डायरी का एक पन्ना 10 Class Hindi Sparsh Ch 11 [Page 3]
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर:
प्रश्न: 26 जनवरी, 1931 को पार्को और मैदानों में पुलिस ही पुलिस दिखती थी, क्यों?
उत्तर: 26 जनवरी, 1931 को कोलकाता में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए क्रांतिकारियों और देशभक्तों द्वारा स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इसके अंतर्गत ध्वजारोहण और प्रतिज्ञा लेना तय किया गया था। इसे रोकने के लिए पार्क और मैदान में पुलिस ही पुलिस दिखती थी।
प्रश्न: तारा सुंदरी पार्क में पुलिस ने लोगों को रोकने के लिए क्या किया?
उत्तर: तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद सिंह को झंडा फहराने भीतर न जाने दिया। पुलिस ने वहाँ काफ़ी मारपीट की जिसमें दो-चार आदमियों के सिर फट गए। गुजराती सेविका संघ की ओर से निकाले गए जुलूस में शामिल लड़कियों को गिरफ्तार कर उन्हें रोकने का प्रयास किया गया।
डायरी का एक पन्ना प्रश्न: पुलिस कमिश्नर द्वारा निकाली गई नोटिस का कथ्य स्पष्ट करते हुए बताइए कि यह नोटिस क्यों निकाली गई होगी?
उत्तर: पुलिस कमिश्नर द्वारा निकाली गई नोटिस का कथ्य यह था कि अमुक-अमुक धारा के अंतर्गत सभा नहीं हो सकती है। यदि आप भाग लेंगे तो दोषी समझे जाएँगे। यह नोटिस इसलिए निकाली गई होगी ताकि इस दिन झंडा फहराने और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा लेने के कार्यक्रम को विफल बनाया जा सके।
प्रश्न: कौंसिल की तरफ़ से निकाली गर्ट नोटिस का प्रकट एवं उद्देश्य क्या था?
उत्तर: कौंसिल द्वारा निकाली गई नोटिस का मूलकथ्य यह था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सर्वसाधारण की उपस्थिति होनी चाहिए। इस नोटिस का उद्देश्य था स्वतंत्रता दिवस मनाने की पुनरावृत्ति करना तथा पूर्ण आजादी की माँग करना।
प्रश्न: जुलूस को न रोक पाने की दी। पुलिस ने किस तरह उतारी ?
उत्तर: भीड़ की अधिकता के कारण पुलिस जुलूस को जब न रोक सकी तो उसने अपनी खीझ उतारने के लिए मैदान के मोड़ पर पहुँचते ही जुलूस पर लाठियाँ चलानी शुरू कर दी। इसमें बहुत से आदमी घायल हुए। पुलिस की लाठियों से सुभाष चंद्र बोस भी न बच सके।
प्रश्न: झंडा दिवस के अवसर पर पुलिस का कृर प देखने को मिला। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: झंडा दिवस अर्थात् 26 जनवरी 1931 को भारतीयों द्वारा जो कार्यक्रम मनाने का निश्चय किया गया था, उसे रोकने के प्रयास में पुलिस का क्रूरतम रूप देखने को मिला। पुलिस जुलूस में शामिल लोगों पर लाठी चार्ज कर रही थी, जिससे लोग। लहूलुहान हो रहे थे। पुलिस महिलाओं और लड़कियों के साथ भी मारपीट कर रही थी।
प्रश्न: पुलिस जिस समय मोनुमेंट की मोटियाँ न हो थी, उस समय दूसरी ओर महिलाएँ किस काम में लगी थी ?
