Sunday , December 22 2024
10th Hindi NCERT CBSE Books

डायरी का एक पन्ना: 10 CBSE Hindi Sparsh Gadya Chapter 11

डायरी का एक पन्ना 10 Class Hindi Sparsh Ch 11

प्रश्न: कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्त्वपूर्ण था?

उत्तर: 26 जनवरी, 1931 का दिन कलकत्ता वासियों के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि सन् 1930 में गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। इस वर्ष उसकी पुनरावृत्ति थी, जिसके लिए काफ़ी तैयारियाँ पहले से ही की गई थीं। इसके लिए लोगों ने अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया था और उन्हें इस तरह से सजाया गया था कि ऐसा मालूम होता था, मानों स्वतंत्रता मिल गई हो।

प्रश्न: सुभाष बाबू के जुलूस का भार किस पर था?

उत्तर: सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था जिन्होंने इस जुलूस का पूरा प्रबंध किया था उन्होंने जगह-जगह फोटो का भी प्रबंध किया था और बाद में पुलिस द्वारा उन्हें पकड़ लिया गया था।

प्रश्न: विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर: विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया तथा अन्य लोगों को मारा और वहाँ से हटा दिया।

प्रश्न: लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर किस बात का संकेत देना चाहते थे?

उत्तर: लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर झंडा फहराकर इस बात का संकेत देना चाहते थे कि वे भी अपने देश । की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय झंडे का पूर्ण सम्मान करते हैं।

प्रश्न: पुलिस ने बड़े-बड़े पार्को तथा मैदानों को क्यों घेर लिया था?

उत्तर: पुलिस ने बड़े-बड़े पार्को तथा मैदानों को इसलिए घेर लिया था ताकि लोग वहाँ एकत्रित न हो सकें। पुलिस नहीं। चाहती थी कि लोग एकत्र होकर पार्को तथा मैदानों में सभा करें तथा राष्ट्रीय ध्वज फहराएँ। पुलिस पूरी ताकत से गश्त लगा रही थी। प्रत्येक मोड़ पर गोरखे तथा सार्जेंट मोटर-गाड़ियों में तैनात थे। घुड़सवार पुलिस का भी प्रबंध था।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए:

प्रश्न: 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की गईं?

उत्तर: 26 जनवरी, 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए निम्नलिखित तैयारियाँ की गईं:

  1. कलकत्ता के लोगों ने अपने-अपने घरों को खूब सजाया।
  2. अधिकांश मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया।
  3. कुछ मकानों और बाज़ारों को ऐसे सजाया गया कि मानो स्वतंत्रता ही प्राप्त हो गई हो।
  4. कलकत्ते के प्रत्येक भाग में झंडे लहराए गए।
  5. लोगों ने ऐसी सजावटे पहले नहीं देखी थी।

प्रश्न: ‘आज जो बात थी वह निराली थी’ – किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: 26 जनवरी का दिन अपने-आप में निराला था। कलकत्ता वासी पूरे उत्साह पूरी नवीनता के साथ इस दिन को यादगार दिन बनाने की तैयारी में जुटे थे। अंग्रेज़ी सरकार के कड़े सुरक्षा प्रबंधों के बाद भी हज़ारों की संख्या में लोग लाठी खाकर भी जुलूस में भाग ले रहे थे। सरकार द्वारा सभा भंग करने की कोशिशों के बावजूद भी बड़ी संख्या में आम जनता और कार्यकर्ता संगठित होकर मोनुमेंट के पास एकत्रित हो रहे थे। स्त्रियों ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस दिन अंग्रेज़ी कानून को खुली चुनौती देकर कलकत्तावासियों ने देश-प्रेम और एकता का अपूर्व प्रदर्शन किया।

डायरी का एक पन्ना प्रश्न: पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर था?

उत्तर: दोनों में यह अंतर था कि पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चुका था कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती और जो लोग सभा में भाग लेंगे, वे दोषी समझे जाएँगे; जबकि कौंसिल के नोटिस में था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडी फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। इसमें सर्व-साधारण की उपस्थिति होनी चाहिए।

प्रश्न: धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?

