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शिक्षक दिवस

शिक्षक दिवस पर निबंध विद्यार्थियों के लिए

शिक्षक दिवस पर निबंध विद्यार्थियों के लिए
[450 Words]

शिक्षक, नेता, विचारक, दार्शनिक के रूप सफलता प्राप्त करने वाले भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे। राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किए थे। उनके शिक्षा प्रेम और विद्वता के कारण भारत वर्ष उनका जन्म दिवस 5 सितम्बर ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

प्राचीन काल में यह मान्यता थी कि बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता और हो भी जाए तो वह फल नहीं देता। यह मान्यता कुछ हद तक सही भी थी, क्योंकि व्यक्ति जो कुछ पढ़ता है उससे उसे मात्र शब्द ज्ञान प्राप्त होता है अर्थ ज्ञान नहीं। अर्थ ज्ञान के लिए ही व्यक्ति को शिक्षक की आवश्यकता होती है। अर्थ ज्ञान के अभाव में वह उस गधे की तरह होता है, जो अपने पीठ पर लदे चन्दन की लकड़ी के भार को जानता है, लेकिन चन्दन को नहीं जानता।

भारत-शिक्षा के लिए प्राचीन काल से ही विश्व प्रसिद्ध रहा है। पहले शिक्षा गुरुकुलों में दी जाती थी। छात्र आश्रमों में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे। वे शिक्षा की पूर्ण समाप्ति पर ही अपने घरों में वापिस लौटते थे। वेद, वेदांत, उपनिषद, शस्त्र-अस्त्र की शिक्षा के अतिरिक्त उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक शिक्षा भी दी जाती थी। शिष्य की समस्याओं और शंकाओं का निवारण उस का शिक्षक सदैव करता था। शिक्षक का स्थान बहुत ऊँचा था। राजा भी शासन कार्यों में उसकी सलाह लेते थे।

संसार परिवर्तनशील है। मान्यताएं बदलती हैं और ध्वस्त होती हैं। लेकिन शिक्षा की आवश्यकता व्यक्ति को जीवन भर पड़ती है। जिस प्रकार माली पौधे की कांट-छांट करके उसे सुन्दर बनाता है, उसी प्रकार शिक्षक भी अपने विद्यार्थियों के दुर्गुणों को दूर कर उनमें सदगुणों का विकास कर उन्हें उच्च पद पर बैठाता है। जैसे कि चाणक्य ने अपने शिष्य चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाया था। इसलिए गुरु ब्रह्म, विष्णु और महेश के समान पूजनीय है।

देश को महान नेता, वैज्ञानिक, दार्शनिक, डॉक्टर, इंजीनियर देने वाले शिक्षक की उपेक्षा उचित नहीं। 5 सितम्बर को राष्ट्रपति कुछ शिक्षकों को पुरस्कार देते हैं। यह पुरस्कार राज्य स्तर पर भी शिक्षकों को मिलता है। राजनैतिक कृपापात्र ही इस पुरस्कार की चयन प्रक्रिया में आ पाते हैं। कुशल और योग्य शिक्षक अपने जीवन में यह पुरस्कार प्राप्त नहीं कर पाते।

5 सितम्बर को स्कूलों का कार्यभार बच्चों को सौंपा जाता है। कुछ चुने हुए छात्र-छात्राओं को अध्यापक और अध्यापिका बनाया जाता है और वे अध्यापन का कार्य करते हैं। शरारत करने वाले छात्र जिस जिम्मेदारी से कार्य का संचालन करते हैं वह देखते ही बनता है। विद्यालय में प्रार्थना समाप्त होने के बाद इन बाल अध्यापकों से परिचय कराया जाता है। इस अवसर पर बाल अध्यापक अपने शिक्षकों का सम्मान करते हैं। कहीं-कहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। अगले दिन प्रिंसिपल बाल अध्यापकों द्वारा सुव्यवस्थित ढंग से चलाए गए अध्यापन कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं।

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