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नारी और फैशन पर विद्यार्थियों और बच्चों के लिए निबंध

नारी और फैशन पर विद्यार्थियों और बच्चों के लिए निबंध

इस धरती पर रहनेवाले अन्य जीवधारियों से मनुष्य को विशिष्ट बनानेवाला गुण है सौन्दर्य-प्रेम। मनुष्य स्वभाव से सौन्दर्य प्रेमी है। अपनी सौन्दर्य पिपासा को मिटाने के लिए वह प्रकृति के रमणीक स्थानों की सैर करता है, रंग-बिरंगे, सुगन्धित पुष्पों से लदे वृक्षों और लताओं को देख उसके नेत्र तृप्त हो जाते हैं, हृदय उल्लास से भर जाता है। वह बाग-बगीचे लगता है, यदि घर में जगह हो तो फूलों की क्यारियाँ लगाता है। इसी सौन्दर्य-प्रेम के कारण वह चित्र-प्रदर्शनियों में जाकर, चित्रकला के अद्भुत और मनमोहक नमूने देखकर प्रसन्न होता है। फैशन या साज-सज्जा इसी सौन्दर्य-प्रेम का एक अंग है।

फैशन अंग्रेजी का शब्द है। इसका अर्थ है – देशकाल के अनुसार की गई भूषाचार, लोकाचार, साजसज्जा। स्त्री हो या पुरुष सब आकर्षक और सुन्दर दिखना चाहते हैं, अपनी ओर दूसरों का ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं। प्रकृति ने उन्हें जो रूप-सौन्दर्य, यौवन और मोहक शरीरावयव दिये हैं और जिनके कारण स्त्री-पूरुष एक दूसरे की ओर आकर्षक अनुभव करते हैं उन्हें अधिक मनमोहक और आकर्षक बनाकर सुन्दर बनने की प्रवृत्ति मानव में जन्मजात है।

सृष्टि के आरम्भ से ही सजने-सँवरने, आकर्षक दिखने, दूसरों को मुग्ध करने के लिए नर-नारी प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग करते रहे हैं। वे फूलों से अपना श्रृंगार करते थे, शरीर को अधिक चिकना, कोमल और सुन्दर बनाने के लिए सुगन्धित उबटनों का प्रयोग करते थे, बढिया से बढिया पोशाक पहनते थे, शरीर पर आभूषण धारण करते थे। पुरुष की अपेक्षा नारी में सुन्दर दिखने और पुरुषों का मन मोहने, उन्हें अपनी ओर आकृष्ट करने की प्रवृत्ति अधिक है। पुरुष भी नारी को आकर्षक, मनमोहक रूप में देखना चाहता है। नारी नारी के रूप पर कम ही मुग्ध होती है।

“मोह न नारि नारि के रूपा
पन्नगारि यह रीती अनूपा”

सारांश यह है कि फैशन करना, साज-श्रृंगार करना, सुंन्दर और आकर्षक दिखने का मनोभाव कोई बुराई नहीं है। किशोरावस्था से ही यह प्रवृत्ति लड़के-लडकियों में पायी जाती है-लड़कों में कम, लडकियों में अधिक। प्रौढ़ावस्था में यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे कम हो जाती है।

साज-श्रृंगार के साधन, सौन्दर्य-प्रसाधन समय-समय पर बदलते रहते हैं। आज जिन सौन्दर्य प्रसाधनों-पाउडर, क्रीम, लिप्स्टिक का प्रयोग आम बात है उनका सौ वर्ष पूर्व कोई नाम तक नहीं जानता था। एक युग था जब घने, काले, लम्बे केश धारण करना फैशन था, आज ब्यूटी सैलून्स (प्रसाधन-गृहों) में नए-नए तरीकों से केशों को आकार दिया जाता है। इन श्रृंगार-गृहों में नारी शरीर को सुन्दर-आकर्षक बनाने के अनेक नए-नए साधनों का, उपकरणों का प्रयोग होता है। नारी अपनी रूचि के अनुसार इनका चयन करती है।

आज को उपभोक्तावादी अपसंस्कृति ने नारी की मनोवृत्तियों पर भी अपना दुष्प्रभाव डाला है। सिनेमा, टेलीविजन, फैशन-शो, सौन्दर्य-प्रतियोगिताओं, मॉडल बनने, विज्ञापनों में अंग-प्रदर्शन आदि के कारण भारतीय नारी अपना परम्परागत शील भूल रही है। लज्जा स्त्री का आभूषण मानी जाती थी। प्रसाद ने ‘कामायनी’ नामक महाकाव्य में लिखा है:

मैं रति की प्रतिकृति लज्जा हूँ
मैं शालीनता सिखाती हूँ।

परन्तु आज नारी इस अमूल्य निधि को खो चुकी है। लज्जा और शालीनता के अभाव में आज की नारी पुरुषों को मुग्ध करने के लिए ऐसे वस्त्रों का प्रयोग करने लगी है जो उसके तन को ढकते कम हैं, प्रदर्शित अधिक करते हैं। अंग-प्रत्यंग से चिपके वस्त्रों को पहन कर ये युवतियाँ अर्ध-नग्न दिखती हैं और ऐसा वे जान बूझ कर करती हैं ताकि देखनेवाले पुरुष उन पर मुग्ध हों। इस प्रकार की वेशभूषा दर्शकों की काम-वासना भड़काती है। सच्चा-सौन्दर्य वह है जो मन को शान्ति प्रदान करे, पर आज नारी जिस प्रकार के सौन्दर्य का सहारा ले रही है वह शान्ति प्रदान नहीं करता, मन को चंचल बनाता है और परिणाम होता है नारी के प्रति अभद्र व्यवहार। आज नारी के प्रति पुरुषों के अभद्र आचरण के लिए स्वयं नारी भी उत्तरदायी है। समाचार-पत्रों में आये दिन छात्राओं के साथ छेड़छाड़, अपहरण, बलात्कार के समाचार छपते रहते हैं। उसका कारण है पुरुषों की कामुकता और इस कामुकता की ज्वाला को प्रज्जवलित करने के लिए नारी का फैशन घी का काम करता है।

वस्तुतः यह फैशन नहीं अपफैशन है और जिस संस्कृति को जन्म दे रहा है वह संस्कृति नहीं अपसंस्कृति है। फैशन का उद्देश्य होना चाहिए सुन्दर दिखना, सौन्दर्य से व्यक्तित्व का निखार करना और ऐसा वातावरण उत्पन्न करना जिसमें सर्वत्र सबको सुख, चैन, शान्ति मिले। परन्तु आज जिस फैशन का सहारा नारी ले रही है, उससे ऐसा दूषित वातावरण जन्म ले रहा है जिससे व्यक्ति और समाज दोनों का अहित होगा। कुत्सित मनोवृतियाँ और रुग्ण मानसिकता व्यक्ति और समाज दोनों का अपकार करंगी। अतः भारतीय नारी को चाहिए कि वह पश्चिम की भोंडी नकल त्याग कर, भारतीय नारी के परम्परागत आदर्शों का पालन करती हुई अपने व्यक्तित्व को निखारे, सुन्दर बने, सुन्दर दिखे पर नग्नता, अश्लीलता, अभद्रता को प्रोत्साहित न करे।

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