाब और आज जिसे बांग्लादेश कहते हैं उन्हें मिलाकर पाकिस्तान बना दिया गया। यह सोच अब भी विद्यमान है। हालांकि पूर्वी बंगाल का पाकिस्तान से कट जाना और एक स्वतंत्र देश बांग्लादेश का जन्म इस सोच को गलत सिद्ध करता है। इसी सोच का परिणाम है कि पाकिस्तान आज भी कश्मीर को अपना अंग मानता है क्योंकि वहाँ रहनेवालों में बहुसंख्यक मुसलमान हैं, हिन्दु अल्पसंख्यक हैं और भारत हिन्दुओं का देश है, उसे कश्मीर को थाल में सजाकर चुपचाप पाकिस्तान को सौंप देना चाहिए। धर्म-निरपेक्ष देश होने के कारण भारत उसके इस प्रस्ताव को कभी नहीं मान सकता। दुसरे, आजादी के बाद काश्मीर में लगातार चुनाव होते रहें हैं, चुने हुए जनता के प्रतिनिधि सरकार बनाते हैं और इन सरकारों ने भारत के संविधान को स्वीकार कर भारत के एक प्रदेश के रूप में रहने का ही निर्णय किया है जबकि पाकिस्तान में या तो चुनाव हुए ही नहीं या हुए तो छद्म चुनाव हुए, निष्पक्ष ओए निर्भय होकर मतदाताओं को अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर नहीं मिला। जनरल मुशर्रफ ने जो चुनाव कराया है वह केवल ढोंग था, उनके समर्थकों का ही चुनाव हुआ, संसद बनी, प्रधानमंत्री बना, मंत्रिमंडल बना। असंवैधानिक और अनैतिक तरीकों से वह राष्ट्रपति बन बैठे और आज भी वह राष्ट्रपति तथा सेनाध्यक्ष दोनों पद संभाले हुए हैं, यद्यपि यह संविधान के अनुरूप नहीं है और इसे लेकर आज भी वहाँ विवाद चल रहा है। इस प्रकार काशमीर समस्या दोनों देशों के बीच मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने में एक बड़ी बाधा रही है।
पाकिस्तान के अड़ियल, दुराग्रहपूर्ण और अविवेकपूर्ण रवैये का दूसरा कारण है उसकी रुग्ण मानसिकता, उसकी हिन भावना। यह जानते हुए भी कि भारत क्षेत्रफल में, प्राकृतिक संसाधनों, आर्थिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक सभी क्षेत्रों में पाकिस्तान की तुलना में बड़ा, सम्पन्न, समृद्धि और आत्मनिर्भर देश है तथा अपनी इस सुदृढ़ आर्थिक स्थिति एवं वैज्ञानिक प्रगति से कुछ ही वर्षों में विश्व की महान शक्तियों में से एक हो जायगा, पाकिस्तान उसकी बराबरी ही नहीं करना चाहता स्वयं को उससे अधिक शक्तिशाली सिद्ध करना। उसके दुर्भाग्य से तिन बार युद्ध करने पर भी उसे सफलता नहीं मिली है, तीनों बार मुँह की खाकर, अपने सैनिकों का बलिदान कर उसे मात खानी पड़ी है। अपने देशवासियों को भी वह आश्वस्त करता रहा है कि वह एक दिन युद्ध में विजय प्राप्त कर, पिछली पराजयों का कलंक मिटाकर देश को गौरवान्वित करेगा।
भारत के प्रति शत्रुपूर्ण आचरण करने का एक करण है पाकिस्तान की आन्तरिक समस्याएँ और सत्ता की कुर्सी पर बैठे रहने की लालसा। जब-जब जातीय, प्रान्तीय, धार्मिक विवादों तथा अन्य कारणों से उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, आन्तरिक व्यवस्था चरमराने लगती है, स्थिरता पर संकट के बादल मंडराने लगने लगते हैं, तब-तब वह भारत का हौआ दिखाता है, इस्लाम खतरे में है, कहकर भारत-विरोधी जनमत तैयार करता है, जनता का ध्यान सरकार की भूलों, गलत नीतियों और भ्रष्ट कारनामों से हटाना चाहता है, जनता को क्रान्ति और विद्रोह करने, सत्ता की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को अपदस्थ करने की योजना पर पानी फेरता रहता है।
