राष्ट्र रूपी वृक्ष के वृन्त पर किशोर-किशोरियाँ कली की तरह और युवक-युवतियाँ पुष्पों की तरह मुस्कराकर, अपनी सुगंध और सौरभ से वातावरण को मोदमय बनाते हैं। इसीलिए विद्यार्थी वर्ग राष्ट्र के यौवन का प्रतीक कहा जाता है। राष्ट्र उनसे बहुत आशा और अपेक्षा करता है, उसकी दृष्टि उन पर केन्द्रित रहती है कि वे क्या करते हैं और किस प्रकार राष्ट्र के निर्माण में सहयोग प्रदान करते हैं। वे भविष्य के नागरिक होते है और देश के नागरिक उसकी संपत्ति होते हैं। यदि नागरिक स्वस्थ हैं। मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक दृष्टि से प्रौढ़ हैं तो देश का भविष्य निश्चय ही उज्ज्वल होगा। अतः राष्ट्र के निर्माण में वे पहला कार्य तो यही कर सकते हैं कि स्वयं को स्वस्थ, शारीरिक दृष्टि से हृष्ट-पुष्ट बनायें, मानसिक विकास करें, अपने बुद्धि-बल और ज्ञान का संवंर्धन करें, चरित्रवान् बनें। अपने व्यक्तित्त्व का सम्पूर्ण और समग्र विकास कर वे स्वयं अपना हित तो करेंगे ही, राष्ट्र के निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकेंगे। ईमानदार, सक्षम, समर्थ, राष्ट्र के प्रति पुर्णतः समर्पित होकर वे राष्ट्र को सबल बनायेंगे।
राष्ट्र-निर्माण में विद्यार्थी का योगदान
राष्ट्र-निर्माण का अर्थ है उसे भौतिक दृष्टि से सम्पन्न, समृद्ध, उन्नत बनाना। भारत आज विकासशील देश माना जाता है, हमारा स्वप्न है कि सन् 2020 तक वह विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा हो जाये। इस स्वप्न को साकार करने के लिए हमें अपना उत्पादन बढ़ाना होगा। उत्पादन के दो प्रमुख क्षेत्र हैं- कृषि-उत्पादन तथा औद्योगिक उत्पादन। कृषि के क्षेत्र में अनाज, दलहन, तिलहन, ईख का उत्पादन बढ़ाना होगा। विद्यार्थी विशेषतः कृषि-महाविद्यालयों के विद्यार्थी नए-नए अनुसंधान कर, वनस्पतिशास्त्र में पारंगत हो कृषि उत्पादों को बढ़ाने में किसानों, बागवानी करने वालों की सहायता कर सकते हैं। आज के विद्यार्थी शारीरिक श्रम से कतराते हैं। उन्हें यह दुष्प्रवृत्ति त्यागनी होगी। उन्हें गाँवों में जाकर, खेतों में काम कर कृषि का उत्पादन बढ़ाना चाहिए।
विज्ञान की प्रयोगशालाओं में, इंजीनियरी-कॉलेजों में, प्रौद्योगिकी संस्थानों में पढ़ रहे विद्यार्थी अपने-अपने क्षेत्र में योग्यता प्राप्त कर इंजीनियर बनकर देश के कारखानों, मीलों, फैक्ट्रियों में जाकर कार्य करें, अपनी कार्य करें, अपनी विशेष योग्यता, दक्षता का परिचय दें, निष्ठा और परिश्रम से कार्य करें तो देश का औद्योगिक उत्पादन बढ़ेगा। देश में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है, आवश्यकता है उनके बेहतर उपयोग की। विद्यार्थी अपने परिश्रम और कार्यकुशलता से यह कर सकते हैं। उत्पादन बढ़ेगा, उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ेगी तो हम दूसरे देशों को उनका निर्यात कर अपनी विदेशी मुद्रा का भंडार बढ़ा सकते हैं।
भौतिक समृद्धि से ही देश महान् नहीं बनता। सच्चे अर्थों में महान् बनने के लिए हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखना होगा। भारत जिस दर्शन, अध्यात्म, योग आदि के लिए विख्यात रहा है, उसके प्रति विमुख होने के स्थान पर हम उन्हें अपनी गौरवशाला मानें तो पश्चिम के देश भारत से जिस मार्गदर्शन की आशा करते हैं हमारे विद्यार्थी उनकी उस अपेक्षा को पूरा कर देश को गौरवमंडित कर सकते हैं।
