(3) प्रेरणार्थक क्रिया (Causative Verb)
जिन क्रियाओ से इस बात का बोध हो कि कर्ता स्वयं कार्य न कर किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, वे प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है। जैसे: काटना से कटवाना, करना से कराना।
एक अन्य उदाहरण इस प्रकार है:
- मालिक नौकर से कार साफ करवाता है।
- अध्यापिका छात्र से पाठ पढ़वाती हैं।
उपर्युक्त वाक्यों में मालिक तथा अध्यापिका प्रेरणा देने वाले कर्ता हैं। नौकर तथा छात्र को प्रेरित किया जा रहा है। अतः उपर्युक्त वाक्यों में करवाता तथा पढ़वाती प्रेरणार्थक क्रियाएँ हैं।
प्रेरणार्थक क्रिया में दो कर्ता होते हैं:
- प्रेरक कर्ता-प्रेरणा देने वाला; जैसे: मालिक, अध्यापिका आदि।
- प्रेरित कर्ता-प्रेरित होने वाला अर्थात जिसे प्रेरणा दी जा रही है; जैसे: नौकर, छात्र आदि।
प्रेरणार्थक क्रिया के रूप
प्रेरणार्थक क्रिया के दो रूप हैं:
- प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
- द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
(1) प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
- माँ परिवार के लिए भोजन बनाती है।
- जोकर सर्कस में खेल दिखाता है।
- रानी अनिमेष को खाना खिलाती है।
- नौकरानी बच्चे को झूला झुलाती है।
इन वाक्यों में कर्ता प्रेरक बनकर प्रेरणा दे रहा है। अतः ये प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया के उदाहरण हैं। सभी प्रेरणार्थक क्रियाएँ सकर्मक होती हैं।
(2) द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
- माँ पुत्री से भोजन बनवाती है।
- जोकर सर्कस में हाथी से करतब करवाता है।
- रानी राधा से अनिमेष को खाना खिलवाती है।
- माँ नौकरानी से बच्चे को झूला झुलवाती है।
इन वाक्यों में कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे को कार्य करने की प्रेरणा दे रहा है और दूसरे से कार्य करवा रहा है। अतः यहाँ द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया है।
- प्रथम प्रेरणार्थक और द्वितीय प्रेरणार्थक-दोनों में क्रियाएँ एक ही हो रही हैं, परन्तु उनको करने और करवाने वाले कर्ता अलग-अलग हैं।
- प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया प्रत्यक्ष होती है तथा द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया अप्रत्यक्ष होती है।
याद रखने वाली बात यह है कि अकर्मक क्रिया प्रेरणार्थक होने पर सकर्मक (कर्म लेनेवाली) हो जाती है। जैसे:
- राम लजाता है।
- वह राम को लजवाता है।
प्रेरणार्थक क्रियाएँ सकर्मक और अकर्मक दोनों क्रियाओं से बनती हैं। ऐसी क्रियाएँ हर स्थिति में सकर्मक ही रहती हैं। जैसे- मैंने उसे हँसाया;
मैंने उससे किताब लिखवायी। पहले में कर्ता अन्य (कर्म) को हँसाता है और दूसरे में कर्ता दूसरे को किताब लिखने को प्रेरित करता है। इस प्रकार हिन्दी में प्रेरणार्थक क्रियाओं के दो रूप चलते हैं। प्रथम में ‘ना’ का और द्वितीय में ‘वाना’ का प्रयोग होता है – हँसाना – हँसवाना।
प्रेरणार्थक क्रियाओं के कुछ अन्य उदाहरण
मूल क्रिया | प्रथम प्रेरणार्थक | द्वितीय प्रेरणार्थक |
---|---|---|
उठना | उठाना | उठवाना |
उड़ना | उड़ाना | उड़वाना |
चलना | चलाना | चलवाना |
देना | दिलाना | दिलवाना |
जीना | जिलाना | जिलवाना |
लिखना | लिखाना | लिखवाना |
जगना | जगाना | जगवाना |
सोना | सुलाना | सुलवाना |
पीना | पिलाना | पिलवाना |
देना | दिलाना | दिलवाना |
धोना | धुलाना | धुलवाना |
रोना | रुलाना | रुलवाना |
घूमना | घुमाना | घुमवाना |
पढ़ना | पढ़ाना | पढ़वाना |
देखना | दिखाना | दिखवाना |
