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जन्माष्टमी पर निबंध Hindi Essay on Janmashtami

जन्माष्टमी पर निबंध विद्यार्थियों और बच्चों के लिए

जन्माष्टमी निबंध [2]

हिन्दू धर्म के अनुयायी भगवान के अवतारों में विश्वास करते है और विष्णु के चौबीसव अवतार मानते हैं। भगवान कृष्ण को सोलह कलाओं से सम्पूर्ण अवतार माना गया है। श्रीमद्भागवत् गीता में अर्जुन से वर्तालाप करते एवं उसे कर्मयोग का सन्देश देते हुए कृष्ण अपने को अवतार कहते हैं: जब-जब धर्म के उत्थान के लिए, साधु-सज्जनों के परित्राण तथा दुष्टों के संहार के लिए मैं जन्म लेता हूँ।

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।

भगवान कृष्ण लोकरक्षक हैं तथा लोकरंजक भी जबकि राम केवल मर्यादापुरुषोत्तम लोकरक्षक ही थे। कृष्ण का जीवन कई भागों में बाँटा हुआ है, उनके विभिन्न स्वरुप हमें मुग्ध करते हैं, प्रभावित करते हैं, सन्देश देते हैं। बाल-कृष्ण की लीलाएँ औरकिशोरावस्था में गोपियों के साथ उनकी श्रृंगार-चेष्टाएँ ओर केलि-विलास हमें मुग्ध करता है, कंस आदि अन्यायी-अत्याचारी-पापी, नृशंस असुरों का वध कर संतप्त, अत्याचार पीड़ितों का उद्धार हमें उनके शौर्य, पराक्रम और पुरुषार्थ की झांकी देता है। महाभारत के कृष्ण योगिराज कृष्ण हैं, स्थितप्रज्ञ हैं; निष्काम कर्म का सन्देश देकर हमारी अनेक सामाजिक, राष्ट्रीय, वैयक्तिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते हैं और द्वारिकाधीश के रूप में वह एक आदर्श शासक के रूप दिखाई देते हैं। कुरुक्षेत्र के रण-स्थल में अर्जुन को दिया गया उपदेश जो ‘गीता’ के रूप हमें उपलब्ध हैं सभी के लिए मार्गदर्शन का कार्य करता है, जीवन जीने की कला सिखाता है। योगिराज होते हुए भी वह संसार से विरक्त और कर्त्तव्य से विमुख होने का सन्देश नहीं देते, निष्काम कर्म करने की प्रेरणा देते हैं, सुख-दुःख, हानी-लाभ, जय-पराजय में समभाव रखने की बात कह कर संयम-संतुलन का पाठ पढ़ाते हैं। शरीर नाशवान है, आत्मा अमर है, चोला बदलना वस्त्र बदलने के समान है कहकर उन्होंने असंख्य लोगों के संतप्त हृदय पर अमृत कणों की वर्षा की है। त्रेता युग में उत्पन्न इन्हीं महापुरुष कृष्ण की पावन स्मृति में, उनके प्रति अपनी श्रद्धा-भक्ति प्रकट करने के लिए भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को उनका जन्मदिन जन्माष्टमी के पर्व के रूप में सारे भारतवर्ष में हीं नहीं विदेशों में रहनेवाले हिन्दुओं द्वारा भी मनाया जाता है।

श्रीकृष्ण के जन्म तथा लालन-पालन की कहानी भी कम रोचक-रंजक नहीं है। यह आकाशवाणी सुनकर कि देवकी की  सन्तान ही मथुरा के अधिपति कंस की मृत्यु का कारण बनेगी, उस नृशंस, क्रूर और अत्याचारी नरेश ने वसुदेव-देवकी को कारागार में बंदी बनाकर उन्हें अनेक यातनाएँ दीं और उनकी सात संतानों को जन्म लेते ही पत्थर की शिला पर पटक-पटक कर उनकी हत्या करता रहा। कृष्ण वसुदेव-देवकी की आठवीं सन्तान थे। पिता वसुदेव ने किसी प्रकार नवजात शिशु को अपने मित्र और सामन्त नन्द बाबा के पास नन्दग्राम में पहुँचा दिया और वहीं उनका पालन-पोषण हुआ। इसीलिए उन्हें नन्दलाल और यशोदानन्दन भी कहते हैं। बड़े होने पर इन्हीं कृष्ण ने मथुरा जाकर कंस का वध कर अपने माता, नाना उग्रसेन और हजारों बन्दी बने लोगों को कारागार से मुक्त कर ब्रज-प्रदेश में सुख-शान्ति की स्थापना की।

जन्माष्टमी के पर्व का धार्मिक महत्त्व भी है और सांस्कृतिक महत्त्व भी। धार्मिक वृत्ति वाले लोग विशेषतः वे जो कृष्णभक्त मन्दिरों में जाकर या स्वयं अपने  घरों में पूजा-गृहों में राधा-कृष्ण मूर्तियों, चित्रों के सामने बैठकर पूजा-उपासना करते हैं, गीता का पाठ करते हैं, विभिन्न कवियों द्वारा रचे हुए पदों को गाते हैं। कुछ  जो अधिक सम्पन्न हैं राधा-कृष्ण की मूर्तियों का कीमती वस्त्रों तथा   आभूषणों से श्रृंगार कर अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों से उनको भोग लगाते हैं और प्रसाद रूप में उनका वितरण भी करते हैं। आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक वृति के लोग गीता का पाठ करते हैं, विद्वानों द्वारा दिये गये प्रवचन सुनते हैं, गीता की व्यख्या सुनने के लिए सभा-मंडपों में जाते हैं।

जन्माष्टमी के उत्सव का प्रधान आकर्षण होता है सजे-सजाये, बिजली की रंग-बिरंगी रोशनी में जगमगाते मन्दिर, गली-मुहल्लों से गुजरती हुई कृष्ण-लीलाओं की विभिन्न झाँकियाँ-किसी में कृष्ण को माखन चुराते, खाते, मुख पर लपटाये दिखाया जाता हैं, किसी में गोवर्धन पर्वत उठाते हुए, विशेष मुद्राओं में क्रियाशील दिखाये जाते हैं। कुछ  में नन्हे-मुन्ने बच्चों को बाल कृष्ण की तरह अंगूठा चूसते हुए, झूलों में झूलते हुए दिखाया जाता है। रात होते ही लोगों की भीड़ मन्दिरों में उमड़ने लगती है। सब रात के बारह बजे तक मन्दिरों में बैठे कृष्ण जन्मोत्सव का दृश्य देखने, प्रसाद पाने की प्रतीक्षा करते रहते है। इस अवसर पर कृष्ण जन्मोतस्व का सजीव दूरदर्शन पर दिखाया जाता है और रेडियो पर श्रोतागण आँखों देखा हाल का विवरण सुनते हैं। जन्म का समाचार सुनते ही वे लोग जीन्होंने निर्जल व्रत रख रखा था चरणामृत तथा फलाहार लेकर व्रत का उपारण करते हैं। जन्माष्टमी शुद्धा-भक्ति और हर्षोल्लास का त्यौहार है जो कर्म का, अन्याय-अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष का, भगवद् भक्ति का सन्देश देता है।

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