पाकिस्तान में अब भी कठमुल्लापन है, धर्मान्धता है, अपने धर्म का विरोध करनेवालों के प्रति घृणा और शत्रुता का भाव है। वहाँ शिया-सुन्नियों के झगड़ों, बचे-खुचे ईसाईयों की हत्या करने के समाचार जब-तब पढ़ने-सुनने को मिलते रहते हैं। ये कट्टरपंथी, धर्मान्ध मुसलमान भारत को हिन्दुओं का देश कहकर और समझकर उसके साथ मैत्री सम्बन्ध स्थापित नहीं होने देना चाहते। वह स्वयं अपने को इस्लामी देश कहता है।
पाकिस्तान की भारत -विरोधी नीति और शत्रुतापूर्ण आचरण का एक कारण अंतर्राष्टीय गुटबंदी भी रही है। कुछ समय तक अमेरिका और रूस विश्व की दो प्रतिद्वन्दी शक्तियाँ थी और अमेरिका ने रुश को निचा दिखाने के लिए पाकिस्तान को अपना मुहरा बनाया, उसे सैनिक और असैनिक सहायता दी, उसका हौसला बढ़ाया। पाकिस्तान अमेरिका और चीन की सैनिक सहायता पाकर स्वयं को विश्व का शक्तिशाली देश मानने लगा। चीन की सहायता से चोरी-छिपे अनुबम बनाकर तो वह दादागिरी दिखाने लगा है, भारत को ब्लैकमेल कर रहा है, विश्व के राष्ट्रों से कह रहा है कि यदि काश्मीर समस्या का हल उसकी इच्छानुरूप नहीं किया गया तो वह अनुबमों का प्रयोग कर संसार को तीसरे महायुद्ध की ज्वालाओं में झौंक देगा।
ऐसा स्थिति में भारत-पाकिस्तान के बीच मैत्री सम्बन्धों की स्थापना कठिन ही नहीं असम्भव प्रतीत होती है। इतिहास ने भी यह बता दिया है। भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने लाहौर-दिल्ली बस-सेवा आरम्भ की, जनरल मुशर्रफ को दिल्ली-आगरा बुलाकर समझौता करना चाहा। दोनों बार उनके शान्ति-प्रयासों का परिणाम कारगिल जैसे युद्ध हुआ। दो-तीन बार असफल रहने पर उन्होंने पुनः दोस्ती का हाथ बढ़ाया है पर कोई सुखद परिणाम निकलेगा, इसकी आशा नहीं है।
ऐसी स्थिति में दो ही उपाय हैं – (1) पाकिस्तान शिष्टाचार की भाषा नहीं समझता, अतः उसके साथ जुटे की भाषा का प्रयोग किया जाय तथा (2) भागवान की इच्छा या फिर आन्तरिक और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के कारण वहाँ सैनिक शासन समाप्त हो, सच्चा जनतंत्र स्थापित हो और जनता के दबाव में आकर वहाँ के शासक वैर-भाव का मार्ग छोडकर सहयोग, परस्पर सहायता और मिल-बैठ कर अपनी समस्याओं को सुलझाने का मार्ग अपनाएँ। पाकिस्तान के कारनामे -भारत पर तीन बार आक्रमण, अलगाववादियों तथा आतंकवादियों को ढाल बनाकर भारत को दुर्बल एवं अस्थिर बनाना, वायुयान अपहरण, बम्बई, अक्षयधाम तथा गोदरा में बम-विस्फोट और नर-संहार, भारत के राजनयिकों के साथ दुर्व्यवहार, अपराधियों को शरण देना, उनकी सहायता करना, तस्कर-व्यापार, भारत के मुसलमानों को भड़का कर उन्हें देशद्रोही बनाने के प्रयास आदि इसी बात का संकेत हैं कि वह केवल जुते की भाषा से ही ठीक होगा, मैत्री-वार्ताएँ असफल रहेंगी।