भारत के निर्माण और प्रगति-पथ पर अनेक बाधाएं हैं। भारत अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। ये समस्याएं हैं धार्मिक अंधविश्वास, साम्प्रदायिक वैमनस्य और दंगे, सामाजिक कुरीतियाँ और कुप्रथाएँ, राजनितिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार, प्रदूषण की समस्या बढती जनसंख्या, नारी का उत्पीड़न और शोषण, पारिवारिक विघटन आदि। विद्यार्थी को पहले स्वयं इन कुरीतियों से मुक्त होना होगा, अपने परिवारजनों का विरोध करते हुए सही मार्ग पर चलना होगा। वे भूत-प्रेत, जादू-टोना, शगुन-अपशगुन में विश्वास न करें, विवाह 20-21 वर्ष की आयु से कम में न करें, दहेज न लें, पत्नी को दासी या भोग्या न मानकर सहचरी ओए सहकर्मिणी मानकर उसके साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार करें। हिन्दू-मुसलमानों के बीच सौहार्द, मैत्री भाव उत्पन्न कर वे साम्प्रदायिक तनाव और दंगों को दूर कर सकते हैं। भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध आन्दोलन छेड़कर, उनकी पोल खोलकर, उनको समाज में लज्जित कर, उनके विरुद्ध हड़ताल कर, दूकानों पर धरना देकर, उनके गोदामों पर आक्रमण कर उन्हें ठीक रास्ते पर ला सकते हैं। यदि विद्यार्थी गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के बाद संतति-निरोध उपायों का प्रयोग करें तो जनसंख्या-वृद्धि की समस्या बहुत-कुछ सुलझ सकती है। अन्य लोगों को जनसंख्या-वृद्धि के दोष तथा सन्तति-निरोध के लाभ बताकर, उन्हें शिक्षित कर भी वे इस समस्या का हल निकाल सकते हैं। छात्राएँ सद्गृहिणी बनकर परिवार के सदस्यों में आत्मीयता, प्रेम, स्नेह, सहयोग, सौहार्द के भाव उत्पन्न कर पारिवारिक विघटन को रोक सकती हैं और पारिवारिक जीवन सुखमय और शान्तिपूर्ण बन सकता है।
देश पर आज युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान गिद्ध दृष्टि लगाये बैठा है। अपरोक्ष युद्ध को चलते तो बीस वर्ष से भी अधिक हो चुके हैं। आतंकवाद ने हमारे दिन का चैन और रात की नींद गायब कर दी है। विद्यार्थी सेना या अर्धसैनिक दलों में भरती देश को बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार के खतरों से बचा सकते हैं। हमारा देश शिक्षा और साक्षरता की दृष्टि से अत्यंत पिछड़ा हुआ है। विद्यार्थीगण अवकाश के दिनों में विशेषतः ग्रीष्मावकाश के दो-ढाई मास में गाँवों, नगरों की झुग्गी-झोपड़ियों, गन्दी बस्तियों में जाकर निरक्षर लोगों को साक्षर बना सकते हैं। उन्हें सफाई, स्वास्थ्य, प्रदूषण के सम्बन्ध में जानकारी देकर गन्दगी, बीमारी और प्रदूषण से उनकी रक्षा कर सकते हैं।
छात्रों में एक वर्ग ऐसा है जो निर्माण की बजाय ध्वंस में, सांस्कृतिक उत्थान की बजाय अपसंस्कृति के प्रसार में लगा हुआ है। विवेकसम्पन्न, प्रबुद्ध छात्रों को चाहिए कि वे अपने पथ-भ्रष्ट इन साथियों को समझा-बुझाकर या आवश्यकता पड़ने पर उनका डटकर विरोध कर देश को पतन की खाई में गिरने से बचायें। आवश्यकता है केवल इच्छा-शक्ति की दृढ संकल्प की, राष्ट्रीय चरित्र की जो राष्ट्र को सर्वोपरि मानता है।