खाना | खिलाना | खिलवाना |
(4) पूर्वकालिक क्रिया (Absolutive Verb)
जिस वाक्य में मुख्य क्रिया से पहले यदि कोई क्रिया हो जाए, तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती हैं।
दूसरे शब्दों में: जब कर्ता एक क्रिया समाप्त कर उसी क्षण दूसरी क्रिया में प्रवृत्त होता है तब पहली क्रिया ‘पूर्वकालिक’ कहलाती है। जैसे:
- पुजारी ने नहाकर पूजा की।
- राखी ने घर पहुँचकर फोन किया।
उपर्युक्त वाक्यों में पूजा की तथा फोन किया मुख्य क्रियाएँ हैं। इनसे पहले नहाकर, पहुँचकर क्रियाएँ हुई हैं। अतः ये पूर्वकालिक क्रियाएँ हैं।पूर्वकालिक का शाब्दिक अर्थ है – पहले समय में हुई। पूर्वकालिक क्रिया मूल धातु में ‘कर’ अथवा ‘करके’ लगाकर बनाई जाती हैं; जैसे:
- चोर सामान चुराकर भाग गया।
- व्यक्ति ने भागकर बस पकड़ी।
- छात्र ने पुस्तक से देखकर उत्तर दिया।
- मैंने घर पहुँचकर चैन की साँस ली।
कर्म के आधार पर क्रिया के भेद
कर्म की दृष्टि से क्रिया के निम्नलिखित दो भेद होते हैं:
(1) सकर्मक क्रिया (Transitive Verb)
(2) अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb)
(1) सकर्मक क्रिया (Transitive Verb)
वाक्य में जिस क्रिया के साथ कर्म भी हो, तो उसे सकर्मक क्रिया कहते है। इसे हम ऐसे भी कह सकते है – ‘सकर्मक क्रिया’ उसे कहते है, जिसका कर्म हो या जिसके साथ कर्म की सम्भावना हो, अर्थात जिस क्रिया के व्यापार का संचालन तो कर्ता से हो, पर जिसका फल या प्रभाव किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु, अर्थात कर्म पर पड़े।
दूसरे शब्दों में: वाक्य में क्रिया के होने के समय कर्ता का प्रभाव अथवा फल जिस व्यक्ति अथवा वस्तु पर पड़ता है, उसे कर्म कहते है।
सरल शब्दों में: जिस क्रिया का फल कर्म पर पड़े उसे सकर्मक क्रिया कहते है। जैसे:
- अध्यापिका पुस्तक पढ़ा रही हैं।
- माली ने पानी से पौधों को सींचा।
उपर्युक्त वाक्यों में पुस्तक, पानी और पौधे शब्द कर्म हैं, क्योंकि कर्ता (अध्यापिका तथा माली) का सीधा फल इन्हीं पर पड़ रहा है।
क्रिया के साथ क्या, किसे, किसको लगाकर प्रश्न करने पर यदि उचित उत्तर मिले, तो वह सकर्मक क्रिया होती है; जैसे: उपर्युक्त वाक्यों में पढ़ा रही है, सींचा क्रियाएँ हैं। इनमें क्या, किसे तथा किसको प्रश्नों के उत्तर मिल रहे हैं। अतः ये सकर्मक क्रियाएँ हैं।
कभी-कभी सकर्मक क्रिया का कर्म छिपा रहता है। जैसे: वह गाता है; वह पढ़ता है। यहाँ ‘गीत’ और ‘पुस्तक’ जैसे कर्म छिपे हैं।
सकर्मक क्रिया के भेद
सकर्मक क्रिया के निम्नलिखित दो भेद होते हैं:
(i) एककर्मक क्रिया
(ii) द्विकर्मक क्रिया
(i) एककर्मक क्रिया: जिस सकर्मक क्रियाओं में केवल एक ही कर्म होता है, वे एककर्मक सकर्मक क्रिया कहलाती हैं। जैसे:
- श्याम फ़िल्म देख रहा है।
- नौकरानी झाड़ू लगा रही है।
इन उदाहरणों में फ़िल्म और झाड़ू कर्म हैं। ‘देख रहा है’ तथा ‘लगा रही है’ क्रिया का फल सीधा कर्म पर पड़ रहा है, साथ ही दोनों वाक्यों में एक-एक ही कर्म है। अतः यहाँ एककर्मक क्रिया है।
(ii) द्विकर्मक क्रिया: द्विकर्मक अर्थात दो कर्मो से युक्त। जिन सकमर्क क्रियाओं में एक साथ दो-दो कर्म होते हैं, वे द्विकर्मक सकर्मक क्रिया कहलाते हैं। जैसे:
- श्याम अपने भाई के साथ फ़िल्म देख रहा है।
- नौकरानी फिनाइल से पोछा लगा रही है।
इन उदाहरणों में क्या, किसके साथ तथा किससे प्रश्नों के उत्तर मिल रहे हैं; जैसे: पहले वाक्य में श्याम किसके साथ, क्या देख रहा है?
प्रश्नों के उत्तर मिल रहे हैं कि श्याम अपने भाई के साथ फ़िल्म देख रहा है।
दूसरे वाक्य में नौकरानी किससे, क्या लगा रही है?
