दिल्ली का यह चिड़ियाघर पुराने किले के पास स्थित है। किले की दीवार के साथ सुन्दर झील है। इसमें अनेक प्रकार के जल-जीव तैर रहे थे। सुन्दर -सुन्दर बत्तखें, बगुले और अनेक प्रकार की चिड़ियाँ जल में आनन्द ले रही थीं, आगे बढ़ने पर पक्षियों का बाड़ा आ गया। यहाँ नाना प्रकार के पक्षी तोते, कबूतर, चील, चिड़ियाँ, नीलकंठ चह-चहा रहे थे। हमें उल्लू भी देखने को मिला जो ऊंघ रहा था।
थोड़ा आगे बढ़ने पर एक अंधे जाल से घिरे बाड़े में अनेक शेर और चीते चक्कर काट रहे थे। कुछ आराम कर रहे थे।
कुछ दर्शकों को देखकर दहाड़ रहे थे। कुछ शेर पिंजरों में बंद थे। उन के दड़वे में मांस के टुकड़े पड़े थे। कुछ दुर्लभ प्रकार के सफेद शेर थे जिन्हें किसी राजा ने चिड़ियाघर को दिया था। कुछ और आगे बढ़ने पर हम एक उद्यान में पहुँचे। वहाँ अनेक हिरण चौकड़ी भर रहे थे। वे बड़े सुन्दर थे। उनके सींग बहुत बड़े-बड़े थे। इससे आगे बढ़ने पर अनेक बन्दर और लंगूर दिखाई दिये। बच्चे उन्हें चिढ़ा रहे थे। कुछ उन के आगे चने के दाने फेंक रहे थे। वे पेड़ से कूद कर दाने उठाने के लिए कूद पड़ते थे।
चिड़िया घर में रीछ, दरियाई घोड़ा, शतुरमुर्ग और जिर्राफ विशेष आकर्षण का केन्द्र थे। अनेक प्रकार की रंग-बिरंगी छोटी बड़ी मछलियां, मगरमच्छ जलाशय में आनन्द मग्न क्रीड़ा कर रहे थे। एक बाड़े में नील गाय, अफ्रीका का भैंसा और इसी श्रेणी के अन्य जानवर थे। गैंडा भी यहाँ देखने को मिला। पहली बार कंगारू के दर्शन किये।
हम घूमते-घूमते थक गये। लगभग ढाई तीन घंटे बीतने पर भी पूरा चिड़ियाघर नहीं देख पाये थे। अंतत: हम उस ओर पहुँचे जहाँ प्रगति मैदान के ऊँचे-ऊँचे द्वार दिखाई पड़े। रेलवे लाइन पर छोटी-सी रेल दौड़ रही थी जिसमें बच्चे, युवक-युवतियां आनंद ले रहे थे। हाथी की सवारी का आनंद उठाने की सुविधा भी थी।
दिल्ली का यह चिड़ियाघर निश्चय ही दर्शनीय स्थल है। यहाँ सफाई की व्यवस्था बहुत बढ़िया है। सभी जीव जंतुओं के लिए उन के प्राकृतिक वातावरण की सुविधाएं जुटाई गई हैं। केवल भारतीय ही नहीं विदेशी पर्यटक भी चिड़ियाघर का आनंद ले रहे थे। चिड़िया घर में न केवल आनंद मिला बल्कि अनेक प्रकार की जानकारी भी मिली।