महाशिवरात्रि त्यौहार पर हिंदी निबंध: महाशिवरात्रि एक ऐसा महान पर्व है। जिसे समस्त भारतीय बड़े ही हर्षोल्लास से मनाते हैं।कहा जाता है कि शिवरात्रि के दिन भगवान शिव का माता पार्वती जी के संग विवाह हुआ था और तब से इस दिन को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाने लगा। इस दिन भक्तजन अपनी श्रद्धा अनुसार निराहार रहकर उपवास करना, मंदिरों में भव्य आयोजन कर पूजा अर्चना करना आदि करते हैं।
इस दिन सारा दिन के उपवास के बाद सायंकाल में सभी भगवान शिव की पूजा करने के पश्चात फलाहार कर उपवास को खोलते हैं। वेद पुराणों में भी इस दिन को लेकर व्यख्या की गई हैं और बहुत सारे अलग अलग इस दिन को लेकर मान्यता बताई गई है। तो आइए जानते हैं विस्तार से…
महाशिवरात्रि का महत्व: महाशिवरात्रि त्यौहार पर हिंदी निबंध
महाशिवरात्रि के दिन शिव मंदिर को बहुत अच्छी तरह से सजाया जाता है। इस दिन मंदिरों में भक्तजन की लम्बी-लम्बी लाइने और भीड़ जमा होती हैं। महाशिवरात्रि के दिन सभी भक्त वर्त उपवास करते हैं और फल, फूल, बेलपत्र, भंग, धतूरा, बेर इत्यादि से पूजा अर्चना करते हैं। तत्पश्चात सायंकाल में फलाहार करते हैं। सुबह प्रातःकाल फिर पूजा कर अपना वर्त भोजन करके तोड़ते हैं। यह सब करना बहुत ही लाभदायक माना जाता है।
महाशिवरात्रि के दिन गंगा स्नान का भी बहुत ज्यादा महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को ही गंगा माता का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था और उनके बैग को संभालने के लिए शिव जी ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण कर धीरे धीरे पृथ्वी पर डाला। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का महत्व भी है।
महाशिवरात्रि पर मान्यताएं और परंपराएं: महाशिवरात्रि के दिन को लेकर सभी की अपनी परंपराएं और मान्यताएं है। उन्ही में से कुछ का जिक्र हम करेंगे।
- कहा जाता है कि इस दिन नव विवहित जोड़ों को शिव पार्वती का रूप धारण करके। उनका शिवरात्रि के दिन पूजा किया जाता है और उनका पुनः विवाह कराया जाता है।
- इस दिन भगवान शिव और पार्वती जी का विवाह हुआ था। इसलिए ऐसी मान्यता है कि नव विवहित जोड़ो का विवाह करने से उनका संबंध भी भगवान शिव पार्वती के जितना मजबूत हो जाता है।
- शिवरात्रि के दिन नव विवहित जोड़ो से ही शिवलिंग की पूजा कराई जाती हैं और कल्बे से भगवान शिव और पार्वती जी के मूर्ति को बंधा जाता है। कहते हैं ऐसा करने से उनके भी संबंध बने रहते हैं।
- शिवरात्रि के दिन कई जगहों पर इस दिन मंदिरों में शिव विवाह की झांकियों का प्रबंध कर दिखाया जाता है और अंत में सभी को भोजन कराया जाता है। कहते है इस दिन सभी भगवान शिव के बरती होते हैं। सभी को भोजन करना मतलब भगवान शिव के व्रत में शामिल हुए लोगों को भोजन करना है।
- इस दिन गंगा स्नान का भी महत्व है।
महाशिवरात्रि पर पौराणिक कथा:
शिवरात्रि जो पहले केवल शिवरात्रि के नाम से ही व्यख्याता था। वो कैसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाने लगा। आइये जानते हैं। कहते हैं इस दिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदसी तिथि को ही ऋषि मार्कण्डेय जी ने अपनी अक्स्मात अल्पआयु की मृत्यु को भी इस दिन महामृत्युजयमंत्र की सहायता से टाला था। इस मंत्र को महामृत्युंजय मंत्र नाम महादेव ने ही दिया था।
एक और पौराणिक कथा है। जिसके अनुसार इस दिन को केवल शिवरात्रि के नाम से ही जाना जाता था। कहते हैं कि चंद्रमा जो कि दक्ष प्रजापति जा जमात (दामाद) था। इनकी दो पत्नी थी। किंतु वह केव एक पुत्री से प्रेम करते थे और दूसरी से नहीं। दक्ष को जब यह बता पता चली तो क्रोध वश उन्होंने चंद्रमा को शर्प दे दिया कि तू क्षेय हो जाओगे। किन्तु यदि चंद्रमा क्षेय हो जाते तो संसार का संतुलन बिगड़ जाता।