प्रश्नों के उत्तर मिल रहे हैं कि नौकरानी फिनाइल से पोछा लगा रही है।
दोनों वाक्यों में एक साथ दो-दो कर्म आए हैं, अतः ये द्विकर्मक क्रियाएँ हैं।
- द्विकर्मक क्रिया में एक कर्म मुख्य होता है तथा दूसरा गौण (आश्रित)।
- मुख्य कर्म क्रिया से पहले तथा गौण कर्म के बाद आता है।
- मुख्य कर्म अप्राणीवाचक होता है, जबकि गौण कर्म प्राणीवाचक होता है।
- गौण कर्म के साथ ‘को’ विभक्ति का प्रयोग किया जाता है, जो कई बार अप्रत्यक्ष भी हो सकती है; जैसे:
बच्चे गुरुजन को प्रणाम करते हैं।
(गौण कर्म)……… (मुख्य कर्म)
सुरेंद्र ने छात्र को गणित पढ़ाया।
(गौण कर्म)……… (मुख्य कर्म)
(2) अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb)
वाक्य में जब क्रिया के साथ कर्म नही होता तो उस क्रिया को अकर्मक क्रिया कहते है।
दूसरे शब्दों में: जिन क्रियाओं का व्यापार और फल कर्ता पर हो, वे ‘अकर्मक क्रिया’ कहलाती हैं।
अ + कर्मक अर्थात कर्म रहित / कर्म के बिना। जिन क्रियाओं के साथ कर्म न लगा हो तथा क्रिया का फल कर्ता पर ही पड़े, उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं।
अकर्मक क्रियाओं का ‘कर्म’ नहीं होता, क्रिया का व्यापार और फल दूसरे पर न पड़कर कर्ता पर पड़ता है। उदाहरण के लिए: श्याम सोता है। इसमें ‘सोना’ क्रिया अकर्मक है। ‘श्याम’ कर्ता है, ‘सोने’ की क्रिया उसी के द्वारा पूरी होती है। अतः, सोने का फल भी उसी पर पड़ता है। इसलिए ‘सोना’ क्रिया अकर्मक है।
अन्य उदाहरण
- पक्षी उड़ रहे हैं।
- बच्चा रो रहा है।
उपर्युक्त वाक्यों में कोई कर्म नहीं है, क्योंकि यहाँ क्रिया के साथ क्या, किसे, किसको, कहाँ आदि प्रश्नों के कोई उत्तर नहीं मिल रहे हैं। अतः जहाँ क्रिया के साथ इन प्रश्नों के उत्तर न मिलें, वहाँ अकर्मक क्रिया होती है।
कुछ अकर्मक क्रियाएँ इस प्रकार हैं:
तैरना, कूदना, सोना, ठहरना, उछलना, मरना, जीना, बरसना, रोना, चमकना आदि।
सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान
सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान ‘क्या’, ‘किसे’ या ‘किसको’ आदि पश्र करने से होती है। यदि कुछ उत्तर मिले, तो समझना चाहिए कि क्रिया सकर्मक है और यदि न मिले तो अकर्मक होगी। जैसे:
(i) ‘राम फल खाता हैै।’
प्रश्न करने पर कि राम क्या खाता है, उत्तर मिलेगा फल। अतः ‘खाना’ क्रिया सकर्मक है।
(ii) ‘सीमा रोती है।’
इसमें प्रश्न पूछा जाये कि ‘क्या रोती है ?’ तो कुछ भी उत्तर नहीं मिला। अतः इस वाक्य में रोना क्रिया अकर्मक है।
उदाहरणार्थ- मारना, पढ़ना, खाना- इन क्रियाओं में ‘क्या’ ‘किसे’ लगाकर पश्र किए जाएँ तो इनके उत्तर इस प्रकार होंगे-
पश्र – किसे मारा?
उत्तर – किशोर को मारा।
पश्र – क्या खाया?
उत्तर – खाना खाया।
पश्र – क्या पढ़ता है।
उत्तर – किताब पढ़ता है।
इन सब उदाहरणों में क्रियाएँ सकर्मक है।
कुछ क्रियाएँ अकर्मक और सकर्मक दोनों होती है और प्रसंग अथवा अर्थ के अनुसार इनके भेद का निर्णय किया जाता है। जैसे:
अकर्मक | सकर्मक |
---|---|
उसका सिर खुजलाता है। | वह अपना सिर खुजलाता है। |
बूँद-बूँद से घड़ा भरता है। | मैं घड़ा भरता हूँ। |
तुम्हारा जी ललचाता है। | ये चीजें तुम्हारा जी ललचाती हैं। |
जी घबराता है। | विपदा मुझे घबराती है। |
वह लजा रही है। | वह तुम्हें लजा रही है। |