कर चले हम फ़िदा 10th Class Hindi Sparsh Chapter 8 [Page 2]
प्रश्न: इस गीत में कुछ विशिष्ट प्रयोग हुए हैं। गीत के संदर्भ में उनका आशय स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
कट गए सर, नब्ज़ जमती गई, जान देने की रुत, हाथ उठने लगे
उत्तर:
- कट गए सर: बलिदान हो गए।
घुसपैठियों द्वारा किए गए हमले में पठानकोट एअरबेस के कई सैनिकों के सर कट गए। - नब्ज़ जमती गई: नसों में खून जमता गया।
लेह की कड़ी सरदी में जवानों की नब्ज़ जमती जाती है फिर भी वे देश की रक्षा में सजग रहते हैं। - जान देने की रुत: मातृभूमि के लिए कुरबान होने का अवसर।
अपने देश के लिए जान देने की रुत आने पर भूल से भी नहीं चूकना चाहिए। - हाथ उठने लगे: जब देश पर आक्रमणकारियों के हाथ उठने लगे तो उसे काट देना चाहिए।
प्रश्न: ध्यान दीजिए संबोधन में बहुवचन ‘शब्द रूप’ पर अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता; जैसे: भाइयो, बहिनो, देवियो, सः जनो आदि।
उत्तर: छात्र इन उदाहरणों के माध्यम से समझें:
भाइयो: सफ़ाई कर्मचारियों के नेता ने कहा, भाइयो! कहीं भी गंदगी न रहने पाए।
बहिनो: समाज सेविका ने कहा, बहिनो! कल पोलियो ड्राप पिलवाने ज़रूर आना।
देवियो: पुजारी ने कहा, देवियो! देवियो! कलश पूजन में जरूर शामिल होना।
सज्जनो: सज्जनो! यहाँ सफ़ाई बनाए रखने की कृपा करें।
प्रश्न: ‘फ़िल्म का समाज पर प्रभाव’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर: फ़िल्म को समाज पर प्रभाव – फ़िल्में हमारे समाज का प्रतिबिंब होती हैं। तत्कालीन समाज में जो कुछ घटित होता है। उसका जीता-जागता चित्र फ़िल्मों में दिखाया जाती है। इनका निर्माण समाज के द्वारा समाज में उच्च मानवीय मूल्यों की स्थापना एवं सामाजिक विकास के लिए किया जाता है। फ़िल्मों से एक ओर जहाँ समाज का मनोरंजन होता है वहीं फ़िल्में समाज को संदेश देते हुए कुछ करने के लिए दिशा दिखा जाती हैं। ‘हकीकत’ कुछ ऐसी ही फ़िल्म थी जिसे देखकर अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कर गुजरने का जोश पैदा हो जाता है।
फ़िल्में सामाजिक बदलाव लाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सामाजिक कुरीतियाँ-दहेज प्रथा, नशाखोरी, जातिवाद आदि पर अंकुश लगाने में फ़िल्मों की भूमिका सराहनीय होती है। युवा पीढ़ी को संस्कारित करने तथा उनमें मानवीय मूल्य प्रगाढ़ करने में फ़िल्मों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। समाज के सामने अच्छी फ़िल्में आएँ, यह निर्माताओं का दायित्व है।
प्रश्न: आज़ाद होने के बाद सबसे मुश्किल काम है ‘आज़ादी बनाए रखना’। इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर: यह पूर्णतया सत्य है कि आजाद होना कठिन काम है। आज़ादी पाने के लिए लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ता है, त्याग करना पड़ता है और हज़ारों को कुरबान होना पड़ता है। इतनी कठिनाई से प्राप्त आज़ादी को बनाए रखना भी आसान काम नहीं है। आजादी प्राप्ति के समय जो विभिन्न जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा क्षेत्र आदि के लोग अपनी इस संकीर्णता को छोडकर एकजुट होकर आजादी के लिए तन-मन-धन अर्थात् सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार थे और जिनके अथक प्रयासों से आज़ादी मिली वही बाद में जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र, भाषा आदि के नाम पर अलगाववाद का समर्थन करते नजर आते हैं, जिससे हमारी एकता पर अनेकता में बदलने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति का अनुचित लाभ उठाने के लिए कुछ शत्रु देश सक्रिय हो जाते हैं।
वे तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर हमें गुलाम बनाने की कुचेष्टा करते हैं। वे हमारी फूट का लाभ उठाते हैं। वे धन, छल-बल, कूटनीति का सहारा लेकर एकता को कमजोर करने का प्रयास करते हैं। इसमें तनिक भी सफलता मिलते ही वे दंगे भड़काने का प्रयास करते हैं, भेदभाव को उकसाते हैं ताकि हम आपस में ही लड़-मरें। उन्हें तो इसी अवसर की प्रतीक्षा होती है। हमें भूलकर भी ऐसी स्थिति नहीं आने देनी चाहिए। यद्यपि कुछ लोग दिग्भ्रमित होकर गलत कदम उठा लेते हैं, परंतु हमें ऐसे लोगों को भी सही राह पर लाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए और अपनी आज़ादी को हर संभावित संकट से बचाना चाहिए। अतः पूर्णतया सत्य है कि आज़ाद होने के बाद सबसे मुश्किल काम है ‘आजादी बनाए रखना।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न: ‘कर चले हम फ़िदा जानो तन’ के माध्यम से सैनिक क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर: ‘कर चले हम फ़िदा जानो तन’ के माध्यम से सैनिक देशवासियों और युद्ध कर रहे अपने साथियों से यह कहना चाहते हैं कि उन्होंने साहस और वीरता से अपने देश की रक्षा की है। अपने तन में प्राण रहते हुए उन्होंने देश की मर्यादा और प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आने दिया। उन्होंने अपने सीने पर गोलियाँ खाकर देश के लिए अपने प्राणों को उत्सर्ग कर दिया है। अब देश की रक्षा के लिए तुम भी अपने प्राणों की बाजी लगा देना।
प्रश्न: सैनिकों के लड़ने के लिए परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं थीं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: भारत और चीन के बीच हुए इस युद्ध का रणक्षेत्र बना था – हिमालय की घाटियाँ जहाँ तापमान इतना कम होता है कि वहाँ खड़ा रहना भी कठिन होता है। हडियाँ कँपा देने वाली ऐसी ही सरदी में भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों का मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे, परंतु सरदी के कारण उनकी साँसें रुकती हुई प्रतीत हो रही थीं और उनकी नसों का खून जमने की स्थिति तक पहुँच गया था।
प्रश्न: सैनिकों ने हिमालय का सिर न झुकने देने के लिए क्या किया?
उत्तर: भारतीय सैनिकों में देश प्रेम और राष्ट्रभक्ति की भावना चरम पर थी। उन्हें अपना देश और मातृभूमि प्राणों से भी प्रिय थी। इसके रक्षा के लिए उन्होंने विपरीत परिस्थितियों की परवाह नहीं की। वे निरंतर आगे ही आगे बढ़ते जा रहे थे। हालात ऐसे थे कि उनकी साँसें रुक रही थीं और साँस लेना कठिन हो रहा था तथा रक्त जमता जा रहा था, फिर भी इसकी परवाह किए बिना लड़ते हुए अपना बलिदान दे दिया।