रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध 3 (200 शब्द)
वो एक अच्छे लेखक थे और उन्होंने अपने पैदाइशी स्थान बंगाल में लेखन में सफलता प्राप्त की। लेखन में उनकी लगातार सफलता ने भारत के आध्यात्मिक विरासत की एक प्रसिद्ध आवाज़ बनने के लिये उनको काबिल बनाया। मनासी, सोनर तारी, गीतांजलि, गीतिमलया, बलाका आदि जैसे उनके कविताओं के कुछ अद्वितीय संस्करण हैं। कविताओं के अलावा, वो नृत्य नाटक, संगीत नाटक, निबंध, यात्रा वृतांत, आत्मकथा आदि लिखने के लिये भी प्रसिद्ध थे।
रबीन्द्रनाथटैगोर पर निबंध 2 (150 शब्द)
रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, देशभक्त, दर्शनशास्त्री, मानवतावादी और चित्रकार थे। महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के घर में अपने पैतृक निवास में 7 मई 1861 को कलकत्ता के जोर-साँको में उनका जन्म हुआ। वो अपने माता-पिता की 14वीं संतान थे हालांकि दूसरों से अलग थे। निजी शिक्षकों के द्वारा घर पर विभिन्न विषयों के बारे में अपनी उचित शिक्षा और ज्ञान को उन्होंने प्राप्त किया। जब रबीन्द्र बहुत छोटे थे तभी से इन्होंने कविता लिखना शुरु कर दिया था और उनमें से कुछ पत्रिकाओं में भी छपे थे।
वो उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैंड गये लेकिन वहां शिक्षा की पारंपरिक व्यवस्था के द्वारा संतुष्ट नहीं हुए और वो भारत लौटकर और बंगाल के वीरभूमि के बोलपूर में शांतिनिकेतन के नाम से अपना खुद का स्कूल खोला। यही स्कूल बाद में कॉलेज़ बना और उसके बाद एक विश्वविद्यालय (विश्व-भारती)। 1913 में “गीतांजलि” के लिये इनको नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ब्रिटिश क्राउन के द्वारा इन्हें नाइटवुड से भी सम्मानित किया गया लेकिन जलियाँवालाबाग में नरसंहार के खिलाफ विरोध स्वरुप में उन्होंने उस सम्मान को वापस कर दिया।
रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध 1 (100 शब्द)
रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान भारतीय कवि थे। उनका जन्म 7 मई 1861 में कोलकाता के जोर-साँको में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम शारदा देवी (माता) और महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर (पिता) था। टैगोर ने अपनी शिक्षा घर में ही विभिन्न विषयों के निजी शिक्षकों के संरक्षण में ली। कविता लिखने की शुरुआत इन्होंने बहुत कम उम्र में ही कर दी थी। वो अभी-भी एक प्रसिद्ध कवि बने हुए हैं क्योंकि उन्होंने हजारों कविताएँ, लघु कहानियाँ, गानें, निबंध, नाटक आदि लिखें हैं। टैगोर और उनका कार्य पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है। वो पहले ऐसे भारतीय बने जिन्हें “गीतांजलि” नामक अपने महान लेखन के लिये 1913 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वो एक दर्शनशास्त्री, एक चित्रकार और एक महान देशभक्त भी थे जिन्होंने हमारे देश के राष्ट्रगान “जन गण मन” की रचना की।