इसलिए सभी ऋषि ऋषि मार्कण्डेय के पास गये और उनसे इस श्राप से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र मांग और फिर उसका जप करने लगे जिससे वह महादेव स्वयम प्रकट हो। दक्ष प्रजापति के दिये गए श्राप को तो नही हटाया क्योंकि चंद्रमा ने गलती तो की थी किन्तु उस श्राप को कम जरूर किया उन्होंने चंद्रमा को वरदान दिया कि वह 15 दिन क्षेय होते जाएंगे और फिर 15 दिन बाद वह पुनः अपने आकार में आना शुरू कर देंगे।
तभी से जब चंद्रमा पूरा क्षेय हो जाता है तो उसे अमावस्या कहते हैं और फिर अपने पुनः स्वरूप में पूर्णिमा को आते है। इसी दिन शिव जी ने चन्द्रमा को दक्ष प्रजापति के श्राप से बचाने के लिए अपने सर पर धरण किया था। इस कारण वश भी शिवरात्रि का इतना महत्व है। कहते हैं कि महादेव भगवान एक बेल पत्र से ही प्रसन्न हो दौड़े चले आते हैं। और अपने भक्तों के हर कष्ट को हर लेते हैं।
शिवरात्रि का नाम महाशिवरात्रि कैसे पड़ा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिवरात्रि वाले दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती के शुभ विवाह का मुहूर्त निकाला था और जिस दिन यह विवाह संपन्न हुआ। उस दिन से भगवान शिव के सभी भक्तों ने इसे महाशिवरात्रि के नाम से पुकारना शुरू कर दिया। तब से इस दिन को माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह वाले दिन के रूप में मनाया जाता है। तथा जगह जगह पर इस दिन की झाकिया दिखाई जाती है।
भगवान शिव के बारे में कुछ बातें:
जैसा की हम सब जानते हैं। हमारे हिन्दू समाज में तैतीस करोड़ देवी-देवता हैं जिसमे से भगवान शिव की अपनी एक अलग ही मान्यता है क्योंकि भगवान शिव जो कि एक वैराग्य धारणा करने वाले, हमेशा वनों में रहने वाले थे। जिनका विवाह हिमामन की पुत्री पार्वती जी के संग सम्पन्न हुआ था। इनके कई सारे नाम है जैसे – त्रिलोकपति, भोले नाथ, शंकर, शिव, चन्द्रशेखर, त्रिनेत्र धारी, पशुपति, महाकाल आदि ऐसे कई नाम है।
यह सभी देवताओं के भांति स्वर्ण आभूषण आदि धारण नहीं करते थे। वह गले में रुद्राक्ष की माला को धारण करते हैं, कान में बिछु के कुंडल पहनते हैं, देह पर भस्म लगाते है, और सिर पर चंद्रमा धारण किया है और जटा में गंगा मइया है। यह ही एक ऐसे देवता हैं जो कि अपने भक्तों के संग धरती पर ही निवास करते हैं। यह सब बातें भगवान शिव को अन्य देवी देवताओं से अलग बना देते हैं।
भगवान शिव को भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है जो कई बार भक्तों के अनजाने में किए गए पूजा अर्चना को भी स्वीकार कर उसका फल देते हैं। जैसे — आप सभी ही भलीभांति चित्रभानु शिकारी के कथा से परिचित होंगे। जिसने अनजाने में ही शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर बेलपत्र गिरा दिया था। इस प्रकार उसकी पूजा अर्चना हो गई और मोक्ष की प्राप्ति हो गई। मृत्यु उपरांत जब वह यमलोक गया तो उसे शिवगणों ने शिवलोक भेज दिया था।
निष्कर्ष:
कहते हैं जो कोई दया भाव से शिवरात्रि के दिन सच्चे मन से पूजा अर्चना करते हैं। उसे मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होता है। भगवान शिव जी तो वैसे भी अनजाने की पूजा से भी प्रसन्न हो जाते हैं। यह त्यौहार समस्त भारतवासी बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। सभी लोग पूजा अर्चना सच्चे प्रेम भाव से करते हैं। इसलिए हमें भी इस दिन दया भाव रखना चाहिए और हमेशा ही दूसरों की सहायता करनी चाहिए।