पिछले सप्ताह मुझे एक सहपाठी की बहन की शादी में जने का अवसर मिला। विद्यालय के और भी मित्र साथ थे। विवाह स्थल केशव पुरम में सनातन धर्म मन्दिर का निकट का पार्क था। पूरे पार्क में लम्बा-चौड़ा पण्डाल सजा था। विवाह स्थल के मुख्य द्वार को किले का रूप दिया गया था। द्वार के बाहर विद्युत चालित फव्वारे की भीनी-भीनी बूंदें भी बरस रही थीं। पंडाल में कालीन बिछे हुए थे। लगभग दो हजार कुर्सियां बिछी हुई थी। चारों ओर फूल महक रहे थे। एक ओर खाने की व्यवस्था की गई थी। मेजों पर तरह-तरह के व्यंजन सजे हुए थे। कहीं चाट वाले, कहीं गोल गप्पे वाले, कहीं मिष्ठान वाले अपना-अपना सामान सजाए बैठे थे। एक ओर शीतल पेय, दूसरी ओर आइसक्रीम वाले और उनके साथ ही गुलाब जामुन और जलेबी वाले हलवाई बैठे हुए थे। कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष के स्वागत की तैयारियां जोरों पर थी। शहनाई वादक मधुर-मधुर ध्वनि करते हुए, शहनाई वादन कर रहे थे।
खूब चहल-पहल थी। महिलाएं और बच्चे रंग-बिरंगे परिधानों में बड़े आकर्षक लग रहे थे। नवयुवतियां थाल सजाएं वर की प्रतिक्षा कर रही थीं। लगभग साढ़े नौ बजे बारात पहुँची। कन्या पक्ष की ओर से हार्दिक स्वागत किया गया। वर महाशय को महिलाओं ने गीत घोड़ी से उतारा। मुख्य द्वार पर ही चौकी पर खड़े करके तिलक किया गया, आरती उतारी गई, फिर उन्हें कन्या और वर के लिए बने मंच पर बैठाया गया। इस बीच बाराती और अन्य अतिथि खाने-पीने में लग गए। लोग एक-दूसरे से प्रेम-पूर्वक मिल रहे थे। इसी बीच में कन्या को लाया गया और वर के समीप आसन पर स्थान दिया गया, दोनों ही बड़े सुन्दर लग रहे थे। जयमाला कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। उनके अनेक चित्र लिए गए। वातावरण उल्लासमय और आनन्दमय था। कुछ खाने में व्यस्त थे, कुछ गप्पें लड़ा रहे थे और कुछ नवयुवक भंगड़ा कर रहे थे। दोनों पक्षों में आमन्त्रित व्यक्ति अपने पक्षों को भेंट समर्पित कर रहे थे। साढ़े दस बजे के बाद लोग लौटने लगे थे क्योंकि हम लोग कन्या पक्ष से अत: हमने बाद में ही भोजन किया और अपने मित्र की बहन को उपहार देकर शुभकामनाएं दी।
विवाह का दृश्य सचमुच ही बड़ा सुन्दर था। हर प्रकार की व्यवस्था थी। विवाह में दोनों ही पक्षों की ओर से दिल्ली के गणमान्य व्यक्ति, तीन-चार सांसद सदस्य और एक-दो मंत्री भी थे। वे लोग अपनी कड़ी सुरक्षा के बीच आए। वर-कन्या को आशीर्वाद दिया और अल्पाहार करके चले गए।