उत्तर: सुभाष बाबू के नेतृत्व में जुलूस पूरे जोश के साथ आगे बढ़ रहा था। थोड़ा आगे बढ़ने पर पुलिस ने सुभाष बाबू को पकड़ लिया और गाड़ी में बिठाकर लाल बाज़ार के लॉकअप में भेज दिया। जुलूस में भाग लेनेवाले आंदोलनकारियों पर पुलिस ने लाठियाँ बरसानी शुरू कर दी थीं। बहुत से लोग बुरी तरह घायल हो चुके थे। पुलिस की बर्बरता के कारण जुलूस बिखर गया था। मोड़ पर पचास साठ स्त्रियाँ धरना देकर बैठ गईं थीं। पुलिस ने उन्हें पकड़कर लालबाज़ार भेज दिया था।

प्रश्न: डॉ० दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर ही रहे थे, उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फ़ोटो खींचने की क्या वजह हो सकती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: डॉ० दास गुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख के साथ उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे, ताकि पूरा देश अंग्रेज़ प्रशासकों के जुल्मों से अवगत होकर उनका विरोध करके उन्हें देश से बाहर निकालने के लिए तैयार हो जाए।

डायरी का एक पन्ना: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए

प्रश्न: सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?

उत्तर: सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री-समाज ने एक अहम भूमिका निभायी थी। स्त्री समाज ने जगह-जगह से जुलूस निकालने की तथा ठीक स्थान पर पहुँचने की तैयारी और कोशिश की थी। स्त्रियों ने मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फहरा करे घोषणा-पत्र पढ़ा था तथा पुलिस के बहुत-से अत्याचारों का सामना किया था। विमल प्रतिभा, जानकी देवी और मदालसा आदि ने जुलूस का सफल नेतृत्व किया था।

प्रश्न: जुलूस के लालबजार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?

उत्तर: जुलूस के लालबाज़ार आने पर पुलिस ने एकत्रित भीड़ पर लाठियों से प्रहार किया। सुभाष बाबू को पकड़कर लॉकअप में भेज दिया गया। स्त्रियों का नेतृत्व करनेवाली मदालसा भी पकड़ी गई थी। उसको थाने में मारा भी गया । इस जुलूस में लगभग 200 व्यक्ति घायल हुए जिसमें से कुछ की हालत गंभीर थी।

प्रश्न: ‘जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर कौन से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर: जब पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकला कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती और सभा में भाग लेने वालों को दोषी समझा जाएगा, तो कौंसिल की तरफ़ से भी नोटिस निकाला गया कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। इस तरह से पुलिस कमिश्नर द्वारा सभा स्थगित करने जैसे लागू कानून को कौंसिल की तरफ़ से भंग किया गया था; जोकि उचित था, क्योंकि इसके बिना आज़ादी की आग प्रज्वलित न होती।

प्रश्न: बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत-सी स्त्रियाँ जेल गईं, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: हमारे विचार में 26 जनवरी 1931 का दिन अद्भुत था क्योंकि इस दिन कलकतावासियों को अपनी देशभक्ति, एकता व साहस को सिद्ध करने का अवसर मिला था। उन्होंने देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया। अंग्रेज़ प्रशासकों ने इसे उनका अपराध मानते हुए उनपर और विशेष रूप से महिला कार्यकर्ताओं पर अनेक अत्याचार किए लेकिन पुलिस द्वारा किया गया क्रूरतापूर्ण व्यवहार भी उनके इरादों को बदल नहीं सका और न ही उनके जोश कम कर पाया । एकजुट होकर राष्ट्रीय झंडा फहराने और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा करने का जो संकल्प उन सबने मिलकर लिया था उसे उन्होंने यातनाएँ सहकर भी उस दिन पूरा किया।

Check Also

10th Class CBSE Social Science Books

10th CBSE Board Social Science Pre-board Test Year 2024-25

10th Social Science Pre Board – I Examination 2024-25: St. Margaret Sr. Sec. School, Prashant …