उत्तर: मोनुमेंट के नीचे पुलिस जिस समय लोगों पर लाठियाँ भाँज रही थी और लोग लहूलुहान हो रहे थे उसी समय दूसरी ओर महिलाएँ मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। ऐसा करके वे झंडा दिवस कार्यक्रम को सफल एवं संपन्न करने में जुटी थी।
डायरी का एक पन्ना: दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न: 26 जनवरी, 1937 को कोलकाता के स्तों पर उत्साह और नवीनता देखते ही बनती थी। इसके कारणों एवं नएपन का वर्णन कीजिए।
उत्तर: 26 जनवरी, 1931 को कोलकाता में स्वतंत्रता दिवस मनाये जाने की पुनरावृत्ति होनी थी। इस दृष्टि से इस महत्त्वपूर्ण दिन को अत्यंत हर्षोल्लास से मनाया जाना था। इस बार का उत्साह भी देखते ही बनता था। इसके प्रचार मात्र पर ही दो हज़ारे रुपये खर्च किए गए थे। कार्यकर्ताओं को झंडा देते हुए उन्हें घर-घर जाकर समझाया गया था कि आंदोलन की सफलता उनके प्रयासों पर ही निर्भर करती है। ऐसे में आगे आकर उन्हें ही सारा इंतजाम करना था। इसे सफल बनाने के लिए घरों और रास्तों पर झंडे लगाए गए थे। इसके अलावा जुलूस में शामिल, लोगों का उत्साह चरम पर था। उन्हें पुलिस की लाठियाँ भी रोक पाने में असमर्थ साबित हो रही थीं।
प्रश्न: 26 जनवरी, 1931 को सुभाषचंद्र ४ का एक नया रूप एवं सशक्त नेतृत्व देखने को मिला। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 26 जनवरी, 1931 को कोलकाता में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाना था। गतवर्ष इसी दिन पूर्ण स्वराज्य पाने के लिए झंडा तो फहराया गया था पर इसका आयोजन भव्य न बन सका था। आज झंडा फहराने और प्रतिज्ञा लेने के इस कार्यक्रम में सुभाषचंद्र के क्रांतिकारी रूप का दर्शन हो रहा था। वे जुलूस के साथ असीम उत्साह के साथ मोनुमेंट की ओर बढ़ रहे थे। उन्हें रोकने के लिए पुलिस ने लाठियाँ भाँजनी शुरू कर दी थी फिर भी वे चोट की परवाह किए बिना निडरता से आगे ही आगे बढ़ते जा रहे थे और ज़ोर-ज़ोर से ‘वंदे मातरम्’ बोलते जा रहे थे। पुलिस की लाठियाँ उन पर भी पड़ी।
यह देख ज्योतिर्मय गांगुली ने उन्हें पुलिस से दूर अपनी ओर आने के लिए कहा पर सुभाषचंद्र ने कहा, आगे बढ़ना है। उनका यह कथन जुलूस को भी प्रेरित कर रहा था।
प्रश्न: वृजलाल गोयनका कौन थे? झंडा दिवस को सफल बनाने में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: वृजलाल गोयनका स्वतंत्रता सेनानी थे, जो कई दिनों से लेखक के साथ काम कर रहे थे। वे दमदम जेल में भी लेखक के साथ थे। वे झंडा दिवस 26 जनवरी, 1931 को सभास्थल की ओर जाते हुए पकड़े गए। पहले तो वे झंडा लेकर ‘वंदे मातरम्’ बोलते हुए इतनी तेज गति से भागे कि अपने आप गिर गए। एक अंग्रेज घुड़सवार ने उन्हें लाठी मारी और पकड़ा परंतु थोड़ी दूर जाने के बाद छोड़ दिया। इस पर वे स्त्रियों के झुंड में शामिल हो गए, तब पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। तब वे दो सौ आदमियों का जुलूस लेकर लालबाजार गए जहाँ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
प्रश्न: ‘डायरी का एक पन्ना’ नामक पाठ के माध्यम से क्या संदेश दिया गया है?
उत्तर: ‘डायरी का एक पन्ना’ नामक पाठ स्वतंत्रता का मूल्य समझाने एवं देश प्रेम व राष्ट्रभक्ति को जगाने तथा प्रगाढ़ करने का संदेश छिपाए हुए है। पाठ में सन् 1931 के गुलाम भारत के लोगों की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत की गई है कि किस प्रकार निहत्थे किंतु संगठित भारतवासियों के मन में स्वतंत्रता पाने की भावना बलवती हुई और इसे पाने के लिए लोगों ने न लाठियों की चिंता की और न जेल जाने की। वे आत्मोत्सर्ग के लिए तैयार रहते थे। यह पाठ हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा। करने की जहाँ प्रेरणा देता है, वहीं यह संदेश भी देता है कि संगठित होकर काम करने से कोई काम असाध्य नहीं रह जाता है।